“रमा, पापा का फोन आया था इस दशहरा पर मंदिर में दुर्गा जी की स्थापना करा रहे हैं,सबको बुला रहे हैं, बहुत दिन हो गया सब एक बार इकट्ठे होते हैं”सतीश जी ने ऑफिस से आते ही कहा। रमा ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी, चुपचाप खाना डाइनिंग टेबल पर लगाने लगी। सतीश जी प्रतिक्रिया चाहते भी नहीं, घर में आज तक वही होता आया जो वो चाहते रहे। फिर ये तो घर जाने की बात थी।
हाथ -मुँह धोकर खाने बैठे, रमा गर्म रोटियां बना कर दे रही थी। खाना खाने के बाद सतीश जी बोले “कल इतवार है मेरी छुट्टी है तो बाजार चल कर सबके लिये कपड़े ख़रीद लाते हैं, इतने दिन बाद जा रहे तो उपहार देना तो बनता है”। रमा ने तब भी कुछ नहीं कहा।
दूसरे दिन रमा आराम से उठी, सतीश जी ने रमा को जल्दी काम निपटा कर तैयार होने को कहा। दो घंटे हो गये रमा जी अभी भी मैक्सी में घूम रही थीं सतीश जी चिल्ला पड़े “कब से कह रहा जल्दी करो तुम्हे सुनाई नहीं देता क्या “।
आराम से सतीश जी, इतना गुस्सा ठीक नहीं है, और मैं नहीं जा रही ससुराल, आप चले जाइये “रमा ने शांति से कहा।
“तुम्हारा दिमाग खराब हो गया है क्या, क्यों नहीं जाओगी, घर वही है समझी तुम,”सतीश जी गुस्से से बौखला गये, रमा जी ने आज तक उनकी कोई बात नहीं काटी, आज उन्हें बर्दाश्त नहीं हो रहा कि उनकी बात काटी जाये। पुरुष होने का दम्भ उनको कुछ ज्यादा ही था।
“जी घर था पर अब नहीं है,”रमा ने जवाब दिया।
“क्या मतलब, तुम ठीक तो हो ..तुमको हो क्या गया, रिश्ते बनाने पड़ते है तब जा कर बनते है “सतीश जी ने कहा।
“सतीश जी आप सही कह रहे हैं रिश्ते बनाने पड़ते हैं पर एकतरफा नहीं, दोनों तरफ से हाथ बढ़ाना पड़ता है।मैं पहले ठीक नहीं थी, पर अब मुझे समझ आ गया है, अब मैं वही करुँगी जो मुझे ठीक लगेगा, आप कहते हैं घर है मैं भी घर समझती थी माँ -बाबूजी को अपना माता -पिता समझा पर क्या उन्होंने मुझे अपना समझा कभी, इतने साल हो गये कभी उन्होंने मेरे सर पर हाथ रखा नहीं ना…, बहू का काम ही सबकी सेवा करना। माँ जी अपनी बेटियों की सुविधा देखती तो बाबूजी बड़े भैया को, काम करने के लिये सबको रमा याद आती है। माँ जी ने अपनी बेटियों अमिता और नमिता को निमंत्रण भेजा पर मेरी बेटी केया को क्यों नहीं बुलाया। बेटे सुलभ और बहू रूचि को कहा गया पर केया… क्या केया इस घर की लड़की नहीं है।क्या अंतरजातीय विवाह करने से उसका रिश्ता इस घर से खत्म हो गया।
मैंने रिश्ते बनाने के लिये बहुत समझौते किये, पर जब बात मेरी बेटी पर आती है तो वहाँ मैं कोई समझौता नहीं करुँगी, और क्यों करूं, सासु माँ को अपनी बेटियां प्यारी हैं तो मै भी माँ हूँ मुझे भी अपनी बेटी प्यारी है।मैं अपनी बेटी की अवहेलना नहीं बर्दाश्त कर सकती। सिर्फ उसका ही कर्तव्य है बाबा -दादी को जन्मदिन पर और शादी की सालगिरह पर फोन करने का, वे तो केया को कभी फोन नहीं करते। केया कुछ कहती नहीं तो क्या हम उसे इग्नोर कर दें।
अब मैं भी सास बन गई पर घर में अभी तक बहू हूँ, जब सबका मन करता बड़ा बना देते ये कह अब तो तुम भी सास बन गई, और जबकाम हो तो मैं बहू बना दी जाती। कितना समझौता करुँगी सबकी खुशियों के लिये, क्या मेरा अपना कोई वजूद नहीं है, मेरी अपनी कोई खुशी नहीं है,तुम सास हो बहू का ख्याल तुम्हें ही रखना है, वो वर्किंग है तुम तो घर में रहती हो, तुम क्या राय दोगी, बच्चों को सम्भालो,।
सास के सामने मैं बहू हूँ, उनकी देखभाल करना मेरा ही कर्तव्य है…. मैं पूछती हूँ ये दोगली नीति क्यों मेरे साथ ही है । मैं समझौते करती रही इसलिये या मैंने आवाज नहीं उठाई इसलिये .. बस अब और नहीं…”रमा जी बोलते -बोलते हांफ गई। सतीश जी घबरा गये दौड़ कर रसोई से पानी ले कर आये, पानी पी रमा जी थोड़ा संयत हुईं।
सतीश जी आज पत्नी की बात सुन आवाक थे, रमा के अंदर इतना कुछ भरा है, उन्होंने कभी ध्यान ही नहीं दिया। उनको तो यही लगता था वे पुरुष हैं, वे नहीं पत्नी को ही समझौता करना होगा। कभी उन्होंने रमा जी को बराबरी का दर्जा नहीं दिया, वे तो पढ़े -लिखें हैं फिर भी रूढ़ियों से बंधे हैं, जबकि उनके पिता तो सारी जिंदगी गांव में रहे पर हर कार्य में माँ की राय जरूर लेते थे।
किसी ने सही कहा सिर्फ पढ़ने -लिखने से कोई आधुनिक नहीं होता, आधुनिक तो विचारों से होता है, सोच से होता है। सतीश जी ने पिता को फोन लगाया “पापा मै नहीं आ रहा हूँ “
“क्यों बेटा, उस समय घर में बहुत काम है रमा नहीं आयेगी तो काम कौन करेगा “पिता ने चिंतित होते पूछा।
“पापा, आपने केया को निमंत्रण नहीं दिया “सतीश जी की बात सुनते ही रघुनाथ जी घबरा गये “वो बेटा, दिमाग से उतर गया था केया को निमंत्रण देना, अभी भी समय है मै केया और दामाद बाबू को भी निमंत्रण दे देता हूँ “।
अगले दिन सतीश जी बाजार जा कर केया और दामाद के लिये उपहार ले कर आये साथ ही एक बनारसी साड़ी रमा के लिये उपहार में लाये। रमा को देते बोले “रमा आज मै तुम्हारे लिये उपहार ले आया हूँ तुमको पसंद नहीं आये तो बदल लेना “
“आप पहली बार मेरे लिये उपहार लाये हैं, निःसन्देह खूबसूरत होगा “रमा जी का जवाब सुन सतीश जी भावुक हो गये, हमेशा रुआब में रहते थे प्यार की भाषा ना बोली ना समझी… पर आज समझ गये आदेश से किसी का दिल नहीं जीता जा सकता, हाँ प्यार के दो बोल से दिलों पर राज किया जा सकता है।
दोस्तों एक गृहिणी, हाउसवाइफ हो तो उससे सबकी अपेक्षाएं बढ़ जाती है, चाहे वो नई हो या पुरानी, अपेक्षाएं रखिये पर जिससे अपेक्षा रखते है, कुछ उसकी भी सुनिये, और कुछ उसको भी समझिये… क्या कहते है आप …।
—-संगीता त्रिपाठी