“पता नहीं माँ,आखिर मेरे साथ ही यह सब क्यों होता है?जब भी किसी ने मेरी मदद माँगी या दोस्ती का हाथ मेरी ओर बढ़ाया तो मैंने पूरी शिद्दत से उसकी मदद भी की और दोस्ती भी निभाई उसकी खुशियों में भी सदा शामिल रही और जब मुझे मान देने का समय आता है तो सब बड़ी बेरुखी से मुझसे अपना मुँह मोड़ लेते हैं।” रुचि ने दुखी होते हुए फोन पर माँ को अपनी व्यथा सुनाई।”
बेटा ऐसा क्या हुआ तेरे साथ जो तू इतनी दुखी है?”रुचि की माँ ने अपनी चिंता जाहिर की।
“माँ,हमारे सामने मिसेज शर्मा रहती हैं उन्होंने खुद ही पहले दोस्ती का हाथ बढ़ाया तो मैंने भी स्वीकार कर लिया क्योंकि हम भी नए आए थे इस बिल्डिंग में।मैं उन्हें बड़ों की तरह ही मान देती थी।मेरे घर में कुछ भी फंक्शन होता तो उन्हें बड़ा समझकर हर काम में आगे रखती।उनकी तबियत खराब होती तो उनके बेटे व पति को खाने पे बुला लेती।
उनके बेटे के शादी हुई तो उन्होंने घर में लेडिस संगीत रखा और मुझसे सारा काम करवाया।मैंने भी खुशी खुशी उनकी मदद की ये सोचकर,कि चलो हम दोनों पड़ोसी हैं एक दूसरे के काम आना हमारा फर्ज है।उन्होंने शादी दूसरे शहर में जाकर की थी।शादी से होकर जब वो लोग आए
तो उनके घर जाकर मैंने बधाई दी और उन्हें अपने घर दूसरे दिन शाम की चाय पे बुलाया क्योंकि सबका खाना बनाने की मेरी हिम्मत नहीं थी।घर आकर इन्हें बताया तो ये बोले -“देख ले तेरे अकेले से हो जाएगा तो ठीक है वरना कहे तो मैं बाजार से समोसे गुलाबजामुन मंगवा दूंगा।”
मैंने बोला,ऐसे बाजार से मंगवाना अच्छा नहीं लगेगा मैं घर पर कुछ बना लूंगी।
“तेरी मर्जी हो वैसा कर लेना।”कहकर इन्होंने तो पल्ला झाड़ लिया।
दूसरे दिन सुबह ही कामवाली का फोन आ गया, कि वो आज नहीं आएगी तो मुझे वो कहावत याद आ गई.. सर मुड़ाते ही ओले पड़ गए..!! अब घर का सारा काम भी करना था और शाम को नाश्ते की तैयारी भी करनी थी।मैंने मीनू भी ऐसा रखा था कि उसमें बहुत टाइम लगने वाला था।गाजर का हलवा और ब्रेड रोल बनाने थे।
दिन भर घर का काम किया और फिर गाजरें घिसीं क्योंकि मेरे पास फूड प्रोसेसर नही था।जैसे तैसे हलवा भी बना दिया और ब्रेड रोल भी बना लिए।दिनभर बेचारे बच्चों को भी इग्नोर किया।शाम को मिसेज शर्मा अपने पति और बेटे बहु के साथ ठुमकती हुई आ गईं।ये भी ऑफिस से आ गए।
सब कुछ अच्छे से निपट गया।मैंने चलते समय मिसेज शर्मा के बेटे बहु को शगुन का लिफाफा भी दिया।बिल्डिंग में मिसेज शर्मा की और भी बहुत खास सहेलियां थीं पर किसी ने भी उनके बहु बेटे को चाय या डिनर के लिए नहीं बुलाया था।
एक दिन दोपहर को मुझे मिसेज शर्मा के घर से बहुत सारी लेडिज की आवाजें आ रही थी.. मैंने आई होल से देखा कि बिल्डिंग की ही लेडिज थीं..सब मिसेज शर्मा के घर से जा रहीं थीं और मिसेज शर्मा उनको कह रहीं थीं,कि कल आप सब लोग आना..
शादी की एल्बम दिखाऊँगी आज कुछ लोग शाम को आने वाले हैं इसलिए अभी नहीं दिखा पाई।मैंने सोचा मुझे तो इन्होंने एक बार भी नहीं कहा,कि घर आना शादी की एल्बम देखने।मुझे बहुत बुरा लगा.. मैंने तो अपना समझकर इनको इतना मान दिया घर चाय नाश्ते पे बुलाया..जबकि इनका मन तो नहीं था।शाम को ये आए तो मैंने इन्हें एल्बम वाली बात बताई।
इन्होंने मुझे बहुत डांटा,कि मैंने तो तुमसे कहा ही था कि ज्यादा कुछ करने की जरूरत नहीं है बस नमकीन और मिठाई बाजार से मंगा लेना वो ही बहुत है पर तुम्हें तो ज्यादा ही अच्छा बनने की पड़ी रहती है अब भुगतो।माँ आप सोचोगी,कि मुझे अपनी खुशामद करवाने का शौक हैं,पर ऐसा बिल्कुल नहीं है।मैं तो बस इतना चाहती हूं, कि अगर मैं लोगों को मान दे रही हूं
तो कम से कम थोड़ी बहुत तवज्जो तो वो मुझे भी दे सकते हैं ना।लोगों के ऐसे दोगले व्यवहार से मन को बहुत तकलीफ होती है।मुझे मिसेज शर्मा ने एक बार भी नहीं कहा कि तुम शादी का एल्बम देखने आना।उनके मन में मेरे लिए कोई अपनापन नहीं।”रुचि एक साँस में सब बोल गई।
“मैं तेरा दुख समझती हूँ रुचि पर मेरी एक बात तू गाँठ बाँध ले…मतलबी लोगों से हमेशा दूरी बनाकर रखनी चाहिए इन्हें इतनी गंभीरता से नहीं लेना चाहिए कि जिससे हमारी भावनाएं आहत हों।मतलबी लोग रेगिस्तान में मृगमरीचिका के समान होते हैं,जहाँ जल होने का आभास तो होता है पर वास्तव में जल नहीं होता।”
“सही कहा माँ आपने।अब से मैं ऐसा ही करूँगी।बस एक सीमा तक ही दोस्ती निभाऊंगी ताकि कोई मेरी भावनाओं से खिलवाड़ ना कर सके।”
रुचि ने माँ की नसीहत को अपने जीवन में उतार लिया।मिसेज शर्मा जैसे लोगों से वो दूर रहने लगी।माँ की नसीहत ने उसके जीवन में खुशियों के रंग भर दिए..अब वो इतनी मजबूत बन गई कि कोई भी उसकी भावनाओं से खिलवाड़ नहीं कर पाता।
#आखिर मेरे साथ ही यह सब क्यों होता है
कमलेश आहूजा
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