समस्या का समाधान – शिव कुमारी शुक्ला   : Moral Stories in Hindi

नुपुर और दीपेश दोनों ही साफ्टवेयर

इंजिनियर थे और दोनों अलग-अलग

कम्पनी में कार्यरत थे। किसी कामन मित्र के घर पार्टी में दोनों का परिचय हुआ ।धीरे -धीरे बारबार मिलने पर उनकी दोस्ती गहरी हो गई। दोनों ही एक दूसरे के व्यक्तित्व से प्रभावित हुए और कब उनके दिल के तार जुड़ गए उन्हें भी पता नहीं चला। दोनों का प्यार परवान चढ़ा और अन्त में उन्होंने शादी करने का फैसला कर लिया। यह एक अन्तरजातीय विवाह था सो दोनों जानते थे कि परिवार वाले कभी तैयार नहीं होंगे।दो बर्षों तक दोनों ने अपने-अपने परिवार को मनाने का प्रयास किया क्योंकि वे बिना परिवार की रजामंदी  के अपने वैवाहिक जीवन की शुरुआत नहीं करना चाहते थे। परिवार का प्रेम और आशीर्वाद उन्हें चाहिए था।

अंत में उनकी जिद एवं एक दूसरे के लिए प्रेम एवं समर्पण की भावना को देखते हुए परिवार वालों ने स्वीकृति दे दी, और धूमधाम से शादी हो गई।

शुरु शुरु में तो प्यार का नशा ऐसा था कि दोनों को एक-दूसरे की कमी का एहसास ही नहीं होता था, और नौकरी के साथ-साथ खुशहाल जीवन व्यतीत कर रहे थे।

दीपेश के परिवार वालों को नुपुर का शालीन व्यवहार, संस्कार, पारिवारिक मूल्यों की समझ  इतनी भा गई कि वे जल्दी ही   उससे घुल-मिल गए। दीपेश की मम्मी गीता जी  तो उसे बेटी की तरह प्यार करने लगी। पापा अनूप जी भी उसे बेटी सदृश्य  ही प्यार करते। घर में जो बेटी की कमी थी वह उसके आने  से  पूरी हो गई।

पूना में  दोनों फ्लैट  लेकर रहने लगे। हंसते  मुस्कराते छः माह व्यतीत हो गए। अब  दीपेश के व्यवहार में परिवर्तन नुपुर कई दिनों से अनुभव कर  रही  थी। वह अनावश्यक रूप से नुपुर पर छोटी-छोटी बातों लेकर झल्लाने लगा। पहले तो नुपुर ने  सोचा कि काम का प्रेशर  होगा तो वह नजर अन्दाज कर देती। किन्तु, जब ज्यादा  होने लगा तो वह बार बार  दीपेश से पूछती की कोई परेशानी है क्या दीपू तुम्हारा मूड आजकल इतना  उखडा-उखड़ा क्यों, रहता है। अपनी परेशानी मुझसे शेयर करो  शायद मैं उसे हल करने में तुम्हारी मदद  कर सकूं। अपन मिलकर समस्या का समाधान ढूंढते हैं। 

किन्तु वह कुछ नहीं बोलता । कहता जब तुम्हें मेरी परेशानी दिख ही नहीं रही तो तुम, उसे दूर करने में मेरी क्या मदद करोगी। तुम्हे तो सिर्फ अपनी  नौकरी से मतलब है मेरी परेशानी से नहीं। 

ये  कैसी बातें  कर रहे हो मैं क्या ध्यान नहीं रखती तुम्हारा। बात आई गई हो जाती। किन्तु दीपेश के मन में तो कुछ और ही चल रहा था। वह अब एक टिपिकल  भारतीय पति की तरह व्यवहार करने लगा था। उसकी अपेक्षाएं नुपुर से बढ गईं थीं। वह शाम  को जल्दी घर आ जाता था। नुपुर एक- डेढ घंटे बाद आती थी। उसके आते ही वह मुँह फुला लेता,और उस पर बरसने लगता। हो गया टाइम घर आने का। जब तुम्हें पता है कि तुम्हारा पति जल्दी घर आ जाता है तो उसे समय पर खाना भी  चाहिऐ पर तुम्हें क्या तुम तो आराम से  नौकरी करो। अब खड़ी-खड़ी क्या देख रही  हो तुरन्त, खाना बनाओ। वह भी दिनभर की थकी हुई थी  इस तरह के व्यवहार से आहत हो गई। बोली दीपू पहले एक कप चाय  पी लूं फिर बनाती हूं।  बहुत  थकान हो  रही  है ।

हाँ  हां घर में घुसते ही थकान हो गई। पति भूखा है तुम्हें चाय  पीने की  पड़ी है। उसने  दुखी होकर बिना चाय पीए ही  खाना  बनाकर उसे दे दिया। तो अब वह खाने  में  नुक़्स निकाल कर उसे  उल्टा सीधा सुनाने लगा ।अब ऐसी बातें  आए  दिन होने लगीं। एक दिन दुखी  होकर कर  नुपुर बोली दीपू आज फैसला कर लो ये जो तुम रोज रोज  का तमाशा करते हो इससे  मैं तंग हो चुकी हूं। क्या तुम्हें पहले नहीं  पता था कि मैं आफिस से देर से निकलती हूं।  पहले तो तुम  मेरे निकलने के इन्तजार में ऑफिस के बाहर  एक  एक  घंटे बैठे रहते थे तब तुम्हे कोई प्राब्लम नहीं होती थी।  मेरे आने के बाद  ही  हम साथ-साथ कैफे में  चाय पीते थे।घूमने फिरने के बाद बाहर ही खाना भी खा लेते थे। अब तुम्हें कभी इमरजन्सी   मैं भी बाहर के खाने से तकलीफ होने लगी। तुम्हारी सयस्या क्या है खुलकर बताओगे। 

वह बोला मैं चाहता हूँ कि तुम मेरे घर आने के पहले आ जाओं तकि जब  मैं आऊं तो तुम मुझे समय  पर चाय , खाना दो ।

नुपुर गुस्से में बोली ये कैसी बेहूदी बातें कर रहे हो । मेरा काम अलग तरह का है  में तुमसे पहले नहीं आ सकती। और  यह बात तुम अच्छी तरह से जानते हो। और न मैं अपनी इतनी अच्छी जाँव छोडूंगी । तुम्हें जो सोचना है सोचो। इस तरह दोनों के बीच  कड़वाहट घुल गई ।और समय के साथ इतनी  बढती  जा रही थी कि आखिर  में उन्होंने तलाक लेने का फैसला ले लिया साथ तो रह रहे थे किन्तु दोनों के दिल कड़वाहट से इतने दूर हो चुके थे, कि अब एक दूसरे क साथ उन्हें काटने दौड़ता और वे अपने अपने कमरे में सिमट गये । 

तभी  अचानक एक दिन दीपेश के मम्मी -पापा आ गये ।उन्हें ऐसे  अचानक आया देख दोनों  बोल पडे अरे आपलोग इस प्रकार अचानक खबर कर देते  तो  हम स्टेशन लेने आ जाते। 

 नहीं बेटा बाम्बे तक किसी काम से आये थे तो तुम्हारी मम्मी बोली यहाँ तक तो आ ही गये हैं  थोड़ा  और आगे बढ़ बच्चों से भी मिल लेते हैं और अचानक उन्हें  सरप्राइज भी दे देंगे।

 

मम्मी बोली बेटा कैसा लगा  तुम दोनों को हमारा सरप्राइज।

 दीपेश बोला अच्छा है, मम्मी।

नुपुर बोली मम्मी-पापा, आप लोग बैठें मैं चाय लेकर आती हूं और वह चाय बनाने 

चल दी।

 उनके चेहरे के उडे हुए रंग को देख  मम्मी पापा की अनुभवी आंखों ने  सब बिना कहे ही समझ लिया।

 

नुपुर, चाय-नाश्ता रख बोली आप लोग लें मैं तब तक  खाने की तैयारी करती  हूं। मम्मी बोली बैठ, बेटा तुम भी हमारे साथ चाय लो ।खाने की चिन्ता मत कर सब हो जाऐगा। चाय पीते-पीते बोलीं और बताओ  सब कैसा चल रहा है।

 नुपुर ठीक है मम्मी जी। किन्तु उसके चेहरे की उदासी उनसे छिपी नहीं रही।

 

नुपुर बोली मम्मीजी आज  मुझे ऑफिस जाना जरुरी है एक आवश्यक मीटींग है मैं जल्दी से खाना बना देती हूँ कल से छुट्टी ले लूंगी। 

अरे नहीं बेटा तू चिन्ता मत कर मैं सब सम्हाल लूंगी वेफिक्र होकर जा।

 उसके जाने के बाद वे दीपेश पर बिफर पड़ीं कैसा पति है तू जो अपनी  पत्नी  का ध्यान  भी नहीं रख पाता। कैसी तो कुम्हला गई है  मेरी बेटी। सच बता क्या चल रहा है तुम दोंनों के बीच।

 कुछ ठीक नहीं चल रहा है मम्मी न तो उससे घर सम्हलला है  हमेशा अस्तव्यस्त रहता है। मैं आ कर एक  डेढ़ घंटे इंतजार करता हूं तब वो आती है फिर कहना थक गई, चाय पी लूं  फिर  खाना बनाती हूं अपने पति की कोई चिन्ता  ही नहीं है।

 

दीपेश तू कहना क्या चाहता है क्या इस सबकी  तेरी कोई जिम्मेदारी नहीं। तू पहले आ जाता है तो थोडा  घर को तू भी तो सही कर सकता है। नुपुर के आने पर क्या तू एक कप चाय बना कर उसे नहीं  दे सकता। वह भी तो इंसान है थक जाती होगी. और थोडा रिलेक्स होना चाहती है तो  क्या ग़लत बोलती  है ।तब तक तू किचन में थोडी तैयारी भी तो कर सकता है। या फिर दोनों मिलकर खाना बना सकते हो साथ-साथ खाना भी बन जाएगा और बातों में पता भी नहीं चलेगा ।।तू नुपुर से इतने अधिकार से अपेक्षाएं तो बहुत रखता है पर क्या कभी तूने उसकी परेशानी को समझा। पती बनते ही हक, अधिकार जैसे शब्द आगए और वह पुराना प्रेमी कहाँ दफन हो गया जो दो साल तक नुपुर के लिए  हमें मनाने में लगा रहा ।दो साल तक तुम लोग साथ रहे तब तुम्हें नुपुर में कोई  बुराई नजर नहीं आई और पत्नी बनते ही वह कामचोर ,आलसी हो गई। अपने दिल में झांक कर देख कड़वाहट कितनी भर गई है। नुपुर  नहीं बदली है बदल तो  तू  गया। तेरा सारा प्रेम का नशा छः महिने में ही उतर गया और नौबत तलाक तक आ गई।  क्या है बेटा ये सब तू उससे एक घरेलु  पत्नी की सी उम्मीद लगा बैठा। वह भी काम पर  जाती है, घर सम्हालती है तुझे उसकी मदद करनी  चाहिए। क्या घर के काम उसकी अकेले की  जिम्मेदारी है, तू मदद कर देगा तो क्या छोटा हो जाएग। बड़ी सोच रख और ठंडे दिमाग से सोचकर  सारी कड़वाहट बाहर निकाल फेंक ।कोई तलाक वलाक नहीं होगा ।प्यार से एक दूसरे को समझकर रहो।

 ये आधुनिक जमाने की सोच है जरा  कुछ हुआ और सीधे तलाक पर पहुँच गए। देख  हमारी शादी को तो छत्तीस  वर्ष हो गए क्या मैं और तुम्हारे पापा कभी लडे झगडे नहीं । एक दूसरे की बातों का बुरा भी लगा किन्तु  यह सब तो जीवन की प्रक्रिया है चलती रहती है किन्तु तलाक का तो नहीं सोचा कभी ।आजकल सब समस्याओं का निदान तलाक हो गया है।

 

हां मम्मी ऐसे तो कभी नहीं सोचा मैंने।  मैं तो सोचता था कि पूरी जिम्मेदारी उसीकी है सो बहुत परेशान किया। बहुत उल्टा सीधा बोला, हालांकि नुपुर ने मुझे बहुत समझाने की कोशिश की पर मैं नहीं समझा । अब कुछ नहीं होगा मम्मी  में आपके कहे अनुसार व्यवहार करूंगा।

 

ये हुई  ना बात, बेटा  नुपुर बहुत प्यारी बेटी हैं बहुत शांत एवं समझदार । 

शाम को जैसे ही नुपुर घर आई बोली मम्मी जी पहले चाय बना लाऊं ,आती हूं।

नुपुर पहले यहां आ बैठ मेरे पास।थक कर आई है। चाय दीपेश बना लायेगा।

अरे नहीं मम्मी जी मैं बना लूंगी कह वह उठने लगी तभी दीपेश बोला हां नुपुर मम्मी सही कह रही हैं,चाय मैं बना लाता हूं, तुम चाय पीकर रिलेक्स हो जाओ फिर मिलकर खाना बना लेंगे।

वह अचरज से दीपेश की ओर छलछलाती 

आंखों से देखती है उस दृष्टि में न जाने कितना दर्द समाया हुआ है।

दीपेश उसे देख बहुत आहत होता है और कहता है नहीं नुपुर अब मैं सब समझ गया हूं, दुखी मत हो, मैं गलत था मुझे माफ कर दो।

चाय पीते पीते नुपुर के आंसू उसके गालों पर ढुलक पड़ते हैं।तब मम्मी उसे अपने से चिपका कर शांत करती हैं। तुम दोंनों मन की सारी कड़वाहट प्यार का शरबत बना कर पी जाओ, और हंसी खुशी जीवन बिताओ। तलाक किसी समस्या का समाधान नहीं है।

ओह मम्मी जी आपने कितनी आसानी से हमारे बीच आईं दूरियों को समेट हमें पास ला दिया।आप कितनी अच्छी हैं। 

शिव कुमारी शुक्ला

21-6-24

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित

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