“जीवन लम्हो में जिआ जाता है ,मुक्कमल नही !”
सब काम निपटा कर श्यामली आराम करने लगी थी । सोचा कुछ हल्का -फुल्का पढ़ लूं । एक मासिक पत्रिका के पन्ने पलट रही थी कि एक रचना का शीर्षक पढ़ कर चौंक गई । शीर्षक कुछ जाना पहचाना लग रहा था। जैसे ही रचना के लेखक पर निगाह मारी । वह खुशी से उछल पड़ी “अरे ! ये तो मेरी ही रचना है , जिसे मैं ने तीन -चार महीने पोस्ट किया था । आज उस की उसी रचना को पुरस्कृत किया गया था ।”पढ़ कर मन मयूर नाच उठा था
रचना को एक नहीं, दो तीन बार पढ़ा। पर मन में खुशी समा ही न हीं रही थी। सोच रही थी ‘ अपनी खुशी किस से सांझा करूं ।’ इतने में मिनी कालेज से आ गई । उसे मुस्कुरते हुए देख कर बोली ” ममा ! क्या बात है बड़ी खुश नजर आ रही हैं ? ”
” हां ! आज मैं बहुत खुश हूं ।मेरी एक कहानी मैगजीन में छपी है ,जिसे प्रथम स्थान मिला है ।”
“जरा दिखाओ ।” और झटपट पढ़ कर “अच्छी है ” कह कर अपने कमरे में चली गई । वह उसकी प्रतिक्रिया देखती ही रह गई । रात को डाइनिंग टेबल पर उसने फिर चर्चा छेड़ी ।
बेटे ने पूछा ” क्या नाम है? ” “अच्छा वो ? वो आपने लिखी थी ? मैं ने पढ़ी तो थी , पर राइटर का नाम नहीं देखा था । अच्छी थी।”
पास ही बैठे उनके पापा बोले “बढ़िया है। इसी तरह लगी रहो ।” इतनी ठंडी प्रतिक्रिया ? मन में उथल-पुथल मच गई । यह वही सब हैं ,जिनकी छोटी से छोटी सफलता के लिए उस ने मन्नतें मांगी हैं । एक एक उपलब्धि पर उस ने जश्न मनाएं हैं । हम घरेलू स्त्रियां की कोई भी उपलब्धि शायद कोई महत्व नहीं रखती है ।
फिर लेखन कार्य को तो समाज ने कभी महत्व नहीं दिया है। उसे आज भी याद है, कि लोग अक्सर उस से पूछते हैं “तुम यह कथा कहानियों क्यों लिखती हो? क्या इस से तुम्हें कुछ आय (इनकम ) होती है ?”
वैसे तो काव्यानन्द को ब्रह्मानंद सहोदर माना गया है ,पर आज के सोशल मीडिया , आपाधापी के व्यस्ततम जीवन में किस्से -कहानियां पढ़ने और उन का आनंद लेने का किसके पास समय है ?
मन अतीत में भटकने लगा । लिखने का उसे बचपन से ही शौक था ।पत्र-लेखन , निबंध प्रतियोगिताओं में भाग लेते लेते ,कब छोटी छोटी कहानियां लिखने लगी, पता ही नहीं चला। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में कथा कहानियोंके प्रकाशित होने पर उस की लेखन की यह रुचि धीरे धीरे उस का पैशन बन गई । घर गृहस्थी में उलझी होने पर भी अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए समय निकाल ही लेती थी ।
वह भी क्या समय था ? एक रचना को कई कई बार अपडेट करती थी फिर उन्हें फोटो स्टेट करवाती और डाक द्वारा भेजती थी। पर करोना के फैलते ही सब कुछ बंद ।सब घरों में कैद । तभी बेटे ने उसे टैबलेट पर टाइप करना सिखाया और लिखने का उसका पैशन बरकरार रहा पर असली पड़ाव अभी बाकी था ,
क्यों कि रचनाओं को इंटरनेट द्वारा भेजना उसे नहीं आता था । यह कोई बहुत कठिन प्रक्रिया नहीं थी , पर उम्र का तकाजा ! उम्र के इस पड़ाव तक पहुंचते पहुंचते न तो कुछ नया सीखने की हिम्मत रह जाती है और न ही कोई इच्छा ।
पर कहते हैं पैशन तो पैशन ही है । मन की इच्छा -शक्ति ने जोर मारा और एक बार फिर !फिर उस की रचनाधर्मिता ने मूर्त रुप लिया । आज वह विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में भी अपनी रचनाएं भेजने में सफल हो चुकी है उसी का परिणाम है कि आज उस की कहानी प्रतियोगिता में पुरस्कृत की गई है ।
वह सोचने लगी ” उपलब्धि चाहे छोटी हो या बड़ी ! उपलब्धि तो उपलब्धि है।यह मेरी व्यक्त्तिगत उपलब्धि है । इस लिए आज मैं बहुत प्रसन्न हूं।यह खुशी मेरी अपनी खुशी है ।यह मेरी स्वयं की जीत है । फिर मैं अपनी खुशी मनाने (सेलिब्रेट कर ने ) के लिए किसी पर निर्भर क्यों रहूं ?
यह छोटी छोटी खुशियां ही जीवन को खुशहाल बनाती हैं और सुवासित पुष्पों के समान जीवन को महका देती हैं। मैं व्यर्थ की बातें सोचकर खुशी के इस अहसास से अपने आप को वंचित क्यों करूँ ? जीवन हमेशा लम्हों में जिया जाता है , मुक्कमल नहीं ।”
यह विचार आते ही मन का सारा संताप ,सारा भटकाव खत्म हो गया ,मन प्रफुल्लित हो गया और चेहरा पर एक अनोखी चमक आ गई।
उस ने मुस्कुराते हुए मेज पर अपनी प्रकाशित कहानी रखी ।गुलाब के फूलों से सजाया।अंदर से बढ़िया सा काॅफी मग निकाला। म्यूजिक सिस्टम चालू किया और बड़े ही सुकून से काॅफी इन्जॉय करने लगी ।
बिमला महाजन
छोटी छोटी बातों में खुशियों को