जीवन का जहर – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

 जीवन है अगर तो जहर पीना ही पड़ेगा

        मदर इंडिया फ़िल्म का यह गाना कानो में गूंज रहा था,और सरला की जीभ पर तो आज मानो सरस्वती मां विराजित हो गयी थी,बहुत ही कम बोलने वाली सरला को इतना मुखर पहले कभी भी किसी ने नही देखा था।

      देखो मैं मानती हूं बुरे समय मे किसी का भी बर्ताव हमारे से अच्छा नही रहा, सबने मुख मोड़ लिया था।क्या मैं नही जानती सब सगे संबंधियों ने कतराना शुरू कर दिया था,कही हम कुछ मांग न बैठे,सबने आना तो दूर बुलाना तक भी लगभग बंद कर दिया था।क्या मुझे आपकी मनःस्थिति का पता नही,आप कितने व्यथित रहते थे?पर मनोज फिर भी हमे इस कड़वाहट से निकलना ही होगा।आज समय ने सबको जवाब दे दिया है,आज हम अपने मे संपन्न है।

    सरला तुम भूल सकती हो,मेरे अंदर की ज्वाला को तुम नही समझ सकती।मेरा अपमान तो हर पग पर किया ही गया,पर मेरे बेटे को भी हिकारत की निगाह से देखा गया।तुम तो जानती हो सरला मैं कैसे अंदर ही अंदर रोता था,रोज घुट घुट कर मरता था।

         मनोज और सरला के विवाह को यूं तो 20 बरस बीत गये थे।खूब अच्छे से फैक्टरी चल रही थी।शान का जीवन जिया जा रहा था।एक ही बेटा था विनेश,जिसका दाखिला भी एक बड़े विद्यालय में कराया गया था।सब कुछ ठीक चल रहा था।अबकी बार वर्षा सारे रिकॉर्ड तोड़ रही थी।सब अस्त व्यस्त हो गया था।निरंतर वर्षा से जगह जगह पानी भर गया था,लेबर और स्टाफ का फैक्टरी पहुंचना मुहाल हो गया था,उत्पादन बंद पड़ा था,सप्लाय फिर कहाँ से हो।

यह सब तो था ही कि नगर के समीप बहने वाली नहर का तटबंध टूट गया,विशाल जल राशि नगर की ओर बहने लगी।शुरू में ही मनोज की फैक्टरी पड़ती थी,तो सबसे पहले उस आपदा का शिकार भी फैक्टरी हुई।पूरे वेग से आया पानी पूरी फैक्टरी को तहसनहस कर गया।तमाम रा मैटीरियल, नष्ट हो गया,मशीनें पानी ने डूब गयी।5फिट पानी फैक्टरी में भर गया था।अपनी तबाही अपने सामने देखने को विवश था मनोज।वह जानता था,बीमा कंपनी से क्लेम कितने दिन बाद कैसे और कितना मिल पायेगा।

सब कुछ एक झटके में खत्म।45 वर्षीय मनोज को अब नये सिरे से जीवन संघर्ष करना था,फिर स्थापित होना था।यह इतना सरल नही था।सबसे बड़ी समस्या थी विनेश की पढ़ाई लिखाई की।विवशता क्या होती है,आज सामने खड़ी थी।कई महीनों बाद फैक्ट्री से पानी निकल सका,तब पाया कि मशीने लगभग बेकार हो चुकी हैं।किसी प्रकार एक मशीन ठीक हो पायी, उसी से मनोज ने नयी शुरुआत की।बैंक का तकादा भी प्रारम्भ हो चुका था।

ऐसे में एक दो नजदीकी रिश्तेदारों से बड़ी झिझक के साथ  कुछ उधार की गुजारिश भी की तो उनकी ओर से बड़ी शालीन रूप से बहाना बना इनकार कर दिया गया।ऐसे ऐसे रिश्तेदारों और मित्रों ने अपना रंग दिखाया जो उससे कभी भी लाख दो लाख रुपये यूँ ही उठा ले जाते थे। इससे  मन की खिन्नता तो बढ़ी ही साथ ही स्वार्थ भरी दुनिया का दीदार भी हुआ। किसी प्रकार बेहद तंगी में अस्तित्व की लड़ाई चल ही रही थी कि एक नजदीकी के यहां से शादी का कार्ड आया।

मनोज को खुशी हुई चलो किसी ने तो याद रखा, सो वह अपनी पत्नी सरला और बेटे विनेश के साथ वहां पहुंचा।वहां जाकर उसे लगा कि वह गलत आ गया है।शादी का कार्ड मात्र औपचारिकता थी,ठंडे पन से स्वागत और कतराना यहां भी दिखाई दिया।वही एक घटना ने उसका दिल बुरी तरह तोड़ दिया जब उसके बेटे से कहा गया,बेटे क्या और कपड़े शादी में पहनने लायक नही थे?विनेश क्या जवाब देता?मेरे कुछ बोलने से पूर्व ही कहा गया कि देखते हैं

हमारे मुन्ना के कपड़े प्रेस हुए रखे हैं या नही?खिसियाया सा विनेश मुँह लटकाए एक ओर खड़ा हो गया।मनोज तुरंत ही चुपचाप बिना किसी को बताये, सरला तथा विनेश को लेकर वहां से वापस आ गया।इस घटना के बाद  मनोज ने अपने को अलग थलग कर लिया और अपने को अपनी फैक्टरी के काम मे झोंक दिया।इसी बीच उसके एक बहुत पुराने मित्र सुनील जो काफी समय से विदेश में रह रहा था,वापस आने पर उसने मनोज से उसकी फैक्टरी में साझेदारी की पेशकश की।

मनोज को तो मानो संजीवनी प्राप्त हो गयी।चूंकि मनोज के पास फैक्टरी  कैम्पस और पुराना मार्केट तथा अनुभव था,सो उसी आधार पर दोनो की साझेदारी हो गयी।सुनील के पास पैसे की कोई कमी नही थी,सो उनका कार्य दौड़ने लगा।दो तीन वर्षों में ही मनोज ने अपनी पहली वाली स्थिति प्राप्त कर ली।सफलता एवं संपन्नता उसके चरण पुनः चूमने लगी थी।

       अब सब कुछ ठीक हो गया था,पर एक अकेलापन उसके जीवन मे घर कर गया था।बुरे दिनों की स्मृति और अपनों का तिरस्कार वह भूल नही पाता।पुनः संपन्नता आने के बाद अब फिर से  रिश्तेदारों के निमंत्रण पत्र और फोन आने लगे थे।पर वह इन्हें इग्नोर ही करता,उसे उनसे वितृष्णा हो गयी थी।

      सरला मनोज की मनःस्थिति को खूब समझ रही थी।कुछ भी हो अपने साथ अच्छा हो या बुरा,समाज से कटकर तो नही रहा जा सकता।सरला समझ रही थी,कि अपनो का दिया दर्द मनोज को खा जायेगा।तभी तो सरला मनोज को समझा रही थी कि मनोज जीवन है तो जहर पीकर भी जीना पड़ता है।देखो आज हम अकेलेपन से झूझ रहे है,लेकिन कल अपना विनेश भी तो अकेला रह जायेगा,उसे तो अपने चाचा,चाची,बुआ फूफा आदि किसी रिश्ते के बारे में पता ही नही होगा।दूसरे मनोज तुमने अपने दम पर अपनी सफलता दुबारा प्राप्त की है,तुमने विजय पायी है,तुम विजेता हो मनोज।छोड़ो कड़वाहट और नये जीवन का स्वागत करो।

     मनोज एक टक सरला के मुँह को ताकता ही रह गया,वह तो सरला को सरल ही मानता था,उसके अंदर इतनी गंभीरता छिपी है,वह आज ही देख पाया।अपने बुरे दिनों के बाद आज वर्षो बाद मनोज अपने को बहुत हल्का महसूस कर रहा था।उसे लग रहा था कि उसके दिल से भारी बोझ उतर गया है। मन की वितृष्णाये समाप्त जो हो चुकी थी।आगे बढ़ उसने सरला को अपनी बाहों में भर लिया।

बालेश्वर गुप्ता

मौलिक एवं अप्रकाशित।

#कड़वाहट

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