सीमा बहुत परेशान थी। तीन दिन से कमली नहीं आ रही थी। फोन भी नहीं उठा रही थी। आज पड़ोसी की बाई से बात कर ही रही थी कि उधर से आती दिखाई दी।
“अरे, तुम तीन दिन से कहाँ थी? फोन भी नहीं उठा रही थी?”
कमली कुछ बोली नहीं चुपचाप घर के अन्दर आ गयी। सीमा नाश्ता बना चुकी थी। प्रवीण ऑफिस के काम से शहर से बाहर गये थे। कमली खाना बनाने का काम करती थी।
कमली को कल सुबह जल्दी आने को बोल वह ऑफिस के लिए निकल गयी।
दूसरे दिन सीमा की उत्सुक्ता ने सवाल कर ही दिया।
“क्या हुआ था कमली? तीन दिन से नहीं आ रही थी?”
“ क्या बताऊँ दीदी, गौरी अपने काॅलेज के एक यार के साथ भाग गयी और हमें भनक भी नहीं हुई।”
“भाग गयी? उसे शादी करनी थी तो तुमसे कहती।”
“ वह अपनी जाति का नहीं था दीदी। अब सब मुझे ही दोषी ठहराते हैं। मैं ही उसे काॅलेज में पढ़ने भेजी थी। मुझे क्या पता था।”
और वह माथा पकड़कर रोने लगी। अपनी किस्मत को कोसे जा रही थी। उसका पति दिनेश ड्राइवर था दोनों पति- पत्नी मिलकर कमाते थे और अपने दोनों बेटियों को पढ़ाना चाहते थे। परिवार के लोग उसकी शादी करना चाहते थे , लेकिन कमली ने उसे काॅलेज भेज दिया।
“ अरे इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है? उसे पसंद था तो कर ली। आज कल जाति कौन देखता है?”
“ बिरादरी में मेरी बहुत थू- थू हो रही है दीदी। हम किसी के मुह दिखाने के लायक नहीं रहे।”
“ ये सब बकवास है। बेटी खुश है तो तुम्हें भी खुश होना चाहिए। “
धीर-धीर बात आई- गयी हो गयी। तत्काल तो मायके से उसका नाता टूट ही चुका था। वैसे सबकुछ पता चल चुका था कि लड़का कहाँ का था
एक साल बाद माँ का मजबूर दिल नहीं माना और वह बेटी को किसी से खबर भेजवाकर मिलने के लिए अपनी बहन के यहाँ बुलवायी।
एक साल बाद माँ-बेटी गले मिलकर खूब रोई। बेटी के चेहरे पर जो रौनक होनी चाहिए थी वह नहीं थी। माँ की पारखी नजर अपने बच्चों के दुख- दर्द को पहचानने में भूल नहीं करती। कमली ने पूछा भी-
“ क्या तुम्हें अपने फैसले का पछतावा है?”
गौरी को माँ के सामने कुछ कहने की हिम्मत नहीं हुई।
आखिर किस मुह से कहती?
गौरी का पति भी साथ आया था। हर पल उसकी निगाहें माँ- बेटी पर टिकी रहती थी। दो दिन बाद दोनों अपने- अपने गंतव्य की ओर चल दिये। घर से निकले ही गौरी का पति रंजन उसकी तलाशी लेना शुरू कर दिया।
“तुम्हारी माँ ने तुम्हें क्या दिया?”
“पाँच हजार रुपये और एक साड़ी।”
सुनते ही रंजन उसे झपट लिया। “शादी का खर्चा बचा दिए थे और लेकर आई ये पाँच हजार। इतना तो यहाँ लेकर आने में ही मेरा खर्चा हो गया था।”
सहमी हुई सी गौरी कुछ बोल न सकी।
रंजन के साथ गौरी इस उम्मीद पर भागकर गयी थी कि रंजन उससे शादी करेगा, उसे खुश रखेगा, क्योंकि वह प्यार करता है। वह जानती थी कि मेरा समाज इससे शादी नहीं करने देगा। कम उम्र का आकर्षण उसे गहराई से सोचने नहीं दिया और फिर प्यार कहाँ कुछ सोचता और देखता है, वह तो अंधा होता है।
रंजन का पिता नगर निगम में सफाई कर्मी था। रंजन की माँ भी घरों में सफाई का काम करती थी। एक मंदिर में साधारण पूजा के साथ गौरी और रंजन की शादी हो गयी थी। रंजन तो अपनी पढ़ाई जारी रखा, लेकिन गौरी को घर- घर काम करने के लिए उसकी सास उसे मजबूर करने लगी। गौरी ने रंजन से कहा।
“मैं भी अपनी पढ़ाई जारी रखूँगी।”
इसके बदले गौरी को रंजन का जोरदार तमाचा खाने को मिला। पढ़ाई का खर्च क्या तेरे बाप के घर से आयेगा? दोनों जून रोटी चाहिए तो काम करना ही पड़ेगा। “
गौरी पहली बार रंजन का यह रूप देखकर दंग रह गयी।क्या असली रूप यही रंजन का है? अब तो हर बार मुह खोलने से पहले गौरी को सोचना पड़ता था।
धीरे- धीरे रंजन की संगति गलत लोगों के साथ हो गयी। वह नशे की शिकार हो गया। वह अपनी पढ़ाई आगे जारी नहीं रख सका। अब तो वह नशा के लिए हमेशा गौरी से पैसे की मांग करता था। तीन घरों में काम करती थी, उससे जो भी मिलता था रंजन और उसकी सास दोनों ले लेते थे। रंजन को जब पैसा नहीं मिलता था तो वह जमकर गौरी की पिटाई करता था। अब तो ये हालत हो गयी कि गौरी को भरपेट भोजन भी मिलना मुश्किल हो गया।
इसी बीच उसे दो- दो बार गर्भपात कराने पर मजबूर किया गया। जब अत्याचार सहने की शक्ति समाप्त होने लगी तो वह भागकर अपनी मौसी के घर आ गयी। मौसी ने इसकी खबर उसकी माँ तक पहुँचा दी। माँ तो पहले से ही आशंकित थी। पति से अनुनय-विनय किया। आखिर अपनी बेटी है। उससे गलती हो गयी। उस गलती की सजा भी वह भुगत चुकी। जाकर उसे लेकर आओ। आखिर पिता का प्यार बाजी मार ही लिया। दो साल से पल रहा नफरत आज हाशिए पर आ चुका था।
दिनेश अपनी बेटी को लेने अपनी साली के घर पहुँचा। उसी दिन वहाँ रंजन आया और गौरी को जबरदस्ती अपने साथ ले जाना चाहा। गौरी नहीं जाना चाहती थी। उसका बाल पकड़कर घसीटता हुआ दहलीज पार किया। बाहर बैठा पिता इस दृश्य को देखकर सोचने समझने की शक्ति खो बैठा और वहीं रखी कुल्हाड़ी को गर्दन पर दे मारा।
वह वहीं ढ़ेर हो गया। खून से लथपथ कुल्हाड़ी उसके हाथ में थी। पलों में घटित इस घटना को देखकर सभी हैरान थे। कुछ ही देर में पुलिस आ गयी और दिनेश के हाथों में अब कुल्हाड़ी की जगह हथकड़ी थी। गौरी रोते-रोते अपनी किस्मत को कोसे जा रही थी।
पुष्पा पाण्डेय
राँची,झारखंड।
“रोते-रोते अपनी किस्मत को कोसे जा रही थी।”