प्रगति आज बेहद खुश थी। दो सालों के बाद आज सुकेश अपने दोनों हाथों से ठीक होने जा रहा था। अब वह अपाहिज की श्रेणी से बाहर आ कर अपने सारे काम कर पाएगा। उसका सपना पूरा होने को है कि वह सुकेश को स्वस्थ कर पाएगी। मैं सारे बिल सबमिट कर बिल क्लीयर कर आती हूं, कहकर प्रगति कमरे के बाहर निकली , वहीं सुकेश को अस्पताल के बिस्तर पर बैठ बैठे याद आ गया वह मनहूस दिन ,जिस दिन कारखाने में यह हादसा हुआ था।
वह शीशे का सामान बनाने वाले कारखाने में काम करता था। जब उसकी और प्रगति की शादी हुई तब सुकेश की तनख्वाह इतनी थी कि दोनों का गुजारा हो जाता था। सुकेश सुबह 10बजे तक जाता व कारखाना घर के पास होने के कारण 5बजे तक घर आ जाता। उसके बाद का समय दोनों हंसते खेलते बतियाते गुजारते। प्रगति के भी सपने इतने बड़े नहीं थे कि तनख्वाह में पूरे न हो पाते । यूं तो सुकेश के मां व छोटा भाई थे ,पर वे गांव में रहते थे। दो घंटे का रास्ता होने के कारण अक्सर मां व भाई उनके घर आते रहते। तब वह सब मिलकर खूब मज़ा करते। ऐसे ही सुख सपनों में दोनों का गुजर बसर अच्छी तरह से हो रहा था
उस दिन सुकेश को सुबह से ही कुछ अच्छा नहीं लग रहा था। उसे अनमना देख कर प्रगति ने भी उन्हें छुट्टी लेने को कहा । पर सुकेश नहीं माना व चला गया। कारखाने में उस दिन कयी लोग छुट्टी पर थे। आफिसर के कहने पर वह दूसरे व्यक्ति का काम संभालने को तैयार सुकेश जैसे ही काम करने लगा कि एक तेज चीख के साथ अपना हाथ पकड़ने लगा, सभी लोग कुछ न समझते हुए उसके इर्द-गिर्द इकट्ठे हो गये। सुकेश के गलत मशीन चलाने के कारण उसका काफी कट गया था।
सब लोग उसे अस्पताल लेकर गए पर डाक्टर ने आपरेशन बताया तथा दो तीन साल तक उसे हाथ से काम करने के लिए मना कर दिया। प्रगति का रोल रोकर बुरा हाल था। अब प्रश्न ये था कि गुजारे के लिए पैसा कहां से आए। इलाज में बड़ी ही रफ्तार से पैसा खर्च हो रहा था। मां व भाई भी आ गये थे। पर भाई के अभी पढ़ता होने के कारण मां व भाई भी मदद नहीं कर पाए। ऐसे में प्रगति ने सोचा कि वह बी ए पास है। उसने कारखाने जा कर बात की तो वहां उसकी नौकरी लग गई।
पर अगले दिन सुकेश को बताया तो उसे अच्छा नहीं लगा उसका नौकरी करना पर मां ने उसे इजाजत दे दी या यूं कहें तो कि इसके अलावा कोई और चारा नहीं था। अब प्रगति की जिंदगी का बेहद मुश्किल दौर शुरू हो गया। वह सुबह पांच बजे उठती।
पहले अपने व सुकेश के लिए खाना ,चाय आदि बनाती। फिर अस्पताल जाकर उसे यह सब देखकर आती। कुछ देर सुकेश के पास बैठ कर, कारखाने के लिए निकल जाती। भाई की पढ़ाई की वजह से वे लोग वापस गांव चले गए थे। कुछ समय बाद सुकेश को डाक्टर ने घर भेज दिया था। वह तो सरकारी अस्पताल था नहीं तो खर्च से कर्ज चढ़ गया होता।
चलो अब अस्पताल जाना तो बचा। अब घर रहकर आराम करना।
हां अब आराम के कारण बोझ बने रहने के अलावा और बचा ही क्या है। , कहकर सुकेश ने एक नीरिह सी नजर अपने हाथ पर डाली।
ऐसा क्यों कहते हो, भगवान सब ठीक करेंगे। , प्रगति ने सांत्वना दी।
अब प्रगति के पास सुबह का थोड़ा टाइम बचने लगा , उसमें वह घर के काम निपटा लेती।पर इधर वह एकदो दिन से देख रही थी कि सुकेश हर बात के लिए बहुत चिड़चिड़ा हो कर जबाब देता। न उसे प्रगति का तैयार होना अच्छा लगता व लड़ाई करता।
प्रगति अपने आंसू पी जाती व उसके लिए सांत्वना के शब्द ही बोलती चली जाती। कारखाने आ कर भी वह बहुत रोती। पर सुकेश का व्यवहार दिन प्रतिदिन खराब ही होता चला जा रहा था। ऐसे माहौल में रहते हुए दो साल गुजर गए।
आज सुकेश की पट्टी खुलने का दिन था। सुकेश के कयी बार उकसाने पर भी प्रगति का व्यवहार पूर्ववत ही बना रहा व वह बड़े खुश नुमा माहौल से ही उसे लेकर अस्पताल गयी। जब डाक्टर ने कहा कि अब आप ठीक है तो प्रगति एकदम चहक उठी।
डाक्टर ने सुकेश से कहा कि जानते हो सुकेश तुम्हारे ठीक होने मे तुम्हारी पत्नी का कितना बड़ा हाथ है। जब तुम पहले अस्पताल आये तो कितनी ही रातें प्रगति ने तुम्हारे सिरहाने जाग कर बिताई है। आज सबसे ज्यादा खुश भी यही है। प्रगति तुम मेरे साथ आओ , मैं सुकेश की दवाईयां तुम्हें समझा दूं। और प्रगति डाक्टर के साथ हो ली।
उनके जाने के बाद सुकेश को प्रगति की तरफ किया अपना व्यवहार याद आया और वह सोचने लगा क्या वह प्रगति की तरफ किया अपने व्यवहार को उचित ठहरा पाएगा, क्या वह प्रगति के इन सालों का भुगतान कर पाएगा। नही, वह नहीं कर पाएगा।
तभी अंदर आती प्रगति को बुलाकर उसने माफी मांगी। प्रगति ने कहते हुए कि आज का दिन बहुत शुभ है, इस दिन ऐसी बात मत करो, कहकर उसे गले से लगा लिया।
* पूनम भटनागर।