हरे कांच की चूड़ियां! – पूर्णिमा सोनी : Moral Stories in Hindi

घर में मेहमानों की रेलमपेल मची थी। बाहर वाले कमरे में भीतर बरामदे से लेकर छत तक… सब जगह

सुनीति अपनी ननद के घर उनकी पच्चीसवीं मैरिज एनिवर्सरी के अवसर पर आई थी… अपनी पति ,बच्चों और सासू मां सरला जी के साथ

यूं तो ( सासू) मां साथ चलने को तैयार नहीं थी.. अभी कुछ दिनों पहले ही पिताजी ( ससुर जी) का स्वर्गवास हुआ था। उनका कहीं भी किसी काम में मन नहीं लगता था। मोहल्ले के सभी कार्यक्रमों, पूजा,कथा, संगीत, विवाह आदि में पूरे मनोयोग और उत्साह से भाग लेने वाली मां ऐसी   निरुत्साहित…. शून्य में चली जाएंगी किसी ने सोचा ना था।

सिर्फ  सब कार्यक्रमों में सम्मिलित ही नहीं होना बल्कि पूरे गरिमा के साथ उनका साथ श्रृंगार,करीने से बांधा जूड़ा,पिन अप कर पहनी साड़ी.. मैचिंग चूड़ियां या कड़े… कितनी सभ्यता से तैयार होती थीं मां… कि उनका सलीका देखकर  कोई कह नहीं सकता था कि वो  एक निपट घरेलू महिला हैं।

सुनीति ने ससुराल आने के बाद कितना कुछ उनसे सीखा… व्यवस्थित तरीके से सिर्फ घर संभालना ही नहीं… घर बाहर हर जगह अपनी सुघड़ता की छाप छोड़ना

मां ने कितना कुछ सिखाया.. जब बच्चे के बाद वो  अपनी सर्विस के साथ सामंजस्य ना बिठा पाने के कारण टूटन की कगार पर पहुंच गई थी,तब मां ने ही संभाला उसकी बेटी को और उसे भी और  मजबूत संबल बनकर खड़ी हो गई

उसे चिंता मुक्त हो कर वापस ना सिर्फ  सर्विस में लौटने में मदद की बल्कि यह भी समझाया कि इस समय तुम्हें मजबूत होकर सभी कुछ संभालना है

अब उसका समय है कि वो मां को संभाले उसी तरह… फिर से सामान्य दिनचर्या, जीवन में वापस लौटने में.. और यह भी कि इस जीवन में सबका आना और जाना अपने बस में नहीं,जो चला जाता है उसके पीछे बचे लोगों को भी जीवन जीना है… ( उसी उर्जा और निश्चित तौर पर उमंग के साथ)

सुनीति ने मां के लिए सिल्क की नई साड़ी लिया था शाम के फंक्शन के लिए… हालांकि मां ने बहुत  मना किया था… बहुत सारे कपड़े तो हैं, मेरे पास… क्या होगा नया लेकर.. मगर सुनीति ना मानी।

सुबह से मां कलफ की हुई साड़ी पहन कर तैयार थी। सुनीति ने मां को छोटी चेन साथ में मैचिंग कान के टाप्स पहना कर तैयार किया था,जब वो लोग घर से निकले थे, दीदी ( ननद) के घर आने के लिए।

पूरा दिन सबके साथ हंसते ,  हुए खुशनुमा माहौल में बीता।

शाम को दीदी ने कमरे में आकर बोला, सुनीति तुम अभी तैयार नहीं हुई

मैं तो हो ही गई हूं दीदी,बस मां के लिए ये सिल्क की साड़ी और  ये सेट लाई हूं.. उन्हें भी तैयार कर दूं..

बस- बस रहने दो.. जो पहनी हैं बस ठीक हैं.. इनको ज्यादा  बदलने की जरूरत नहीं है

हां बस बेटा …मेरी वो लाइट शेड वाली लिपिस्टिक कहां है?… वो दे दो…

मां ने दीदी के डर से घबराते हुए कहा… हालांकि उनकी घर से ही इच्छा वो नई साड़ी पहन कर तैयार होने की थी।

लिपिस्टिक?… दीदी की तो जैसे त्यौरियां ही चढ़ गई

अब आपको लिपिस्टिक लगाने की जरूरत क्या है?

मां स्तब्ध और रूंआसी खड़ी थी

मगर दीदी…

तुम तो बस ही करो सुनीति… मां के इन्हीं फैशन और शौक की वजह से मुझे मेरे ससुराल वालों से बहुत कुछ सुनने को मिलता है….  अब तो छोड़े ये श्रृंगार.. तुम  भी ना पीछे पड़ी रहती हो मां के.. मां को फिर से जीना सिखाना है…

दीदी बड़बड़ाती हुई निकल गई थी।

मां के बहते आंसुओं के साथ दरकते आत्मविश्वास को देख रही थी सुनीति

अभी इस अवसर पर कुछ साधारण कहना भी बखेड़ा खड़ा करने के बराबर होगा।

सुनीति बाहर फंक्शन में भरे मन के साथ अपनी ( सासू) मां का हाथ पकड़े खड़ी थी… मां के हाथों को उसने मजबूती के साथ पकड़ा था… मानों वो कह रही हो, कोई हो ना हो  मां, मैं आपके साथ हूं

बेटा मेरा हाथ छोड़ कर मुझे कहीं बैठा दो… मां के कहने पर सुनीति को एहसास हुआ, उसके और मां के हाथ के बीच पसीना – पसीना हो गया था।

मां को सुनीति ने खाने की प्लेट पकड़ाई…. मां मौके की नजाकत में स्तब्ध थी….. नाम मात्र को चिड़िया जैसा खाया

अगले दिन तक दीदी की त्योरियां मां को देख- देख कर चढ़ी ही रही।

वो लोग वापस आ चुके थे…. सुनीति ने मां को वही साड़ी पहना कर तैयार किया… मां मंदिर गई… बहुत खुश थी, किसी छोटे बच्चे की तरह

धीरे – धीरे सुनीति मां को जीवन की मुख्य धारा में लाने में सफल हो गई।

कुछ सबके विरोध… कुछ अनापेक्षित समर्थन के बीच…. कुछ वर्षों बाद मां नहीं रही… मगर सुनीति के मन में एक अनकहा संतोष था… रूढ़ियों के विरुद्ध मां का साथ देने का

आज बड़ी दीदी , आई हैं… कुछ समय हुआ जीजा जी नहीं रहे। पिता जी और मां के गुजरने के बाद दीदी  कम ही आती थी… सुनीति से अनकहा खिंचाव, दूरी बना कर चलती थीं।

इसी शहर में   फूफाजी के बेटे का रिसेप्शन है… उसमें शामिल होने।

गाड़ी से उतरी तो सुंदर सूट ,कोट में में खूबसूरती के साथ सजी थी।

सुनीति के मन को संतोष हुआ.. चलो दोनों बेटियां दीदी का बहुत ख्याल रखती हैं।

एक उसी शहर में हैं और दूसरी बाहर…

रात्रि के फंक्शन के लिए दीदी तैयार खड़ी थी…  हरे रंग की सुंदर सी साड़ी,बिंदी,  मैचिंग हरी चूड़ियों  के साथ…

यह पूरा सेट छोटी बिटिया ने लाकर दिया है…. मैचिंग पर्स, सैंडिल सब… कहा है, मम्मी फूफा जी के फंक्शन में अच्छे से तैयार होना..

बहुत अच्छा लग रहा है दीदी… सुनीति ने हंसकर, खुश होते हुए कहा।

फंक्शन में  मामी की बहू… जो कुछ और लोगों के साथ कानाफूसी में लगी थी.. उसे कहते हुए सुनीति ने सुन लिया

बाप थे  बाप फैशन तो देखो….  मैचिंग हरी चूड़ियां.. बिंदी तो देखो कितनी बड़ी लगाई है…. इतनी बड़ी तो तब भी नहीं लगाती थीं…

तब भी कब भाभी?…. जब जीजा जी जीवित थे तब?

सुनीति के कहने पर मामीजी की बहू सकपका गई

वैसे आप क्यों उनका साथ दे रही हैं.. उन्होंने तो हमेशा आपकी बुराई की… आप अपने सासू मां का साथ देती थीं और वो कहती थी मां के ऐसे रहने से मेरी जगहंसाई होती है… आप भी ऐसे इंसान को ग़लत ठहरा सकती हैं…

विरोध किसी इंसान का नहीं बल्कि ग़लत बातों का किया जाता है… तब मां के प्रति दीदी की सोच ग़लत थी

मैं मां को संभालने में कितना परेशान रहती थी.. चाहती थी मां फिर से जीवन की मुख्य धारा में लौटे.. जीवन से प्यार करें… अच्छा है दीदी की बेटियां समझदारी से उनका साथ दे रही हैं… बदलते वक्त के साथ दीदी की भी बदलती सोच देख कर मुझे खुशी हो रही है।

दीदी पीछे खड़ी सब सुन चुकी थीं।

लोगों की बातों के डर से अपनी हरी – हरी  कांच की चूड़ियां उतार कर वो अपने पर्स के हवाले कर चुकी थीं।

गाड़ी में घर लौटते समय दीदी सुनीति के कंधे पर सिर रखकर रोने लगी…. कितनी पागल थी मैं… अपनी मां को देखकर चिढ़ा करती थी… आज लग रहा है हर औरत को अधिकार है सामान्य जीवन जीने का…खुश रहने का

हमेशा मां का साथ देने की तुम्हारी बातों की कीमत अब मैं समझ सकी हूं। जब तक स्वयं पर नहीं बीती मैं नहीं समझ सकी.. मुश्किल वक्त में किसी का साथ निभाना कितना कीमती/ अनमोल होता है। आसान नहीं सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध खड़े हो जाना आवाज़ उठाना….

 सच कह रही हैं दीदी, अगर हम चाहते हैं कि राह निष्कंटक हो तो पहले दूसरे के रास्ते के कांटे साफ करने होंगे…..

अब आपको अपने सामान्य, सहज जीवन में लौटना होगा 

सिर्फ सामान्य ही नहीं….. बल्कि रंगों से भरा जीवन जीने का… किसी को कोई हक नहीं उसके जीवन को रंगहीन कर सके

सुनीति ने दीदी के पर्स से निकाल कर हरी – हरी कांच की चूड़ियां उनके हाथों में वापस पहना दिया था।

दीदी की आंखों से अश्रु धारा बह रही थी…..

सुनीति ने आज फिर अपनी ननद का हाथ अपने हाथों में पकड़ा था…. बेहद मजबूती के साथ.. दोनों हथेलियां एक दूसरे के साथ बेहद गर्मजोशी से जुड़ी थीं… पसीना – पसीना हुई हथेलियां सुनीति का अपनी ननद के प्रति एक अनकहा वादा था कि.. … वो हर परिस्थिति में उनके साथ है…, मतलब सच्चाई के साथ,!…. और ग़लत के विरुद्ध तो वो आवाज़ उठाएगी ही….. बिना किसी के विरोध की परवाह किए!!

पूर्णिमा सोनी

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