सब लोग कहते थे निधि तू अभागन है अरे भगवान ने तुझे एक बेटा नहीं दिया तीन तीन लड़कियां है तेरी ऊपर से तेरा पति .. निठल्ला.. बेकार..!! क्या होगा तेरा मुन्नी.. मां भी सिर पर हाथ मार कर कह उठती थी हे ईश्वर मैं बड़ी अभागी हूं मेरी ही बिटिया के साथ सब कुछ अन्याय करना था तुझे..!!
मैं निधि भी खुद को हतभागी ही समझती थी।पति निठल्ला तीन बेटियां..! भविष्य एकदम अंधकार पूर्ण ही था मेरे लिए।
तीनों बेटियां भी सिर्फ एक अदद बेटे की प्राप्ति की कामना में ही धरती पर आईं थीं जैसे उनके आने की उनके पैदा होने की किसी को कोई प्रतीक्षा ही नही थी खुशी ही नही थी।हर बार हर लड़की के जन्म पर उलाहने मिले खरीखोटी सुनाई गई और आंसू बहाकर शोक मनाया गया।
मैं हमेशा खुद को तीन बेटियों की मां होने का अपराधी समझती थी ग्लानि महसूस करती थी और सास के उलाहने सुनने को हमेशा तैयार रहती थी।मुझे अपना जीवन निरर्थक लगता था जो एक पुत्र को जन्म ना दे सकी थी।
जेठानी तो राजरानी बनी घूमती थीं।दो दो पुत्रों की मां जो थीं।खानदान के वारिसो को लाने वाली सुभागी थी वह। सास ससुर बड़ी बहू के गुणगान गाते ना थकते थे और निधि को जली कटी सुनाते।
बिचारी निधि सारे घर का पूरा काम करके भी जीठानी के बगल में बैठने के काबिल नहीं समझी जाती थी।उसकी बेटियो के साथ खुले आम भेदभाव किया जाता था। उनके लिए तो नाम भी नहीं छांटे गए थे बेटो के लिए नाम सोच कर रखे गए थे पर हो गईं बेटियां..!! बड़ी,मंझली और छोटी यही नाम थे तीनों लड़कियों के..!!जिठानी के बेटो के लिए जहां नए कपड़े जूते लाए जाते थे वहीं निधि की बेटियों को क्या करोगी नए कपड़ो का अभी है तो तुम्हारे पास घर में ही तो रहना है
तुम लोगो को या बाप की कोई कमाई नहीं ऊपर से नखरे दिखा रही हो..!!दूध रबड़ी मिठाई फल मेवे सब जिठानी के बेटों के लिए दादी रख देती थी… लड़के हैं तंदुरस्त रहना चाहिए बड़े होकर इन्हे ही तो पूरे घर को आगे लेकर जाना है अभी से कमजोर रहेंगे तो क्या होगा..!!।लड़कियों को तो पतला ही रहना चाहिए ।अभी से आदत डाल लो पराए घर में रहने की … शादी कौन करेगा तुम लोगों से….!!दादी के पास हर तर्क थे।
एक दिन निधि की छोटी बेटी ने जो थोड़ी तेजमीजाज थी दादी की नजर बचा कर एक सेब खा लिया तो हंगामा हो गया।दादी को पता चल गया पकड़ के पिटाई करनी शुरू कर दिया… अभागी ….लड़की जात होकर ये कुसंस्कार सीख रही है चोरी करती है … तेरी मां बड़ी अभागन है एक तो तीन लड़कियां पैदा की वे भी ऐसी चोर….! दादी के कुबौल उनके हाथों की मार से ज्यादा मर्मांतक पीड़ा दे गए..! बिफर कर खड़ी हो गई थी छोटी, बस दादी बस… मेरी मां अभागन नही हैं हम तीनो भी अभागी नही हैं आइंदा से मेरी मां को अभागन ना कहना…. दादी के हाथ से छड़ी छिनती वह चिल्ला उठी थी।
जल्दी से आकर निधि उसे छुड़ा कर अपने साथ ले गई थी।
आज उसे भी खुद पर क्रोध आ रहा था कि वह भी तो अपनी बेटियो के साथ हो रहे भेदभाव को खामोशी से देखती रहती है।विरोध तो करना ही चाहिए क्या लड़की होना गुनाह है..!! दादी ने तो उसी दिन उन्हें घर से अलग कर दिया था लेकिन अब निधि अपनी बेटियों को मजबूत बनाने में पूरी ताकत से जुट गई।
ना मैं ना मेरी बेटियां अभागन हैं.. दुनिया के सामने यह साबित करने को जैसे निधि भी छोटी की बात के समर्थन में कृतसंकल्पित हो उठी थी..!सबके लाख विरोध के बावजूद उनका स्कूल में दाखिला करवाया नामकरण करवाया पढ़ाई लिखाई जारी रहे इसके लिए हर जतन करती रही।लड़कियां पढ़ाई में होशियार थीं छात्रवृत्ति मिलती गई और वे आगे पढ़ती गईं… ।
आज उसकी तीनो बेटियां अपने पैरों पर खड़ी हैं सशक्त और सक्षम ….धन की कोई कमी नहीं है ।
मां ….दादी आपको कब से बुला रही हैं कहां खोई हो आप… छोटी बेटी जो अब डॉक्टर बन गई थी सामने खड़ी थी।
हां हां बेटा चल दादी के पास ले चल कैसी तबियत है अब उनकी… हड़बड़ा कर निधि अपने विचारो के झंझावात को झटक कर अपनी साड़ी संभालती खड़ी हो गई।
आप खुद ही चल कर देख लो कहती छोटी निधि को दादी के पास ले गई।
शहर के जाने माने हॉस्पिटल का सबसे बड़ा और सबसे महंगा सुसज्जित कक्ष था यह जहां छोटी ने अपनी बीमार दादी को एडमिट करवाया था और शहर के बेस्ट डॉक्टर्स उनकी चिकित्सा में लगे थे खुद छोटी भी।छोटी को जैसे ही पता चला था दादी सख्त बीमार हैं उन्हें हृदय की समस्या है और घर में वह एकदम अकेली हैं वह बिना किसी की परवाह किए खुद उसी घर में पहुंच गई थी जहां से उसे और उसकी मां बहनों को बाहर निकाल दिया गया था।दादी की हालत नाजुक थी उन्हे हृदयाघात हुआ था उनके पोते उन्हें ऐसी हालत में छोड़कर मां पिता के साथ घूमने चले गए थे।छोटी ने दादी की सेवा चिकित्सा में कोई कसर नहीं छोड़ी थी ..!!
निधि आ मेरे पास बैठ बहू वैसे तो मैं इस लायक नही हूं कि तू मेरी शकल भी देखे …. दादी ने निधि को देखते ही विगलित स्वर में कहा।
नहीं नही मां जी आप कैसी बात कर रही हैं सब आपके ही आशीर्वाद का फल मिला है इन बच्चियों को जो कुछ बन पाईं हैं.. निधि संकुचित हो उठी।
हां हां दादी… मां सही कह रही है अगर बचपन में आपका आशीर्वाद भरा हाथ ना मिला होता तो…. छोटी ने मुस्कुरा कर तुरंत मां की बात पकड़ते हुए कहा ।
मैंने कब आशीर्वाद दिया इन बच्चियों को हमेशा कोसती रही इन्हे भी और तुझे भी इनका हक मारकर जिन लडको पर जान छिड़कती रही वे तो मुझसे किनारा कर गए ।जिस बहू को मैं हमेशा अभागन्न कहती रही आज वही मेरा भाग्य बनकर आई है…..धन्य है बहू तू और तेरी ये लायक बेटियां जिन्होंने मुझ अभागन को इस बुढ़ापे में सहारा दिया जान बचाई…..आगे के शब्द गले में रुक से गए थे।
अरे दादी जिसकी पोती डॉक्टर बनकर सामने खड़ी हो वह अभागन कैसे हो सकती है.. छोटी ने लपक कर दादी और मां दोनों को गले से लगा लिया …।
निधि का दिल गर्व और आत्मसंतोष से भर गया था अपनी बेटी के संस्कार और व्यवहार देख कर..!!
अभागन #
लतिका श्रीवास्तव
सुन्दर कथानक…मूल लेखक को साधुवाद…
@GirirajSrivastava, uska nam Latika hai