अखिल और राजेश आज अपने बेस्ट फ्रेंड विवेक की शादी में आए हुए थे। उसकी सगाई में भी दोनों ने बहुत इंजॉय किया था और खूब डांस किया था।
वे लोग शादी में भी सुबह तक रुकना चाहते थे लेकिन अगले दिन सुबह अखिल की ऑफिस में एक अर्जेंट मीटिंग थी, पहुंचना जरूरी था। इसीलिए वह खाना खाकर फटाफट वहां से निकलना चाहता था। राजेश ने कहा-“मैं भी जल्दी निकल जाऊंगा।”
दोनों ने विवेक को पहले ही बता दिया था।वो पहले थोड़ा नाराज हुआ लेकिन बाद में समझ गया। आखिर वह भी तो जॉब करता था।
अखिल और राजेश ने पहले थोड़े स्नैक्स और फिर खाना खाने गए। अखिल ने पालक पनीर, दाल और दो रोटियां लीं और राजेश ने दो बटर नान, दो मिस्सी रोटी, चावल,चार तरह की सब्जी सब कुछ ले लिया। उसकी प्लेट पूरी तरह भर चुकी थी।
अखिल ने कहा-“यार क्या कर रहा है, कितना खाना डालकर लाया है। अगर किसी चीज की जरूरत हो तो बाद में भी तो ले सकता है।”
राजेश-“बहुत भूख लग रही है, और फिर बार-बार लेने कौन जाएगा, चल आराम से बैठकर खाते हैं।”
दोनों कुर्सी टेबल पर प्लेट रखकर आराम से खाने लगे। अखिल ने अपना खाना खत्म कर लिया था और राजेश खाना खा ले, बस यही इंतजार कर रहा था। उसने देखा कि एक नान और एक मिस्सी रोटी खाने के बाद राजेश से खाना नहीं खाया जा रहा है।
तभी राजेश बोला-“यार अखिल, पेट बहुत ही भर गया है और नहीं खाया जा रहा और फिर अभी कुल्फी भी तो खानी है। तू बैठ,मैं अभी आता हूं।”राजेश उठकर चला गया और अपनी खाने से से आधी भरी प्लेट को झूठ बर्तनों के टब में फेंक दिया। उसके पीछे-पीछे अखिल भी आ गया था और उसने थोड़ी जोर से कहा-“राजेश, क्या है यह सब, खाना खाया क्यों नहीं, फेंका क्यों?”
राजेश-“धीरे बोल यार, सब हमारी ओर देख रहे हैं। नहीं खाया जा रहा था।”
अखिल-“तो इतना लिया क्यों था?”इतने में एक और जनाब आए और अपने बचे हुए खाने को टब में फेंक दिया।
अखिल उन पर भी चिल्लाया-“शर्म नहीं आती आप लोगों को, कितने लोग भूख से मर जाते हैं और आप लोग बेहिचक खाना कूड़े में फेंक रहे हैं। जितना खा सको, उतना क्यों नहीं लेते प्लेट में।”
उसे आदमी ने और राजेश ने कहा -“सॉरी”
अखिल-“एक-एक अन्न के दाने को उगाने में किसान ने जो मेहनत की, वह आपकी सॉरी से वापस आ जाएगी। और जो लोग भूख से मर रहे हैं उनका क्या। चलिए आप लोग मेरे साथ, मैं दिखाता हूं आपको, क्या होती है भूख और क्या होती है रोटी की असली कीमत।”
दूसरा आदमी भीड़ का फायदा उठाकर गायब हो गया लेकिन अखिल राजेश। को गाड़ी में बिठाकर झुग्गी झोपड़ियों के बाहर और फिर फुटपाथ पर ले गया।
उसने राजेश को दिखाई कुछ बच्चे कूड़े में से रोटी ढूंढ कर उसे पानी से धोकर खा रहे थे। फुटपाथ पर बैठा एकबूढ़ा भिखारी ब्रेड पाव को पानी में भिगोकर नरम करके जैसे तैसे चबाकर खा रहा था।
एक लड़की रो रही थी और साथ ही कूड़े में पड़े चावल अपनी चुन्नी से छान कर, झाड़ कर मिट्टी अलग करके चावल खा रही थी।
आगे गए तो दो बच्चे कुत्ते से रोटी छिनने की कोशिश कर रहे थे। बस, अब अखिल से और देखा ना गया। उसने कार को ढाबे की तरफ मोड़ दिया और वहां से 10- 15 लोगों का खाना पैक करवा कर, उन सब लोगों में बांट दिया।
उसने राजेश से कहा-“देखा तुमने, भूख क्या होती है। तुमने कितना सारा खाना कूड़े में फेंक दिया, क्या तुमने कभी रोटी की कीमत समझी है। रोटी की कीमत वही समझ सकता है जिसने भूख को समझा है और सहा है। माना कि हम सबकी मदद नहीं कर सकते, पर इतना तो कर ही सकते हैं कि खाना बर्बाद ना करें।”
राजेश बहुत शर्मिंदा था। उसने कहा-“अखिल, सही कहा-तुमने, मैं तुमसे वादा करता हूं कि मैं कभी खाना बर्बाद नहीं करूंगा और ना ही किसी को करने दूंगा। मैं तुझे जितना जानता हूं उस अंदाज से मैं समझ रहा हूं कि तूने बचपन में जरूर कुछ दुखद सहन किया है। बता दे यार मन हल्का हो जाएगा।”
अखिल की आंखों में आंसू थे। उसने बताया-“मेरे पापा ऑटो चलाते थे । मेरी एक छोटी बहन, मैं और मम्मी पापा घर में हम चारों थे। हमारे पड़ोस में रिक्शा चलाने वाले एक अंकल रहते थे। उनका एक छह साल का बेटा था बंटी। रिक्शा वाले की पत्नी सिर में बुखार चढ़ जाने के कारण अचानक गुजर गई। उसके बाद उसने रिक्शा चलाना छोड़ दिया। उसकी और बंटी की भूखों मरने की नौबत आ गई। मेरी मां अक्सर बंटी को खाना खिला देती थी। मेरे पापा ने रिक्शा वाले को कई बार समझाया कि काम धंधा शुरू करो। अपने बच्चे के बारे में सोचो, उसकी पढ़ाई-लिखाई करवाओ। कब तक ऐसे दुख में डूबे रहोगे।”
एक बार मेरी मां ने बंटी को खाना दिया तो वह बेचारा बच्चा” मेरे पापा भूखे हैं”कहकर खाना अखबार में लपेटकर उन्हें खिलाने के लिए घर ले जा रहा था। तभी अचानक बंदरों की टोली न जाने कहां से आ गई और बंटी के हाथ से लपेटी हुई अखबार छीन ली, बंटी के हाथ में रोटी का एक टुकड़ा रह गया। बंदर छत की मुंडेर पर चढ़ गया। बंटी का सारा ध्यान उस बंदर पर था। बंटी कह रहा था-“ओ बंदर, मेरी रोटी वापस कर दे, मेरे पापा को और मुझे बहुत भूख लगी है। तू थोड़ी सी ले ले, और बाकी वापस कर दे।”
बंदर एक छत से दूसरी छत पर, दूसरी से तीसरी छलांगें लगा रहा था। और बंटी पीछे-पीछे पूरी गली में भाग रहा था। कुछ ही देर में बंदर आंखों से ओझल हो गया और बंटी भागते-भागते छतों की ओर निहारते हुए ,न जाने कब सड़क तक पहुंच गया और एक गाड़ी सेटकरा गया। टकराते ही वह लहूलुहान होकर गिर पड़ा। उसने इस अवस्था में भी यही कहा-“मुझे भूख लगी है मेरी रोटी बंदर—–“। और फिर उसने दम तोड़ दिया। जब उसकी छोटी सी मुट्ठी देखी गई तो उसमें एक टुकड़ा रोटी का बंद था।
उसकी दुर्घटना की खबर सुनकर उसके पिता को गहरा सदमा लगा और उन्होंने भी प्राण त्याग दिए। बंटी भूखा था और उसके पिता भी। मैं आज भी उस घटना को और रोटी के लिए भागते हुए बंटी को आज भी भूल नहीं पाया हूं। हां मैं मानता हूं कि बंटी के पिता की भी काम ना करने की गलती थी।”
अखिल उदास था और राजेश भी उदास था और फिर दोनों अपने-अपने घर की ओर चल दिए।
स्वरचित अप्रकाशित गीता वाधवानी दिल्ली
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