क्यूं ना करूं अपनी किस्मत पर नाज़ – प्रतिभा भारद्वाज ‘प्रभा’ : Moral Stories in Hindi

“मैया, ये देखो आज हमने कितनी सुंदर पोशाक बनाई हैं….” राधिका और माला ने यशोदा जी से कहा

“अरे वाह! मेरी बच्चियों बहुत सुंदर….” 

“और आज के लिए ये फूलमालाएं भी तैयार हो गईं है….” इतने में अराध्या और ललिता भी कहती हुई आईं।

और फिर सब गाती बजाती मंदिर अपने कान्हा के दर्शन करने चल दीं।

यशोदा जी जो लगभग 60 साल की महिला थीं बहुत ही खुश नजर आतीं थीं जबकि यशोदा इनका बचपन का नाम नहीं था…और अपना असली नाम तो आज शायद ही इनको याद हो, यशोदा नाम तो इन्हें यहां वृंदावन के निवासियों ने उन्हें दिया था लगभग 30 साल पहले जब ये यहां आईं थीं…..

जब ये यहां आईं तब अकेली ही थीं और किसी से ज्यादा बातचीत भी नहीं करतीं केवल अपने भजन कीर्तन में लगीं रहती ….एक छोटे से मंदिर के पास बने बनामदे में ही इन्होंने अपना आश्रय बना लिया था….जब 2–3 दिन हो गए तब मंदिर के पुजारी ने उनसे जब उनके बारे में पूछा तब उन्होंने ज्यादा कुछ तो नहीं बताया केवल यह बताया कि उनका कोई नहीं है।

पुजारी जी, “अरे बहन ऐसे कैसे कोई नहीं हैं, जिनका कोई नहीं होता उनका ईश्वर होता है इसलिए ये कभी मत कहना कि तुम्हारा कोई नहीं है…भगवान तुम्हारा भला करेंगे…”

यशोदा जी उन्हें एकटक देखती रही और हां में गर्दन हिलाकर हाथ जोड़ते हुए उनकी बात की सहमति जता दी।

2 दिन बीते होंगे कि यशोदा जी को रात लगभग 9 बजे किसी बच्चे के रोने की आवाज आई जब उन्होंने आसपास देखा तो कुछ दूरी पर एक पेड़ के नीचे एक कपड़े में एक बच्ची लिपटी दिखाई दी, उसके आस पास कोई नहीं था ….. यशोदा जी ने उसे पूरी रात अपने पास रखा और सुबह होते ही उसे लेकर पुलिस स्टेशन पहुंच गई। 

पुलिस ने कुछ जरूरी कार्यवाही करते हुए यशोदा जी से कहा कि यहां तो ये बच्चियां न जाने कितनी मिलती हैं….अभी हम किसी संस्था में बात कर इस बच्ची का इंतजाम करते हैं जब तक यदि आप रखना चाहें तो आप रख लें….

पुलिस की यह बात सुनकर यशोदा जी फूले नहीं समाई और बोलीं ” क्या मैं इस बच्ची को अपने पास हमेशा रख सकती हूं….”

“ठीक है अगर तुम चाहो तो रख लो….”

बस फिर क्या था उस बच्ची को भगवान का प्रसाद मानकर अपने सीने से चिपकाए यशोदा जी आ गईं और तभी से लोगों ने उनका नाम यशोदा मैया रख दिया था।

वहां के लोगों ने उनके लिए रहने की व्यवस्था कर दी…..और पुजारी जी से कहकर मंदिर की साफ सफाई का काम उन्हें मिल गया…

वह नियमित मंदिर जाती और पूरा दिन उस बच्ची के पालन पोषण में बीतता…

 उन्होंने भगवान जी की फूलमालाएं भी बनाना शुरू किया जिन्हें बेचकर भी उन्हें कुछ रुपए मिल जाते थे।

ऐसे ही समय बीत रहा था कि उन्होंने मंदिर में एक रोती हुई स्त्री को देखा जिससे पूछने पर पता चला कि उनके घरवालों ने उसे निकाल दिया है और वह यहां प्रभु की शरण में आई है।

उसकी बातें सुन उसे भी यशोदा जी अपने साथ ले आईं इसी तरह तलाकशुदा महिलाएं, विधवा महिलाएं और अनाथ बच्चियां उनकी जिंदगी में आती रहीं और उन सबको वो दिल से अपनाती रहीं….

जीवनयापन के लिए कोई भगवान जी की पोशाकें बनाता, कोई श्रृंगार का सामान, कोई रुई से बत्तियां बनाता तो कोई फूलों से फूलमाला…..भगवान जी की कृपा से स्थानीय लोगो का उन्हें साथ और स्नेह मिला….सब लोग एक परिवार की तरह मिलजुल कर रहते और भगवान के श्री चरणों में समर्पित थे….अनाथ बच्चियों को एक मां की तरह पालतीं, उन्हें पढ़ाती लिखातीं….विवाह योग्य होने पर उन्होंने बच्चियों का विवाह भी करवाया….

यशोदा जी को सब यशोदा मैया कहकर बुलाते….जब कोई परेशान होता तो वह सबको बोलती ” अरे परेशान क्यों हो रही हो….वो हैं न जिन्होंने हमें जन्म दिया हैं, सब भला करेंगे…”

एक बार मंदिर जाते समय रास्ते में किसी के मुंह से जब उन्होंने सुना कि बेचारी किस्मत की मारी हैं जो यहाँ अपने परिवार के बिना जीवनयापन करने को मजबूर हैं तो वह भड़क उठी ” हम हम किस्मत की मारी हैं, अरे हमें तो अपनी किस्मत पर नाज़ है नाज, और क्यों न करें हम अपनी किस्मत पर नाज़……अरे जिन्हें तुम परिवार वाले कहते हो वो सब स्वार्थी होते हैं यह मैं जानती हूं….मेरा भी भरा पूरा परिवार था, पति था….जैसे ही विवाह के 5 साल बाद डॉक्टरी जांच में ये पता चला कि मैं मां नहीं बन सकती छोड़ दिया

मुझे और व्याह लाया किसी और को….मुझे बना दिया नौकरानी….मुझे तब भी कोई परेशानी नहीं थी…लेकिन ज्यादतियां इतनी बढ़ी कि मुझे एक मूक पशु की तरह ही समझ लिया जाता जिसके मन में जो आता वो कह जाता….बर्दास्त के बाहर तब हो गया जब एक अकेले में परिवार के ही एक व्यक्ति ने मेरे साथ जबरदस्ती करनी चाही और मेरे विरोध करने पर सारे परिवार वाले एक होकर मुझे सुनाने लगे….छोड़ दिया मैंने वो परिवार….और आ गई अपने कान्हा जी के पास और ये देखिए

आज कितने लोगों की मां हूं मैं…सब मुझे प्यार से मैया बुलाते हैं….और इसी तरह ये जितनी भी मेरे साथ रह रहीं हैं अपने परिवार के धोखे, नफरत को सहकर ही आईं हैं….अरे जन्म देने से कोई मां नहीं बन जाता और खून के संबंधों से ही कोई परिवार नहीं हो जाता….

मां बनने के लिए ममता…और परिवार के लिए लोगों के आपसी सहयोग, विश्वास और प्रेम की जरूरत होती है जो मेरे पास बहुत है….और जब हमारे साथ हमारे कान्हा जी हैं तो फिर हमसे अच्छी किस्मत भला किसकी हो सकती है जहां प्रेम ही प्रेम है… लड़ाई झगड़ा, नफरत  कुछ नहीं ……” कहती हुई यशोदा मां अपनी मुंहबोली बेटियों के साथ भजन गाती हुई और अपनी किस्मत पर नाज़ करती हुई मंदिर चली गईं….

प्रतिभा भारद्वाज ‘प्रभा’

मथुरा (उत्तर प्रदेश)

#क्यूं ना करूं अपनी किस्मत पर नाज़

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