मिस्टर आर्यन और उनकी पत्नी विनायक सोसाइटी के दूसरी मंजिल पर एक प्लेट में रहते थे। वह तीन मंजिला मल्टी थी, और कुल २४ फ्लैट थे। मल्टी के बाहर काफी खुली जगह थी।उसके चारो तरफ रंग- बिरंगे फूलो की क्यारियॉं थी,
ऊपर शैड डला हुआ था। सोसाइटी में प्राय: सभी लोग मध्यमवर्गीय परिवार के थे, और सब समुदाय के लोग थे। हर त्यौंहार हॅंसी, खुशी और उल्लास के साथ,उस खुले स्थान पर मनाया जाता था। किसी के घर पर अगर कोई शुभ, अशुभ घटना होती
तो उसके लिए निर्धारित शुल्क जमा कर उस स्थान को उपयोग में लाया जा सकता था। सब लोग एक परिवार की तरह रहते और एक दूसरे की मदद करते थे। बस एक मिस्टर आर्यन ही ऐसे थे जिनकी गर्दन हमेशा ऐंठी रहती थी,
किसी के सुख, दुःख में या किसी त्यौहार में शामिल होते तो ,सिर्फ ऐसे, जैसे उन्हें किसी से कोई मतलब नहीं है। वे ऐसा जताते जैसे आकर सब पर ऐहसान किया हो। पत्नी भी किसी से कुछ नहीं बोलती। मिस्टर आर्यन ही ऐसे थे जो अपने नाम के आगे कोई सरनेम नहीं लगाते थे,
कभी कोई पूछता तो भड़क जाते, लोगों ने पूछना ही बंद कर दिया। सभी लोग उनके पीठ पीछे उन्हें ऐंठी गर्दन वाले ही कहते थे। एक सोसाइटी में रहते थे, इसलिए सभी लोग उन्हें बुलाते थे। उनकी इच्छा होती तो जाते नहीं होती तो नहीं जाते। वर्मा जी की चार लड़कियां थी।
बढ़ी लड़की की शादी थी। वर्माजी की आर्थिक स्थिति ठीक नहीं थी। भोजन सामान्य खाने लायक था। मिस्टर आर्यन पता नहीं किस बात पर भरभराए थे, भोजन की बुराई करने लगे। लोगों ने कहा ‘आपको जो अच्छा लगे खाए न लगे तो न खाएं, इस तरह मजाक न बनाए।
पता नहीं किन मुश्किलों में वे अपनी बेटी की शादी कर रहे हैं।’मगर वे नहीं माने उन्होंने थाली में भोजन परोसा और एक- एक चीज चखते गए और थू…थू…करते गए, फिर थाली को रख दिया और हंसते हुए चले गए। वर्मा जी रूंआसे हो गए, तो सबने कहा
‘आप परेशान न हो, भोजन अच्छा बना है। हम सबने आराम से खाया।अब आगे क्या करना है? आगे की रस्मों की तैयारी करते हैं।’ सबने मिलकर हर्ष उल्लास के साथ बेटी को बिदा किया। इस घटना के बाद,किसी भी कार्यक्रम में किसी ने मिस्टर आर्यन को नहीं बुलाया।
छह महीने बाद मिस्टर आर्यन के बेटे की शादी थी, उन्होंने बहुत धूमधाम से तैयारी की,एक ही बेटा था, बहुत खर्चा किया, सुन्दर आमंत्रण पत्र छपवाए, सुन्दर साज सज्जा की, सभी को चौकीदार के हाथ कार्ड पहुँचवाऐं। वे चाहते थे,
कि सोसाइटी वाले उनकी शान- शौकत को देखे और स्वादिष्ट भोजन की प्रशंसा करे। मगर सोसाइटी में सबने एकता कर ली थी इसलिए कोई भी विवाह समारोह में नहीं गया। मिस्टर आर्यन ने कुछ लोगों से पूछा तो सभी ने यही कहा आप अगर चाहते हैं
कि हम सब आए तो आप वर्माजी से मॉफी मांगिए। मिस्टर आर्यन ने सोचा अगर ये लोग मेरे बेटे के विवाह में नहीं आऐंगे तो…. तो मेरी क्या इज्जत रह जाएगी? और विवाह में क्या आनन्द आएगा? उन्होंने वर्माजी से माफी मांगी।
उनकी एठी गर्दन एक झटके में सीधी हो गई थी। सभी लोग शादी में गए और विवाह सआनन्द सम्पन्न हो गया। आगे से मिस्टर आर्यन भी सोसाइटी में होने वाले कार्यक्रम में प्रसन्न मन से भाग लेने लगे थे। यह उस झटके का प्रभाव था जो सोसाइटी के लोगों ने उन्हें दिया था।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित