अरमान – डाॅक्टर संजु झा : Moral Stories in Hindi

शादी की पहली सालगिरह पर पति सुयश ने नैना को दिल के आकार का हीरे का लाॅकेट गिफ्ट में दिया है।इतना प्यारा -सा गिफ्ट पाकर नैना की आँखों से मूसलाधार बारिश  होने लगी,जिसकी बाढ़ में उसकी सारी कटू यादें बहकर बाहर आने लगीं।

बड़े ही अरमानों के साथ  उसकी माँ ने उसकी शादी  इंजीनियर  अजय से तय की थी।उसमें नैना की भी सहमति थी।नैना का ग्रेजुएशन पूरा हो चुका था।आगे पढ़ने में उसकी कोई खास  रुचि नहीं थी।बस उसके दिल में  सुखी दाम्पत्य-जीवन के अरमान  थे।शादी तय होने के बाद  से ही नैना  दिन-रात अपने होनेवाले पति के ख्वाबों में खोई-खोई रहती।बनना,सँवारना,आईने में खुद को बार-बार देखना और पिया के घर जाना ,यही उसके अरमान  बन गए थे। कल्पना की दुनियाँ में खोई नैना के पाँव जमीन पर नहीं पड़ रहे थे।

शादी के दिन नैना खुबसूरत परी लग रही थी।उसका दूल्हा  अजय भी उतना ही खुबसूरत था।खुबसूरत  दूल्हा-दुल्हन  सभी को अपनी ओर आकर्षित कर रहे थे।सभी नैना की माँ मीना जी से पूछ रहे थे -“इतना खुबसूरत दामाद आपने कहाँ से ढ़ूँढ़ा?”

मीना जी भी अपनी पसन्द पर इतरा रहीं थीं।उन्होंने इस शादी के बारे में अपने किसी रिश्तेदार को भनक तक नहीं लगने दी।बस शादी के  एक सप्ताह  पहले कार्ड-वितरण के समय सभी को बताया।रिश्तेदारों के बीच मीनाजी के चेहरे पर गर्व भरी मुस्कान थी,मानो बिना पति के ही उन्होंने अपनी बेटी के लिए इतना सुन्दर लड़का खोजकर किला फतह कर ली हो।

 नैना शादी के बाद  मन में ढ़ेर सारे अरमान, उमंग ,उत्साह  लिए ससुराल  पहुँची।ससुराल में एक  शादी-शुदा ननद और सास-ससुर थे।ससुराल में दो-चार दिनों तक काफी गहमा-गहमी रही।नैना जब-तब अपने पति अजय को चोरी-चुपके देख लिया करती थी।अभी पति मिलन के उसके अरमान अधूरे ही थे।

सभी रिश्तेदार जा चुके थे ।नैना अपने अरमानों को समेटे पति-मिलन की आस में बेकरार थी।मिलन की रात न तो सुहाग की शय्या सजाई गई,न ही उसके स्वागत में फूलों की लड़ियाँ झूम रहीं थीं।कुछ-कुछ अटपटा लगने पर भी नैना ने पति मिलन की कल्पनाओं से खुद को सराबोर कर लिया।

पति अजय ने कमरे में आते ही उसके अरमानों पर तुषारापात करते हुए कहा -” नैना!माता-पिता की इच्छा पूरी करने के लिए  मैंने तुमसे शादी की है।मेरे दिल में कोई और है।तुमसे मेरा कोई  रिश्ता नहीं है।तुम मेरी तरफ से आजाद हो।”कहकर कमरे से बाहर निकल गया।

कहाँ तो नैना कल्पना के चरम शिखर पर पहुँचकर दाम्पत्य-सुख के सागर में गोते लगा रही थी,और कहाँ पति अजय की निष्ठुर वाणी ने उसे वास्तविकता की बंजर भूमि पर लाकर पटक दिया!एक ही पल में उसके सारे सपने ,अरमान रेत की घरौंदे की तरह दुख के सागर में एकसार  हो गए। नैना के दिल में कई सवाल थे।वह अजय से पूछना चाहती थी कि तुमने एक लड़की की जिन्दगी से खेलने की जुर्रत कैसे की ? एक-दो बार अजय से पूछने की कोशिश भी की ,परन्तु निष्ठुर,बेशर्म अजय न तो उसकी ओर देखता,न ही उसके सवालों के जबाव  देता।

भारतीय मूल्यों,संस्कारों में जकड़ी नैना अजय को अपना पति मान चुकी थी।कुछ दिनों तक तो उसकी सास उसे दिलासा देती हुई कहती -“बहू!धैर्य रखो।समय के साथ सब ठीक हो जाएगा।”

नैना भी अजय के लौट आने की उम्मीद  लगाए बैठी थी।उसके लिए किसी अन्य पुरुष के बारे में सोचना भी पाप था।उसके दिल में बस एक ही ख्याल बार-बार आता -“शादी तो केवल एक बार होती है,बार-बार  नहीं।”

समय के साथ पति के साथ-साथ सास-ससुर का व्यवहार भी उसके प्रति खराब होता चला गया।ससुरालवाले किसी तरह नैना को वहाँ से भगाना चाहते थे,परन्तु नैना ससुराल में ही रहकर परिस्थिति को अनुकूल करना चाहती थी।एक दिन ससुरालवालों ने धोखे से नैना को मायके भेज दिया।कुछ समय बाद तलाक के कागज भी!नैना तलाक के कागज हाथ में लेकर अपने दुर्भाग्य को कोस रही थी।उसके जीवन  में खुशियाँ रुपी बसन्त आने से पहले ही दुख रुपी

 पतझड़ आकर उसके अरमान रुपी पत्तों को गिरा चुका था।

नैना की माँ मीनाजी से बेटी का दुख देखा नहीं जा रहा था।उन्होंने नैना के ससुरालवालों को धमकाते हुए कहा -“मेरी बेटी के साथ तुमलोगों ने छल किया।मैं सबको दहेज उत्पीड़न कानून में अंदर करवा दूँगी।”

ससुरालवालों ने मीना जी को हल्के में लेते हुए सोचा -“नैना के तो पिता हैं नहीं,भाई  भी छोटा है,तो अकेली माँ क्या कर लेगी?”

 यही सोचकर उनलोगों  का रवैया अड़ियल ही रहा।आखिर जब मीनाजी ने उनलोगों पर केस कर दिया,तब उनके हाथ-पैर फूल गए।अब उनके जेल जाने की नौबत आ गई। फिर ससुरालवालों ने नई चाल खेलते हुए कहा -” आपलोग सारे केस वापस ले लो,हमलोग नैना को अपना लेंगे।”

नैना के दिल में अजय के प्रति अभी भी प्यार  भरा हुआ था।उसने पति मोह में आकर सारे केस वापस ले लिए। केस वापस होते ही  ससुरालवालों ने नैना से पीछा छुड़ा लिए। अब धीरे-धीरे नैना को समझ में आने लगा था कि दिल के रिश्ते जबरदस्ती नहीं जुड़ते।फिर भी वह अजय को भूलने के लिए तैयार नहीं थी।उसकी माँ मीनाजी उसे समझाते हुए  कहती “बेटी!

अजय को भूल जाओ,हम तुम्हारी दूसरी शादी करा देंगे।”परन्तु नैना दूसरी शादी करने के लिए  बिल्कुल तैयार नहीं थी।दिनभर गुमसुम पड़ी रहती।उसकी माँ मीनाजी बेटी की हालत के लिए खुद को जिम्मेदार मानते हुए  मन-ही-मन सोचती-” अगर शादी से पहले मैं लड़के के बारे में अच्छी तरह पता कर लेती,तो ये दिन देखने नहीं पड़ते!”अब पछताए  होत क्या,जब चिड़िया चुग गई खेत वाला मुहावरा उनपर चरितार्थ हो रहा था।

नैना का भाई  पुणे में मैनेजमेंट कर रहा था।मीनाजी ने आगे की पढ़ाई के लिए  नैना को भाई के पास पुणे भेज दिया।वही पढ़ाई के सिलसिले में नैना की दोस्ती सुयश से हुई। सुयश के साथ घूमना,बातें करना नैना को अच्छा लगने लगा।सुयश का साथ नैना को एक अलग ही एहसास दिलाता।उसका दिल जो रेगिस्तान  की तपती रेत-सा झुलस चुका था,उसमें सुयश का साथ बारिश की ठंढ़ी फुहारें बन जाता।प्रेम के सुखद एहसासों से नैना का दिल अछूता था,सुयश उन एहसासों में कोमलता भर रहा था।

नैना को अब एहसास हो रहा था कि उसने अब तक अजय की खोखली मूर्ति दिल में बसाकर रखी थी।धीरे-धीरे सुयश की उमंग भरी बातें उसके दिल में उम्मीदों के फूल खिला रहीं थीं। सुयश ने अपने प्यार की गर्माहट से अजय की यादों को नैना के दिल से अपदस्थ कर दिया।नैना के दिल में सुयश का प्यार अंगड़ाईयाँ लेने लगा।

सुयश का प्यार  रिश्तों की कोमलता पर विश्वास का लेप चढ़ाने लगा।नैना भी सुयश के प्यार की बाढ़ में बह जाना चाहती थी,परन्तु अतीत की कठोर यादें उसके वर्त्तमान पर काली घटा बनकर  छा जाया करती थी।उसे महसूस होता कि जिस  प्यार को उसने सुयश के साथ जिया है,वह कहीं छलावा न साबित हो जाएँ!सही कहावत है-‘दूध का जला छाछ फूँक-फूँककर पीता है।’

सुयश  का प्यार नैना के प्रति सच्चा था।अपने माता-पिता के विरोध के बावजूद उसने तलाकशुदा नैना से शादी कर ली और उसके सुप्त अरमानों को जगाकर उसकी जिन्दगी में ढ़ेर सारी खुशियाँ भर दी।

उसी समय नैना की सोच पर विराम  लगाते हुए  सुयश  पूछता है-” नैना!कहाँ खो गई?अभी भी मेरे प्यार में कोई कमी रह गई?” 

नैना उठकर सुयश के गले लग जाती है।

समाप्त। 

लेखिका-डाॅक्टर संजु झा (स्वरचित)

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!