रामदीन और केशव पक्के दोस्त थे। ये बचपन के दोस्त आज लगभग ७० की उम्र के हो गए थे। दोनों खेती किसानी करते और अपने परिवार का भरण पोषण करते। समय आने पर एक दूसरे की मदद करते। दोनों का जीवन एक दूसरे के लिए एक खुली किताब की तरह था। कोई छल बंद नहीं। एक दूसरे की सलाह लेते कहीं कोई मतभेद नहीं था।
रामदीन के दो बेटे थे जो उसके साथ खेती करते थे। केशव की एक बेटी की शादी कर दी थी और बेटा मदन उसके मामा के यहाँ शहर में पढ़ाई कर रहा था। केशव को इस बात का गर्व था, मगर वह उनकी दोस्ती के बीच कभी नहीं आया। वह गाँव आता तो शहर की बड़ी बड़ी बातें करता, केशव का सीना गर्व से फूल जाता।
जब उसकी नौकरी लगी तो केशव ने पूरे गॉंव में मिठाई बाटी। वह शहर से गॉंव आया तो सभी के लिए बहुत सारे उपहार लाया। केशव और रामदीन एक बार उसके साथ शहर भी गए थे। एक बार जब वह गॉंव आया तो उसने उसके पापा और काका रामदीन से कहा कि वे अपनी जमीन बेच दे और शहर चले वहाँ उन्हें अच्छी नौकरी लगवा देगा
वह शहर से दो दोस्तों को भी साथ लाया था, उन्होंने भी दोनों को समझाया। केशव ने उनकी बात मान ली और जमीन बेचकर शहर जाने के लिए तैयार हो गया, रामदीन से भी कहा ‘भाई दोनों दोस्त साथ में शहर में रहेंगे। खेती करने में कितनी परेशानी होती है, समय पर वर्षा नहीं होती है तो फसल भी ठीक से नहीं होती।
‘ मगर रामदीन इसके लिए तैयार नहीं हुआ उसने केशव से भी मना किया बोला -‘भाई इतना जीवन गॉंव की मिट्टी में गुजार दिया, अब शहर जाकर क्या करेगा यहीं रह जा।’ मगर उसे शहर जाना था वह शहर चला गया। पहली बार दोनों मित्रों के विचार ने मेल नहीं खाया।
मदन ने कुछ दिन तक तो माँ और पापा को अच्छी तरह रखा, अपने पापा से कहता रहा कि वह जल्दी ही उनकी नौकरी लगवा देगा। तीन महिने बीत गए केशव को अपने गाँव की याद आ रही थी, घर बैठे बैठे वह उकता गया था, अब वह जब भी मदन से नौकरी लगाने की बात करता
वह झल्लाकर बोलता। केशव को समझ में आ गया था कि बेटे की बातों में आकर वह गच्चा खा गया है, उसने बेटे से कहा कि उसे जमीन के पैसे देदे उन्हें शहर में नौकरी नहीं करना है वे गाँव जाऐंगे तो वह बोला पैसे तो खर्च हो गए आप गाँव जाना चाहें तो चले जाऐं। केशव भारी मन से गाँव वापस आ गया,
उसने रामदीन से कहा भाई तू ठीक कह रहा था, जीवन के बाकी दिन मैं यहीं गाँव में गुजारूंगा। खेती नहीं रही तो किसी के खेत में मजदूरी कर लूँ गा। मैंने अपने बेटे की बात में आकर बहुत बड़ा गच्चा खाया है।
प्रेषक-
पुष्पा जोशी
स्वरचित, मौलिक, अप्रकाशित