झाड़ू मारना – सुभद्रा प्रसाद : Moral Stories in Hindi

रोहित और  आनंद दोनों दोस्त थे |एक ही स्कूल और एक ही कक्षा में पढ़ते थे | आनंद एक अच्छे सुखी-संपन्न घर का लड़का था और पढ़ने में भी अच्छा था |

रोहित एक साधारण घर का लड़का था और पढ़ने में भी साधारण ही था | दोनों में अच्छी दोस्ती थी और एक दूसरे के घर आना जाना भी था |

आनंद अपने माता- पिता की इकलौती संतान था और उसे किसी चीज की कमी न थी | रोहित दो बहन और एक भाई था |

उसके पिताजी अशोक कुमार एक कंपनी में कर्मचारी थे| लडकियों को साधारण स्कूल और रोहित को अच्छे स्कूल में डाला था | जब रोहित आठवीं में था,

तब अचानक उनकी नौकरी छूट गई और फिर मुश्किल से एक कम वेतन वाली दूसरी नौकरी मिली |अब रोहित को पढाने में उनको मुश्किल होने लगा |

ऐसे समय में आनंद के पापा मोहन बाबू ने रोहित के पढाई में उसकी बहुत मदद की | उनके सहयोग से ही रोहित पढाई में तेज हुआ और अपनी स्कूल की शिक्षा भलीभाँति पूरी कर सका |

स्कूल की शिक्षा के बाद भी उनके मदद करने का सिलसिला चलता रहा | सिर्फ उनकी बदौलत ही रोहित, आनंद के साथ-साथ इंजिनियरिंग की पढ़ाई भी सफलतापूर्वक कर पाया

और दोनों को अच्छी नौकरी भी मिल गई | इस खुशी में मोहन बाबू ने एक पार्टी दी और सभी के साथ-साथ रोहित के परिवार को भी बुलाया |

सब लोग उन्हें बधाई दे रहे थे और रोहित की मदद के लिए  काफी तारीफ भी कर रहे थे | यह बात अशोक कुमार को अच्छी नहीं लगी

और जब किसी ने उनसे इस बाबत पूछा तो उन्होंने कहा कि रोहित शुरू से ही पढाई में अच्छा था और उसने जो भी पाया, सिर्फ अपनी प्रतिभा और मेहनत से पाया है|

कोई मदद न करता, फिर भी वह पढ ही लेता |रोहित की कामयाबी सिर्फ उसकी मेहनत का फल है |इसका श्रेय किसी दूसरे को देना गलत है |

उन्होंने यह बात इतनी जोर से कही कि बगल में खड़े लोगों के साथ-साथ मोहन बाबू ने भी इसे सुना | उनका इस तरह सभी के सामने झाड़ू मारना मोहन बाबू को बहुत बुरा लगा|

उन्हें लगा कि उनका सारा किया हुआ रोहित के पापा ने बेकार कर दिया |सच्चाई तो सबको पता था ही इसीलिए जब एक दोस्त ने मोहन बाबू से पूछा

कि क्या अब भी वो किसी की मदद करेंगे, तो मोहन बाबू ने जबाब दिया कि जरूर करेंगे, क्योंकि किसी की मदद करना उन्हें अच्छा लगता है

और आत्मसंतुष्टि मिलती है |वे दिखावे के लिए किसी की मदद नहीं करते | आनंद और सब की नजरों में मोहन बाबू का सम्मान और बढ़ गया |

# झाड़ू मारना ( निरादर करना ) 

स्वलिखित और अप्रकाशित

सुभद्रा प्रसाद

पलामू, झारखंड |

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