ट्रेन में खिड़की के पास वाली सीट पर बैठी कविता के गालों पर आसुओं के निशान बदहवास चेहरा और आंखों में गहरी वेदना लिए अपनी किस्मत को कोस रही थी..
बीस साल पहले रजत से उसकी शादी हुई थी.. रिश्तेदार के नाम पर बड़ी दीदी और जीजा जी और उनके दो बच्चे छः साल की कुहू और आठ साल का करण.. रजत विदेशी कंपनी में इंजीनियर था.. शादी के बाद पहले रक्षाबंधन पर ये तय हुआ कि जीजाजी अपनी बहन से राखी बंधवाने जायेंगे बच्चों के साथ और रजत अपनी दीदी को अपने यहां ले कर आएगा..
एक दिन पहले हीं रजत दीदी को लेने चला गया.. पर भाई बहन के साथ उनका दुर्भाग्य भी साथ साथ चल रहा था.. गाड़ी को टैंकर ने धक्का मार दिया और … भाई बहन अपने परिवार को दुःख के मझधार में छोड़ कर दुनिया से चले गए.. दोनो परिवारों पर दुःख के पहाड़ टूट पड़े.. किसी तरह तेरहवीं की विधि संपन्न हुई और कविता के मायके से आए उसकेरिश्तेदारों ने अपनी विवशता बता किनारा कर लिया.. रजत के जीजाजी कविता को अपने घर कुछ दिन के लिए ले कर आए.. एक कमरा में समान रख घर किराए पर दे दिया.. कहा किराए के पैसे भी आयेंगे और तुम्हारे लिए एक कमरा काफी होगा..
कविता दोनो बच्चों का दुःख देखकर अपने दुःख को भूल जाती.. हंसने हंसाने वाले जीजा जी भी हमेशा खोए खोए से रहते.. कविता धीरे धीरे बच्चों के बेहद करीब होती गई.. मां नही बनी थी कविता पर ममता तो उसके अंदर कूट कूट कर भरी हुई थी.. जीजाजी भी बच्चों में आते बदलाव को देखकर संतुष्ट लग रहे थे..
बच्चों को पढ़ाई में मन लगाने के लिए कविता हर संभव प्रयास कर रही थी और प्रयास रंग भी ला रहा था.. एक दिन कविता बच्चों और जीजाजी के सामने वापस जाने की बात की बच्चे रोने लगे और लिपट गए कविता से हमे छोड़ के मत जाओ मम्मी तो चली गई अब तुम भी… कविता ने बच्चों को चुप कराया और फिर जाने की बात हमेशा के लिए खत्म हो गई..
करण सीए फाइनल में था और कुहू मेडिकल में.. घर में सिर्फ कविता और जीजाजी बच गए थे.. कविता के घुटने में हल्का हल्का दर्द रहने लगा था और जीजाजी पर भी उम्र का असर हो रहा था.. रिटायर होने में अभी पांच साल बाकी था.. कनपटी के बाल सफेद हो चुके थे.. एक दिन कविता को अचानक बहुत तेज बुखार हो गया रात में कुहू ने फोन पर पापा को ठंडे पानी की पट्टी देने को कहा और दवा भी बताई.. रात बहुत हो चुकी थी.. पूरी रात कविता के सिरहाने बैठे रहे पट्टी देते रहे बुखार कम होने पर जब कविता सो गई
तब वहां से उठे.. अगले दिन ऑफिस से छुट्टी ले कर कामवाली के साथ मिलकर घर और कविता की देखरेख किए.. दोनों के बीच दर्द का रिश्ता जुड़ चुका था.. अपनी सीमाएं और मर्यादा दोनो का ख्याल दोनो रखते थे.. अकेले होने पर भी जीजाजी ने कविता के साथ कभी ओछी हरकत नही की.. बच्चे भी इनके रिश्ते का बहुत सम्मान करते थे.. दुःख दर्द में सच्चे हमदर्द सा दोनो एक दूसरे का ख्याल रखते.. करण की नौकरी लग गई और कुहू की पढ़ाई खत्म होने में दो साल बाकी थे.. करण के लिए रिश्ते आ रहे थे..
और फिर रंजना करण की जीवनसाथी के रूप में सबको भा गई… कविता और कुहू दोनो ने शादी की बहुत अच्छे से तैयारियां की.. कहीं कोई कमी ना रह जाए…सारी रस्में अच्छे से संपन्न हो गई.. नववधू घर आ गई.. अगले दिन स्वागत समारोह था नववधू का.. उसके बहुत रिश्तेदार भी आए थे..
सबकुछ अच्छे से संपन्न हो गया.. सब ने कविता की खूब तारीफ की.. मां की कमी महसूस नहीं होने दिया..
कविता किचेन में चाय बना रही थी घर के सारे लोग शादी की सीडी देख रहे थे अचानक रंजना किचेन में आकर कविता को अपने साथ लेकर अपने कमरे में गई.. कविता पूछे जा रही थी क्या बात है बेटा.. रंजना बिफर पड़ी मेरे सारे रिश्तेदार पूछ रहे थे ये औरत तुम्हारे ससुर के साथ किस रिश्ते से रहती है?
व्यंग से हंस रहे थे रखैल होगी शायद.. बड़े लोगों के बड़े शौक.. बच्चों का भी लिहाज नही किया. मैं तो शर्म से गड़ गई.. और कविता शर्म अपमान बेइज्जती दुःख के मिले जुले पीड़ा से कराह उठी… धम्म से फर्श पर बैठ गई.. पूरा शरीर कांप रहा था अपमान और शर्म से इतना बड़ा इल्जाम.. ऐसी #कीमत #चुकाना होगा अपने त्याग तपस्या की ये तो मैने कभी सोचा भी न था… ओह… वक्त कौन कौन सा दिन दिखायेगा… अपने चरित्र पर लांछन लगाए जाने की #कीमत #उफ्फ…
थोड़ा हिम्मत कर के बाहर निकल आई.. रास्ते में पड़ोस के सिन्हा जी अचानक गाड़ी रोककर कविता के पास आए कहां जा रहीं हैं चलिए मैं छोड़ देता हूं.. कविता तो बदहवास सी निकल आई थी सोचा न था कहां जाना है.. मुंह से निकला स्टेशन..
बीस साल बाद आज अपने घर आई थी कविता.. दुल्हन बन के आई थी कितने अरमानों और सपनों के साथ! और आज चरित्रहीन होने के कलंक के साथ… बीस साल से बंद कमरा रहने लायक नही था.. किसी तरह बरामदे में बैठकर रात बिताई.. किरायेदार की पत्नी अपने कमरे में आने का आग्रह बार बार कर चुकी थी पर कविता तो दूध की जली थी इसलिए छाछ भी.. चाय और खाना दे गई.. पूरी रात आंखों में काटा नींद की जगह आसुओं ने ले ली थी..
सुबह में अचानक गाड़ी की आवाज आई.. होगा कोई.. कविताआ अरे ये तो जीजाजी हैं और कुहू करण रंजना सब यहां… फिर वैसे हीं कुहू और करण कविता से लिपट कर रो रहे थे जैसे बीस साल पहले जाने के नाम पर कविता से लिपट कर रोये थे और साथ में रंजना भी रोते हुए अपने अपराध के लिए बार बार माफी मांग रही थी..
और कविता तीनों को अपनी बाहों में समेटे ममता की प्रतिमूर्ति बन गई थी.. उनके चेहरे और भाव बता रहे थे उनके त्याग ममता और प्यार की #कीमत # अनमोल है….जीजाजी भी अपने आसूं नही रोक सके.
ये दर्द का रिश्ता था.. स्त्री और पुरुष बहुत अच्छे दोस्त एक दूसरे के सुख दुःख का ख्याल रखने वाले निः स्वार्थ रिश्तों के बंधन में बंधकर भी साथ रह सकते हैं एक सीमा के अंदर मर्यादा के साथ.. ये रंजना समझ चुकी थी.. कविता फिर से वापस अपने बच्चों के साथ गर्व और सम्मान के साथ लौट रही थी…
🙏❤️✍️
Veena singh..
#कीमत