“तुम्हारी अक़्ल चरने गई है क्या जो शहर की नौकरी छोड़ कर गाँव में बसने का विचार कौंध रहा है… देखो तुम्हें जाना है जाओ, मैं नहीं जाने वाली और तो और बच्चों की पढ़ाई और स्कूल का क्या होगा सब कुछ छोड़ कर हम गाँव में जाकर बैठ जाए … बिल्कुल नहीं ।” रेवती के तल्ख़ स्वर महेश के कानों में चुभ रहे थे पर जाना मजबूरी हो गई थी
महेश ने भी दो टूक स्वर में कह दिया,” तुम्हें लग रहा है मेरी अक़्ल चरने गई है तो यही सही पर हम इस शनिवार सब सामान सहित गाँव जा रहे हैं ये मेरा आख़िरी फ़ैसला है … तुम काम का सामान बाँध लेना बाकी सामान यहाँ बेच कर चले जाएँगे…. मैं थोड़ा देख आता हूँ ये सब सामान लेने वाला कोई मिल जाए तो और फिर अस्पताल होते हुए आऊँगा ।”
रेवती मन मसोस कर रह गई ।
गाँव आने के बाद भी रेवती के तेवर कम ना हो रहे थे इधर वो देख रही थी कि महेश अपने माता-पिता के साथ उसके संबंधों को सुधारने की जुगत में लगा रहता है.. बात बात पर कहता ,”रेवती हमारा अपना कहने को कौन ही है… तुम भी देख रही हो शहर में ही मेरी तबियत बिगड़ने लगी थी कल को कुछ हो हुआ गया तो इनके अलावा और हमारा कहने को ही कौन ।”
महेश बच्चों को पास के ही स्कूल में दाख़िला करवा कर पिता के साथ खेती करने में जुट गया था ।
वो दिन ब दिन कमजोर होता जा रहा था …पाँच महीने ही गुजरे होंगे कि महेश एक दिन चक्कर खा कर गिर पड़ा पिता ने बहुत कहा चल कर किसी डॉक्टर को दिखा ले पर वो मना करता रहा।
महेश को तो पता ही था बीमारी उसके शरीर में अब अंतिम पड़ाव पर है और वो कब चला जाएगा ये उसे भी नहीं पता।
एक रात सोने से पहले उसने रेवती से कहा,” रेवती मैं अब नहीं बचूँगा… शहर में ही मुझे पता चल गया था मेरी ज़िन्दगी ज़्यादा नहीं है…उधर कोई परमानेन्ट जॉब तो थी नहीं…इसलिए सब छोड़ कर यहाँ तुम्हें ज़बरदस्ती ले आया…तुम्हारे मायके के हालात भी सही नहीं जो मेरे ना रहने पर तुम्हारा और बच्चों का ख़याल रख सकें, यहाँ माँ बाबूजी तुम सब पर जान लुटाते है बस यहाँ से कहीं मत जाना…
इनके साथ ही अच्छे से रहना.. तुम कह रही थी ना मेरी अक़्ल चरने गई है … सच ये है कि अभी अक़्ल से ही काम लेकर यहाँ आया हूँ.. ताकि सबके साथ तुम लोग घुल मिलकर मेरे जाने के बाद भी अच्छे से रह सको।”
“ ये कैसी बहकी बहकी बातें कर रहे हो.. सो जाओ कुछ नहीं होगा तुम्हें ।” रेवती महेश की बात सुन घबराते हुए बोली
महेश उसकी तरफ़ देख मुस्कुराते हुए सो गया… कल की सुबह ना देखने के लिए ।
रेवती को उसके जाने के बाद एहसास हो रहा था कि अक़्ल महेश की नहीं उसकी चरने गई थी जो ये समझ ही नहीं पाई कि महेश ने कितनी समझदारी से फ़ैसला ले कर उन सबको अपनों के भरोसे हिफ़ाज़त से छोड़ गया है ।
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
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