खुशियों का मंत्र – रचना गुलाटी : Moral Stories in Hindi

“जब देखो, घर में अशांति ही छाई रहती है, बहू रोज़ कोई-न-कोई गुल खिला ही देती है।” सीमा गुस्से में बड़बड़ा रही थी।

“मैंने क्या किया मम्मी जी, जो आप मुझे बोल रहे हो। अपने पति से सिर्फ़ बात ही की है।” ममता ने अपनी सासुमाँ से कहा।

“तुझे कितनी बार बोला है, उसके साथ बहस मत किया कर। वह जो भी कहता है सब सही है।”

“माँ जी, आप पहले जान तो लो कि मैंने क्या कहा है? मैंने कुछ गलत नहीं  कहा, सिर्फ़ इतना ही कहा है कि आज मेरी तबीयत ठीक नहीं है, गुड़िया को तैयार करने में मेरी मदद कर दो।”

“रमेश बस इतनी सी बात पर तुम ममता पर बिगड़ रहे थे और मैं बेवजह उस पर चिल्ला पड़ी। अगर उसकी तबीयत ठीक नहीं तो तुम्हें उसकी मदद करनी चाहिए और अपने गुस्से पर भी काबू रखना चाहिए।” सीमा ने कहा।

अब मैं बाहर के काम भी करूँ और बच्चे को भी सम्भालूँ, रमेश ने अपनी माँ से कहा।

सीमा ने कहा, “बिल्कुल बेटा, पति-पत्नी जीवन की धुरी हैं और दोनों का साथ ही जीवन में खुशियों के रंग भरता है।

छोटी-छोटी बातों पर गुल खिलाने से घर की शान्ति भी भंग होती है और बच्चों पर भी बुरा असर पड़ता है। आपसी तालमेल से ज़िंदगी खुशनुमा बन जाती है।”

ठीक है माँ, 

ममता मैं गुड़िया को तैयार कर देता हूँ।

 और मैं तुम्हारा नाश्ता बना देती हूँ। ममता तुम आराम करो। सीमा ने कहा।

ममता की आँखों में खुशी के आँसू आ गए और वह अपनी सास के प्रति कृतज्ञ भाव से भर उठी। आज उसे घर में अपने अस्तित्व का एहसास हो गया था।

स्वरचित 

रचना गुलाटी

मुहावरा गुल खिलाना

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