काव्या – शिव कुमारी शुक्ला : Moral Stories in Hindi

कव्या अपने पापा के गले लगकर रोये जा रही थी। पापा  मैं बहुत बुरी हूं। मैंने आपकी बात नहीं मानी। पापा मैं उसकी बातों से ऐसी सम्मोहित हो गई थी कि किसी की बात सही नहीं लगती थी। केवल वही सही लगता था उसकी बात अच्छी लगती थी। तभी हो अपने मुंह पर कालिख पोत कर भाग गई। पापा मैंने काम तो माफी लायक नहीं किया इसीलिए इतना दुख झेलते हुए भी मेरी हिम्मत आपके सामने  आने की नहीं हो रही थी। कैसे अपना यह कालिख पुता मुँह आपको  दिखाऊँ। पापा आप मेरी गल्तीयां भुलाकर मुझे उस नर्क से निकाल लाये

आज अहसास हुआ कि दुनियां में मम्मी-पापा  से ज्यादा संतान का भला सोचने वाला ओर कोई नहीं  होता। जैसा मैंने किया वैसा ही भुगता और आपकी समाज में बदनामी कराई सो अलग फिर भी आज आपने मुझे मरने से बचा लिया , नहींं तो वह  मार-मार कर मेरी जान निकाल देता। मैंने आपके दिए सब सुखों को भुलाकर कर ,आपके अरमानों को कुचलकर, अपने लिए नर्क का मार्ग चुना मुझसे ज्यादा अभागन और कौन होगी। आपने कितना समझाया था पढाई की उम्र है पढ़ो कुछ बनो किन्तु उसे मेरे पैसे चाहिए थे 

सो हमेशा आपकी बातों के विरुद्ध मुझे सब्जबाग दिखाकर बरगला देता। उसकी बातों में  आ गई एक अभागन बनने पर मजबूर हो गई। मम्मी-पापा मैं आपकी गुनाह‌गार हूँ एक बार मुझे माफ कर दो आगे से अब दुबारा कोई ऐसा काम नहीं करुगीं जो आपको नीचा दिखाये।वह रोते -रोते अपने मन की  भड़ास निकाल रही थी , और पापा प्यार से उसके सिर ब पीठ पर हाथ फिराते उसे सांत्वना दे रहे थे, चुप हो जा बच्ची जो हुआ उसे दुःखद सपना, समझ कर भुला  देंगे और जिन्दगी की नई शुरुआत करेंगे सब  ठीक हो जायगा।

 तभी मम्मी सुनीता जी चाय नाश्ता  ले आई। प्यार से उसे  उठातीं बोलीं  पहले चाय पीले  कुछ खाले फिर बात करेंगे। अब तो तू हमारे पास ही है थोडा आराम करले बहुत   थकी लग रही है।

चाय पीते उसे लगा कितने दिनों बाद उसने अच्छी चाय पी है नाश्ता  किया है। नाश्ता करना तो वह भूल ही गई थी क्योकि घर में कुछ होता ही नहीं  था खाना मिल  जाए यही बहुत बड़ी बात थी। जिन घरों में काम करती थी वहाँ से मिले पुराने कप में चाय पीते कैसे घिन आती थी पर क्या करती ये सारे सुख छोड अभागन बनने का शौक भी तो उसे ही लगा था। तभी मम्मी बोलीं क्या सोच रही है बेटा अब सब भूल जा । हमने तो तुझे कभी हाथ से लेकर  पानी भी नहीं पीने दिया था और तू कैसी जिन्दगी गुजार रही थी।

काव्या जिसकी कहानी चल रही है। उसका परिचय आप लोगों से करा  दूं।

काव्या सुनीता जी एवं अतुल  जी की इकलौती संतान है। वे प्रतिष्ठित व्यपारी हैं। घर में किसी चीज की कमी नहीं थी। काव्या आर्कषक , गौर वर्ण, तीखे नैन-नक्श की  एक चुलबुली लड़की थी। 

सम्पन्नता में पल रही थी दुखों से पाला न पडा था। अभी वह ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ रही थी कि उसकी दोस्ती एक लड़के से हो गई। वह रोज  स्कूल के  गेट पास खडा मिलता। धीरे धीरे दोस्ती पक्की होती गई।

 काव्या भोली थी उसे दुनियादारी की 

ज्यादा समझ नहीं थी सो वह उसकी बातों 

में आ गई ।उसने उसे ऐसे सब्जबाग दिखाये, ऐसे सुन्दर भविष्य  की कल्पनाएं कराईं  कि वह बौरा गई।

उसे वह लड़का अमर ही अमर दिखाई देता। वह धूर्त चालाक एवं अवारा था। उसका काम यही था कि भोली भाली लडकियों को बातों फंसाकर उनके घर से पैसे-गहने मॅगवा लेता, शादी कर उन्हें अपने प्रभाव में ले लेता जब तक पैसे रहते ऐश करता फिर जब भूखों मरने की नौबत आती तो उनसे  कहता काम  करो ।

दूसरों के घर  झाडू, पौंछा , बर्तन 

 करने भेजता और उन पैसों को अपनी 

शराब पर ज्यादा खर्च करता। काव्या से पहले भी वह ऐसा दो लड़कियों के साथ 

कर चुका था फिर वे कहाँ गईं  कुछ पता नहीं। अब  उसने  अपने जाल में काव्या  को फंसाया था।

उसकी पढ़ाई पर भी असर पड़ने लगा जहां वह पहले  दसवीं की बोर्ड परीक्षा में अपने स्कूल  की  टाॅपर थी ग्यारहवीं में बमुश्किल पास हुई थी

 जब पापा ने पूछा तुम पढ़ाई में इतनी कैसे 

पिछड रही हो तो बड़ी लापरवाही से बोली

पापा  पढ कर क्या करना है। अमर है न वह बहुत कमायेगा और मेरी सारी इच्छाएं पूरी करेगा।

यह  सुन पापा सकते में आ गए कौन अमर ,किसकी बात कर ही हो।

पापा वो मेरा दोस्त है बहुत पैसे  वाला है, वह कहता है पढ़कर  क्या करोगी। मैं तुमसे  नौकरी थोडे ही  कराऊंगा।

अतुल जी बोले तू ये कैसी बातें कर रही है उसके साथ क्यों  रहेगी।

 पापा आप इतना भी नहीं समझे मैं उससे शादी करूंगी।

वे एकदम चिल्ला  पडे अभी तेरी उम्र पढाई लिखाई करने की है और तू शादी की बात  कर रही है। अभी शादी की उम्र होने दें हम करेंगे तेरी शादी। 

नहीं पापा  मैं बड़ी हो गई हूं  शादी तो अमर से ही करूंगी। 

अतुल जी बोले हां उसीसे कर लेना पहले पढ़ाई तो पूरी कर ले। वह क्या करता है। वह भी  तो अभी पढ़ता होगा उसे भी पढ़‌ने दे। फिर बाद में  हम उसी से शादी कर देगें बस। पर अभी  पूरा ध्यान पढ़ाई में लगा। अमर की नौकरी लगते ही तुम्हारी शादी हो जायगी।

पर पापा वह नौकरी नहीं करेगा क्योंकि उसके पापा का बहुत बडा विजनेस है वही 

सम्हालेगा ।

ठीक है वही करने दो।

काव्या ने सारी बात अमर को बताई उसने सोचा  कहीं  मुर्गी हाथ से निकल न जाये। बोला कोई पढाई  बढाई की जरूरत नहीं है। हम तो जल्दी ही शादी कर लेते हैं मन्दिर में । तुम जितने ज्यादा पैसे और गहने लेकर आ सकती हो  लेकर आ  जाओ ।

उधर अतुल जी ने अमर के बारे में पता लगाया तो गल्त रिपोर्ट मिली। उन्होंने फिर बेटी  को समझाया बेटा अभी पढ़ने की उम्र है पहले पढ़ लो फिर शादी व्याह की सोचना।

किन्तु काव्या उन्हें समाज में बेगैरत कर,उनका नाम डूबोती  घर से  जो ले पाई ले भाग  गई ।जब तक पैसा रहा घूमे फिरे फिर उसी शहर में झुग्गी बस्ती में एक झोंपडी ले रहने लगे। काव्या को वहां बदबू  आती वह बोली में नहीं रह सकती यहां तुम अपने पापा के यहाँ क्यों नहीं चलते।

अमर अकड कर बोला कौन सा पापा किसका पापा अब तेरी यही नियति है यहीं रहेगी और  कमाकर मुझे खिलायेगी।

क्या  वह जैसे आसमान से गिरी। तुम्हारा घर नहीं है  पापा  का  बिजनेस …….

वह सब तो तेरे को फंसाने का जाल था और तू फंस गई।में तो आवारा हूँ यही धंधा करता हूं ।

अब यह सुन काव्या की यह स्थिति थी कि काटो तो खून नहीं। वह स्तब्ध खडी अमर को देख रही थी। 

वह बोला खड़ी खडी देख क्या रही है पास में  बड़े  लोगों  की काॅलोनी है जाकर काम ढूंढ। उसका सिर चकरा गया। काम कैसे करेगी उसने तो कभी एक गिलास भी न उठाया था। कैसे जाएगी कैसे काम मंगेगी सोच सोच कर रोने लगी।

अमर बोला रोने धोने के  नखरे मत दिखा जो कह रहा हूं जाकर वही कर। बाहर निकल औरतों से बात कर ये जाती होंगी काम पर  उनसे पूछ। फिर  सिलसिला शुरु हुआ उसके शोषण का। काम करके आती  फिर खाना बनाती। फिर  वह शराब पीकर गालीगलोज , मारपीट करता। गौर वर्ण काला पड चुका था शरीर पर जगह-जगह नील के निशान सूख कर काँटा हो गई थी। 

सोचती मुझसे ज्यादा  कोई अभागन  नहीं होगी जिसने स्वयं अपने राह में कांटे बिछा लिए। घर लौटकर भी किस मुंह से जाऊँ। उधर उसके भाग जाने के बाद दोनों पति-पत्नी सदमे में आ गये । छः माह लग गए उन्हें सम्हलने में। अतुल जी को बाहर निकलने में शर्म आती। उनके दोस्त सौरभ जी आते और उन्हें समझा, हिम्मत दिला वापस काम पर जाने के लिए प्रेरित करते। इसी तरह एक साल  बीत गया।

एक दिन सौरभ जी अपने किती रिश्तेदार की शादी  में उसी काॅलोनी में  गए जहां काव्या  काम करती थी।

शादी वाले घर में काव्या को बर्तन धोते देख वे सकते में आ गए। उन्होंने उससे पूछा यह सब क्या देख रहा हूँ मैं बेटा ।

वह फफक फफक कर रोने लगी और बोली मेरी जैसी अभागन और क्या करेगी अंकल। संक्षिप्त में  उसने पूरी बात बताई।

दूसरे दिन सौरभ  जी ने अतुलजी को पूरी बात बताई और काहा  काव्या को तुम्हारी जरूरत है उसे उस हैवान के चंगुल से बचा लो। बेटी है तुम्हारी गल्ती, नादानी में बच्चों से हो जाती है अब पछता रही है। 

फिर भी तो उसने बात नहीं की।

बात क्या करेगी वह खुद इतनी शर्मिन्दा  है कि तुम्हारे सामने नहीं आ पा रही है।  दूसरे  उसके पास फोन रखे हैं क्या। मजदूरनी सी वर्तन मांज रही  है।आखिर पिता का दिल पिघला। माता पिता दोनों  गये उस झुग्गी बस्ती में पता लगाया और अन्दर गए ,  तो देख कर  दंग रह गये।

अमर शराब के नशे में धुत पड़ा था  और काव्या एक कोने में बैठी रो रही थी।जगह जगह शरीर पर ताजी चोटों के निशान थे। मम्मी-पापा को देखते ही वह दौड़ कर उनसे    लिपट गई पापा मुझे बचा  लो। बेटी की हालत देख वह भी रो पड़े। वे बेटी को ले  सीधे  पुलिस स्टेशन गये रिपोर्ट  लिखावाई ।

बेटी का मेडिकल   चेकअप करवाया एवं अमर को पकड पुलिस थाने ले आई ।यह सब इतना जल्दी हुआ कि अगर कुछ समझ ही नहीं पाया।कहानी के शुरू में  वार्तालाप चल रहा था वह इसी समय का है जब वे काव्या को लेकर घर पहुंचे।

बाद में अमर को सलाखों के पीछे भिजवाया ताकि वह किसी और काव्या की जिन्दगी खराब न कर सके।

काव्या को सम्हलने में समय लगा। फिर उन्होंने उसकी छूटी पढाई पूरी करवाई। पढ़ाई के बाद उसने प्रतियोगी परीक्षाये दीं। जिसमें बैंक में उसकी नौकरी लग गई। अतुल जी को नौकरी की कोई आवश्यकता नहीं थी किन्तु केवल वे चाहते थे कि काव्या का खोया आत्मविश्वास पूर्णतया लौट आए।

कालान्तर में एक अच्छा लड़का देख अच्छे परिवार में शादी कर दी। अब वह खुशहाल जीवन जी रही है। अभागन का टैग उसके  माथे से हट चुका था। 

शिव कुमारी शुक्ला 

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स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित 

बिषय***   अभागन 

प्रेम विवाह करना बुरी बात नहीं  है किन्तु पूर्ण वयस्क होकर ,शिक्षित होने पर सोच समझ कर सुपात्र से किया प्रेम विवाह  असफल नहीं होता किन्तु कच्ची उम्र  में विपरीत सेक्स के प्रति आकर्षित होकर, कुपात्र  को सही समझ कर गलत निर्णय लेना घातक सिद्ध होता है। फिर भी यदि बच्चे भटक भी जाएं तो  उन्हें यदि माता-पिता  साथ मिल जाये तो वे पुनः समाज में स्थापित हो सकते हैं ।गुस्से में सम्बन्ध तोडकर बच्चे को उसके हाल पर छोड  देना समझदारी नहीं है। कई बार बच्चे घर लौटना भी चाहते है किन्तु शर्म की वजह से नहीं हीं आते उन्हें सहयोग कर सही राह दिखाई जा सकती है।

दोस्तों यह मेरी अपनी  सोच है, अन्यथा न लें।कई  बार परिस्थितियोंवश फैसले लेने पड़ते हैं ।

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