इंसान की फितरत होती है कि व्यक्ति गरीब होता है,तो सब उसकी गरीबी का मजाक उड़ाते हैं और अगर गरीब व्यक्ति के पास पैसे आ जाएँ, उसे संशय की दृष्टि से भी देखते हैं।यही हाल नमन के परिवार का है।कल तक तो नमन के घर में दो वक्त का चूल्हा मुश्किल से जलता था,
वहीं आज उसके घर में नित्य नए सामान आते रहतें हैं।जब से नमन दिल्ली कमाने गया है,तब से उसके माता -पिता और बहन के पैर जमीं पर नहीं पड़ते हैं।उसके पिता अपने दोस्तों के सामने बेटे नमन की प्रशंसा करते रहतें हैं,उसकी बहन अपनी सहेलियों के समक्ष नए ड्रेस और नई चीजों की शेखी बघारती है।
उसकी माँ सरोज देवी अपनी सहेली उमा को घमंड से कहती है -“सखी!दिल्ली में मेरे बेटे नमन को बहुत बड़ी कंपनी में नौकरी लग गई है।वहाँ तो पैसों की बरसात होती है।”
संशय के साथ उमा कहती है -” सखी!तुम्हारा बेटा तो मैट्रिक भी पास नहीं है,फिर उसे इतनी बड़ी नौकरी कैसे लग गई?कहीं गलत काम में तो नहीं फँस गया है?”
सरोज देवी इतराते हुए -“सखी!सब हमारी किस्मत से जलते हैं,इसी से ऐसी बातें करतें हैं। डिग्री से कुछ नहीं होता है,आज बहुत पढ़े-लिखे गाँववाले भी कमाई में मेरे बेटे की बराबरी नहीं कर सकते।मेरा बेटा कभी भी गलत काम नहीं कर सकता है!”
सहेली की बातें सुनकर उमा खामोश हो जाती है,परन्तु गाँव के लोग कहाँ माननेवाले थे!
कुछ लोग ईर्ष्यावश सरोज देवी से कहते हैं-“भाभी!अपने बेटे से कहकर हमें भी पैसों की बारिश में नहला दो।”
सरोज देवी अभिमान के साथ कहती है-“हाँ!हाँ!क्यों नहीं?आठ दिनों बाद नमन गाँव आनेवाला है,फिर तुम सबके लिए भी जरूर बातें करूँगी।”
सच ही कहा गया है कि बुरे काम का बुरा नतीजा ही होता है।कुछ गाँववाले सरोज देवी के यहाँ नया टेलीविजन पर समाचार सुनने आएँ थे ,उसी समय समाचार में तस्करी के जुर्म में नमन को ले जाते हुए पुलिस दिख रही थी।बेटे की करतूत देखकर सरोज देवी के पूरे परिवार का सर सबके सामने शर्म से झुक गया।
“हमें तो पहले से संशय था कि दाल में कुछ काला है” कहते हुए गाँववाले सरोज देवी के घर से निकल गए।
समाप्त।
लेखिका-डाॅक्टर संजु झा(स्वरचित)