आंखों देखी-कानो सुनी – बालेश्वर गुप्ता : Moral Stories in Hindi

अरे अन्नू के पापा जल्द आओ,आओ ना जल्दी से।

क्या हुआ मालती, क्या बात है,रात में भी तुम्हे चैन नही?

अरे देखो खिड़की से बाहर जल्दी से इधर आओ,ये अपने पड़ौसी का लड़का राजेश कैसे चोरी चोरी सा छुपता सा जा रहा है,जरूर कोई मामला है,इसके लक्षण मुझे तो ठीक नही लगते।जरूर कोई न कोई गड़बड़ है।

मालती, तुम्हे क्या मतलब,हमसे तो इसके परिवार से अच्छे संबंध है,और ये राजेश भी खूब इज्जत देता है।जा रहा होगा कही भी,तुम्हे क्या?

अशोक और मुकेश अपने अपने परिवार के साथ एक ही कॉलोनी में पड़ौस पड़ौस में ही रहते थे।अशोक और मालती के सत्रह वर्षीय बिटिया थी,नाम था अन्नू और मुकेश अपनी पत्नी बिंदिया तथा बेटे उन्नीस वर्षीय राजेश के साथ रहते थे। दोनो परिवार मिलनसार थे,दोनो परिवारों के संबंध भी खूब अच्छे थे।

उस दिन रात्रि में राजेश का संदिग्ध अवस्था मे छुपते छुपाते जाता देख मालती का माथा ठनक गया था,मालती को कुछ न कुछ दाल में काला नजर आ रहा था।वैसे भी उस दिन उसे नींद भी नही आ रही थी सो खिड़की के पास ही चेयर डाल कर बैठ गयी।

आधा घंटा ही बीता होगा मालती को राजेश किसी लड़की के साथ आता दिखाई दिया।मालती बुदबुदाने लगी मेरा शक ठीक ही निकला, तो लड़की का चक्कर था।बताओ अभी इसकी उमर ही क्या है,और अभी से ये इश्क बाजी।लड़का ऊपर से कितना शरीफ लगता है,और कारनामा देखो।हुँ, आज की पीढ़ी बस ऐसी ही है।

इतने में ही राजेश मालती की खिड़की के पास आया तो मालती चौक गयी,राजेश के साथ तो उसकी बेटी अन्नू थी।यह देख उसके पावँ के नीचे से जमीन खिसक गयी।अन्नू के बारे में तो सपने में भी उन्होंने ऐसा सोचा भी नही था।जिझोड़ कर मालती ने अपने पति अशोक को उठाया और हांफते हुए सारी बात बताई।हक्का बक्का अशोक मालती का हाथ पकड़ कर नीचे की ओर दरवाजे पर दौड़ा।

दरवाजे को अशोक खोल ही रहा था कि बाहर दरवाजे के पास ही अन्नू और राजेश की आवाज सुन वे ठिठक गये और उनकी आवाज अंदर से सुनने की कोशिश करने लगे।

राजेश अन्नू से कह रहा था अन्नू देख तू मेरी बहन ही है,मुझे कुछ दिनों से शाहिद से तेरे मेलजोल का शक था,शाहिद को मैं जानता हूँ अन्नू वह एक आवारा और शौहदा टाइप लड़का है,उसका काम ही लड़कियों को फसाना है।आज जब तुम दोनो कैंटीन में आज भाग जाने की योजना बना रहे थे तभी मैं तुम लोगो के पास से गुजरा था,

मेरे कानों में आज रात नौ बजे शब्द पड़े,तो मेरा माथा ठनका।इसी कारण मैं तुम्हे उसके चंगुल से छुड़ाने पहुंच गया।मेरी बहन अब इस घटना को भूल जा,आंटी अंकल को भी मत बताना,उन्हें बेइंतिहा दुख होगा।चुपचाप अपने कमरे में जाकर सो जाओ।

सिसकते हुए मालती और अशोक अपनी आंखों में पानी लिये अपने कमरे की ओर लौट गये।अब राजेश उनकी नजरो में बहुत बड़ा हो गया था।अब उन्हें अन्नू की चिंता भी नही थी,उसकी चिंता को उसका भाई राजेश था ना।

बालेश्वर गुप्ता, नोयडा

मौलिक एवम अप्रकाशित।

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