शामली के शॉपिंग स्टोर में प्रवेश करते ही वे दो जोड़ी आंखें फिर उसकी उठ गईं और जब तक वह वहां सामान लेती रही जैसे वे उसका पीछा ही करती
रहीं उन आंखों में गहरी उत्सुकता और बेकली में कुछ कहने का भाव था।
जल्दी से आधा अधूरा सामान ही ले कर वह तुरत फुरत वहां से भाग निकलना चाह रही थी।अरे इतनी जल्दी क्या है अच्छे से और भी सामान ले लीजिए
शॉप पर बैठे वह सज्जन जिन की आंखें वह खुद पर महसूस कर रही थी बोलने लगे। नहीं नहीं मुझे जाना है कहती वह बाहर निकल आई।
फिर आना जल्दी पीछे से आती आवाज उसने अनसुनी कर दी थी।
ऑफिस जाने के रास्ते में पड़ता है ये स्टोर बहुत बड़ा है और सभी घरेलू उपयोग की वस्तुएं सही दाम पर मिल जाती हैं।इसीलिए वह यहीं आने लगी थी।
कई दिनों से इन सज्जन की खुद पर ज्यादा निगरानी ज्यादा ध्यान देना उसे बुरी तरह से असहज कर रहा था। अपनी उम्र का तो लिहाज करना चाहिए ऐसे बुजुर्गों के कारण तो कहीं आना जाना दूभर है।घर में अविनाश को बताने पर वह हंसने लगा था। दाल में कुछ काला है पता लगाना पड़ेगा लेकिन तुम इतनी डरपोक कब से हो गईं उन महाशय को सबक सिखा दो।
आज वह कई दिनों बाद गई थी।उसे देखते वह सज्जन मानो चहक ही उठे थे।आइए आइए बहुत दिनो बाद आज आईं आप तबियत खराब हो गई थी क्या घर पर सब ठीक तो है कहीं बाहर चली गई थी क्या?? आप अपना काम देखिए मुझ पर इतना ध्यान देने की जरूरत नहीं है आपको क्या करना है
प्रश्नों की झड़ी पर चाबुक पटकते हुए शामली ने अचानक बहुत आवेग से कहा तो सज्जन थोड़े विचलित से हो गए थे और वह बिना सामान खरीदे ही घर वापिस आ गई।बहुत हो गया …. हद हो गई अब तो कुछ सबक सिखाना ही पड़ेगा …मुझ पर ही सारा ध्यान ..!!आखिर दिमाग में चल क्या रहा है इसके..!!मुझे ऐसी वैसी समझ रखा है क्या..!!
दूसरे ही दिन शामली अविनाश को साथ लेकर शॉप में पहुंच गई थी।
अविनाश को देखते ही वह सज्जन तुरंत खडे हो गए और उसे अपने पास बुला लिया फिर शामली की ओर उंगली दिखाकर कुछ बताने लगे और अवि का हाथ पकड़ अंदर ले गए।शामली का तो जी धड़क उठा जाने अवि को बुला कर मेरे बारे में ही क्या उटपटांग बता रहा है!!
थोड़ी ही देर में अवि आया तो शामली को उसके चेहरे पर अजीब से भाव दिखे क्या हुआ अवि क्या बोल रहा था वह खूसट शामली अक्रोशित हो उठी ।
शामली आओ मेरे साथ कहता अवि उसे भी अंदर कमरे में ले गया था यह देखो शामी ये रहा दाल का काला ये तस्वीर इनकी बेटी की है जो अब इस दुनिया में नहीं है ।तुम्हारे चेहरे में ये सज्जन अपनी इसी बेटी की शकल ढूंढते थे।कह रहे थे आपकी पत्नी की नजरो में शायद मैं गलत समझ लिया गया हूं माफी चाहता हूं।
ओह …..शामली पर तो मानो घड़ों पानी पड़ गया था।
वास्तव में हर किसी की नजर में दाल में कुछ काला ही है ये सोचना भी शायद आधुनिक प्रदूषित वातावरण की ही देन है!! अपनी ही नजरों में गिर गई थी शामली अपने ही विचारो से खुद ही शर्मिंदा सी वह उन सज्जन से किस तरह नजर मिलाए सोचने लगी थी।
लतिका श्रीवास्तव