आधुनिक व्यापारिक गुर सिखाते हुए शांतिशरण अपने पुत्र हेमंत के साथ हरिद्वार पहुँचे।हर की पौड़ी पर भरपूर गंगा स्नान के बाद
वही सामने मोहन पूरी वाले के यहां बाप बेटे हलवा पूरी का नाश्ता करने पहुँचे।पहले बेटा हेमंत ने आगे बढ़कर हलवा पूरी ली
और एक ओर खड़ा होकर खाने लगा।उसके बाद में पिता शांतिशरण ने हलवा पूरी ली और वही पास में खड़ा होकर वे
भी खाने लगे।हेमंत ने इस बीच अपना कलेवा पूर्ण कर लिया था।अब उसने हाथ झाड़कर दुकानदार से पूछा कितने पैसे हुए,दुकानदार ने बताये 40 रुपये,ठीक है
कह कर हेमंत ने कहा तो भाई हमारे 60 रुपये वापस कर दो।दुकानदार ने पूछा भई अभी तुमने पैसे दिये ही कहाँ है, जो उल्टे हमी से मांग रहे हो।
हेमंत ने कहा क्या बात कर रहे हो अभी 100 रुपये का नोट दिया तो था।इस पर स्वभाविक रूप से विवाद बढ़ा तो दुकानदार पास में ही
खड़े शांतिशरण से कहा लाला जी आप तो तभी से यही भट्टी के ही पास खड़े हो तुम्ही बताओ क्या इन बाबूजी ने मुझे 100 रुपये दिये हैं?
शांतिशरण जी बोले भाई देखो अपने विवाद में मेरे दिये 100 रुपये के नोट को मत भूल जाना।दुकानदार ने जिसे गवाह बनाया था
वह खुद बिना दिये 100 रुपये का क्लेम कर रहा था।दुकानदार की स्थिति साँप छछूंदर सी हो गयी थी,दो दो इस प्रकार के केस होने पर
ग्राहकों में उसकी साख जाने के हालत पैदा हो गये थे,सो थूक सटकते हुए दुकानदार बोला हाँ लाला जी आपके 100 रुपये याद हैं,
अब इन बाबूजी का तो बताओ ?शांतिशरण जी बोले तो भैया सही बात तो ये है जैसे 100 रुपये मैंने तुम्हें दिये थे,वैसे ही 100 रुपये इस बाबू ने भी तुम्हे दिये थे।
दुकानदार ने अपना सिर पीट लिया, उसे दोनो को 60-60रूपये भी देने पड़े और दोनो ने नाश्ता मुफ्त में अलग से कर लिया।
दोनो बाप बेटे इस सफलता से खुश होकर मस्ती से गंगा पार करने को पुल से जाने लगे।हेमंत रेलिंग पर चढ़ कर गंगा की लहरें देखने लगा
कि किसी के धक्के से छपाक से गंगा में गिर पड़ा।शांतिशरण के होश उड़ गये, वह चिल्लाने लगा,उसका बेटा गंगा के तीव्र बहाव में बहा जा रहा था।
अगले पुल के नीचे कुछ लोगो ने हेमंत को बचा लिया।किनारे पर लाया गया,उसके पेट से पानी निकाला गया।हेमंत बच गया।
इस सब घटनाक्रम को शांतिशरण किंकर्तव्यविमूढ़ हुआ देख रहा था।उसे साफ लग रहा था कि यूँ ही किसी का गला काटना आसान नही है,
भगवान सब देखता है।हेमंत जैसे ही चलने की स्थिति में हुआ तो शांतिशरण उसका हाथ पकड़ कर मोहन पूरी वाले की ओर दौड़ लिये
और हाथ जोड़कर उसे 200 रुपये देकर अपने किये की माफी मांग गर्दन नीचे करके चुपचाप चले आये।
बालेश्वर गुप्ता, नोयडा
मौलिक एवं अप्रकाशित