रानी ओ रानी , कहाँ मर गई , अब घरवालों ने नाम रानी रख दिया तो क्या सच में ही ख़ुद को रानी समझने लगी , कबसे आवाज़ दे देकर मेरा गला सुख गया , ज़िंदा है या मर ही गई आज??? शांति देवी ने कामवाली रानी को बुलाने के लिए पूरा घर सर पर उठा रखा था।
अरे, भाग्यवान , उसे नाम की उलाहना दे रही हो और ख़ुद का नाम शांति होते हुए भी आज तक शांति से न बैठी हो न बैठने दिया है।
दयानन्द जी अख़बार से नज़र हटाते हुए अपनी धर्मपत्नी शांति देवी से बोले।
तुम चुप रहो जी , इन नौकरों को सर नहीं चढ़ाया जाता , मीठा बोलेंगे तो हमारे ही सर पर बैठ जायेंगे। मेरा बेटा और बहु दिन रात नौकरी करके पैसे कमाते हैं, दोनों एक ही दफ़्तर में काम करते हैं इसलिए दफ़्तर का काम घर लाकर भी करते हैं ताकि चार पैसे ज़्यादा आये और इस रानी को घर का काम करने के बदले नोटों की पूरी गड्डी देते हैं, फ्री में काम नहीं लेते इससे।
इसकी क्या औक़ात जो मेरी एक आवाज़ में न आये , शांता देवी ग़ुस्से से बोली।
माँ , रानी आकाँक्षा के साथ बाज़ार गई है, आप उस वक़्त सो रही थी इसलिए आपको जगाकर बताना सही नहीं समझा , माँ के चिल्लाने की आवाज़ से अपने कमरे से आते हुए विवेक ने माँ से कहा।
आकाँक्षा को क्या ज़रूरत थी रानी को बाज़ार ले जाने की , अब देखना उसे भी कुछ न कुछ दिला कर ही लाएगी, फिर पैसों की बर्बादी , सर चढ़ा रखा है नौकरों को।
माँ ने विवेक से नाराज़गी ज़ाहिर करते हुए कहा।
माँ , रानी भी इंसान है , उसके पिता माता ने कितने सालों हमारे घर में काम किया , हमारी सेवा की अब जब उसके माँ पिता नहीं रहे तो वो लड़की कहाँ जाती , कैसे अकेले रह पाती , दुनिया का माहौल तो तुम्हें पता ही है न माँ , इसलिए आपकी और पिता जी की सहमति से रानी को इसी घर में रखा है और आपको भी पता है वो कितना काम करती है , आपके कटु वचनों का भी मुस्कुरा कर जवाब देती है।
तो उसे पैसे मिलते हैं बेटा , फ्री में नहीं कर रही काम , रहने को घर खाने को खाना , कही और न मिलेगा तभी टिकी हुई है।
विवेक रहने दे बेटा , तेरी माँ ने तो रानी को गाजर मूली समझ रखा है , तुच्छ समझती है , इंसान नहीं , इसे समझाने का कोई फ़ायदा नहीं , विवेक ने भी पिता की बात से सहमति जताई।
हाँ हाँ , समझती हूँ गाजर मूली , अहसान हैं हमारे उसके ऊपर , कहे देती हूँ नौकर है नौकर समझ कर रखो।
माँ ग़ुस्से में कुछ कुछ बोले ही जा रही थी तभी आकांक्षा और रानी हँसते हुए घर में दाख़िल हुए।
अरे बड़ी बीबी जी। आप उठ गई ,मैं आप सब के लिए चाय बनाकर लाती हूँ , रानी सामान सोफे पर रखते हुए चाय बनाने रसोई घर की तरफ़ चली गई ।
बहु आकाँक्षा एक एक करके सारा सामान अपनी सास शांति देवी को दिखाने लगी।
रानी को क्या कुछ दिला दिया , वो दिखा , शांति देवी ने आकांक्षा को सवालिया नज़रों से देखते हुए पूछा।
अरे !कुछ नहीं माँ , बस एक जोड़ी चप्पल दिलाये हैं , कई दिनों से टूटी चप्पलों में घूम रही थी , आकांक्षा ने सास को चप्पल दिखाते हुए कहा।
हाँ हाँ , खूब पैसा उड़ाओ नौकरों पर , ख़ुद जो कमा रहे हो, तो मैं बोल ही क्या सकती हूँ।
माँ , आप भी न , इतना कहते हुए आकांक्षा ज़्यादा बहस न करते हुए अपने कमरे की तरफ़ चली गई , साथ ही विवेक ने भी वहां से उठना ही बेहतर समझा क्योंकि सब जानते थे कि माँ को समझाना बेकार है।
शांति हर वक़्त रानी को तुच्छ न समझो, अनाथ बच्ची है , इंसान है कोई गाजर मूली नहीं। दयानन्द जी शांति देवी को समझाने की नाक़ाम कोशिश कर रहे थे।
इतने में रानी चाय ले आई , उसने दोनों को चाय दी और शांति देवी के सर में मालिश के लिए तेल भी ले आई और सर में मालिश करने लगी।
दयानन्द जी ने शांति देवी की तरफ़ देखा लेकिन शांति देवी पर किसी बात का असर नहीं होता था।
वो रानी को इंसान न समझकर एक अदनी सी तुच्छ नौकरानी ही समझती रही।
दिन बीतते रहे, लेकिन शांति देवी के बर्ताव में कोई फ़र्क नहीं आया।
एक दिन दुपहर के वक़्त दयानन्द जी सीढ़ियों से नीचे गिर पड़े , ये देखकर शांति देवी की चीख निकल गई , रानी चीख सुनकर तुरंत रसोई से बाहर आई तो उसने देखा कि दयानन्द जी नीचे गिरे पड़े हैं और शांति देवी रो रोकर उन्हें उठा रही है। दयानन्द जी के सर से बहुत ज़्यादा ख़ून बह रहा था।
रानी भागकर उन दोनों के पास आई , रानी ने सबसे पहले दयानन्द जी के सर पर अपना दुप्पटा बाँधा , फिर उसने शांति देवी से कहा कि “बड़ी बीबी जी आ भैया भाभी को फ़ोन कीजिये , बाबू जी को तुरंत हॉस्पिटल ले जाना पड़ेगा ”
शांति देवी ने कई बार फ़ोन लगाया लेकिन दोनों में से किसी का फ़ोन नहीं लग पाया।
रानी ने जल्दी से एम्बुलेंस वाले को फ़ोन करके बुलाया और दयानन्द जी को लेकर हॉस्पिटल चली गई , शांति देवी भी रानी के साथ ही हॉस्पिटल चली गई।
हॉस्पिटल पहुंचने पर डॉ ने दयानन्द जी को इमरजेंसी में एडमिट कर लिया , खून बहुत ज़्यादा बह जाने के कारण दयानन्द जी को ख़ून चढ़ाना ज़रूरी था लेकिन बेटे और बहु से संपर्क नहीं हो पा रहा था , ब्लड बैंक से भी कोई प्रबंध नहीं हो पा रहा था , शांति देवी का रो रोकर बुरा हाल था।
डॉ साहब आप बाबू जी को मेरा ख़ून चढ़ा दीजिये , मुझे पता है उनका और मेरा ब्लड ग्रुप एक ही है , जितना ख़ून चाहिए ले लीजिये लेकिन बाबू जी को बचा लीजिये।
डॉ ने तुरंत रानी के ब्लड ग्रुप का निरिक्षण करके दयानन्द जी को ख़ून चढ़ाया , कुछ देर बाद दयानन्द जी को होश आ गया , उन्हें होश में आया देख शांति देवी की जान में जान आई , और वो रोते हुए उनके सिरहाने बैठ गई,
इतने में आकांक्षा और विवेक भी भागे भागे हॉस्पिटल आ गए।
माँ ये सब कैसे हुआ , विवेक और आकांक्षा ने रोते हुए पूछा।
बेटा ,इनका पैर सीढ़ियों से फिसल गया , और ये नीचे आ पड़े। तुम दोनों को कितने फ़ोन किये , किसी का भी फ़ोन नहीं लगा।
माँ , ऑफिस में मीटिंग थी इसलिए फ़ोन बंद करने पड़े , लेकिन फ़ोन ऑन करते ही रानी का मेसेज देखकर यहां भागे आये , उसने हॉस्पिटल का एड्रेस भी सेंड कर दिया था।
माँ, रानी कहाँ है ??
बेटा रानी , वो रानी , रानी ने ही आज तुम्हारे पिता की जान बचाई है , वो ही इन्हें हॉस्पिटल लेकर आई और उसी ने अपना ख़ून देकर इन्हें नया जीवन दान दिया है। माँ ने शर्मिंदा होते हुए सबसे कहा ।
और इतना ही नहीं , रानी ने अगर दयानन्द जी के सर पर दुपट्टा बांधकर ख़ून न रोका होता तो शायद और ज़्यादा ख़ून बह गया होता और शायद ख़ून चढ़ाने के बाद भी इनकी कंडीशन में सुधार न आता। अंदर प्रवेश करते हुए डॉ ने सबसे कहा।
दयानन्द जी भी ये सब सुनकर शांति देवी की तरफ़ देखने लगे।
इतने में रानी भी वहां आ गई , ख़ून देने के बाद वो थोड़ी कमज़ोर नज़र आ रही थी लेकिन उसके होंठों पर सदैव की तरह मुस्कान थी।
बाबू जी, आपको होश आ गया , आप ठीक तो है न , आप छत पर क्या करने गए थे , कुछ काम था तो मुझे बोलते।
रानी ने दयानन्द जी का हाथ पकड़ कर कहा तो वहां मौजूद सभी लोग भावुक हो गए ।
शांति, तूने रानी को हमेशा गाजर मूली समझा , तुच्छ समझा सिर्फ एक नौकरानी समझा लेकिन आज इसी ने तेरे सुहाग को बचा लिया , मेरी रगों में आज रानी का ख़ून मिल गया है , ये ज़िंदगी रानी की देन है।
अब क्योंकि मेरे अंदर रानी का ख़ून बह रहा है तो तू फ़ैसला कर ले कि तू रानी को अब गाजर मूली न समझ के इंसान समझेगी या मुझे इंसान न समझ कर गाजर मूली समझेगी।
बस कीजिये , कितना और शर्मिंदा करेंगे मुझे , रानी गाजर मूली नहीं मेरे सुहाग की रक्षा करने वाली देवी है। रानी मुझे माफ़ करदे बेटा , मैंने तुझे क्या क्या नहीं कहा लेकिन तूने हमेशा मेरा मान बनाये रखा , कभी पलट कर कुछ नहीं कहा , हमेशा हंसती मुस्कुराती रही , तू तो देवी है बेटा, देवी है।
आज शांति देवी शर्मिंदगी से रानी के आगे नज़रें झुकाये खड़ी थी।
नहीं बड़ी बीबी जी , आप कैसी बातें कर रही है ,आप लोग तो मेरा परिवार हो , फिर मैं आप लोगों के लिए नहीं तो किसके लिए करुँगी और मैं कोई देवी नहीं बस आपकी बेटी हूँ। रानी ने शांति देवी के गले लगते हुए कहा।
शांति देवी ने उसे सीने से कसकर लगा लिया और विवेक की तरफ़ देखते हुए कहने लगी , विवेक आज रानी ने मेरा सुहाग बचाया है तो अब हमारी ज़िम्मेदारी है कि इसे सुहागन बनाने की ज़िम्मेदारी हम उठाये, आज के बाद रानी बहन है तेरी , इसकी शादी की ज़िम्मेदारी अब हमारी है , रानी के लिए एक भाई की नज़र से अच्छे से अच्छा रिश्ता देखना फ़र्ज़ है तुम्हारा और जब तक हमारी रानी दुल्हन नहीं बन जाती तब तक हमारी बिटिया हमारी पलकों पर रहेगी।
जी माँ , बिलकुल। .मेरी बहन हमेशा से मेरी ज़िम्मेदारी थी और इसके हाथ जब पीले होंगे तो सारा शहर देखेगा।
भैया , कहते हुए रानी शर्मा गई , उसे इस तरह शरमाते देख कर सब हंसने लगे।
शांति देवी दिल ही दिल में सोच रही थी कि जिसे गाजर मूली समझा , तुच्छ समझा उसी ने आज देवी बन कर उनका सुहाग बचा लिया, उन्होंने दिल ही दिल में फ़ैसला कर लिया था कि वो अब से रानी को बेटी से बढ़कर मोहब्बत देगी और उसकी बड़ी बीबी जी नहीं “माँ” बनेगी।
Writer :Shanaya Ahem
NICE STORY
Absolutely