माँ आप यह क्या कह रही हैं ? आप हमारी बात समझ क्यों नहीं रही हैं । प्लीज़ आप पापा को भी मेरी शादी में बुला लीजिए क्योंकि मेरा कन्यादान आप दोनों को ही करना है । यह सोनी मानिनी की बेटी थी जिसकी शादी होने वाली थी ।
मानिनी ने कहा -देख !सोनी तुम मुझे नहीं समझ रही हो बेटा । मेरी बात को भी समझो ना । मैं तुम्हारे पिता को तुम्हारी शादी में नहीं बुला सकती हूँ ।
सागर ने कहा- माँ सोनी ने ठीक ही कहा है । आप और पापा अलग अलग रहते हैं । यह मैंने बचपन से देखा है । इसका मतलब तो यह नहीं है न कि आप अपनी बेटी की शादी में उसके पिता को निमंत्रण न भेजें ।
माँ हमारे घर में जो भी पूजापाठ या त्योहार होता है आप चाचा चाची या मामा मामी को ही बिठाती हैं । अब हम बड़े हो गए हैं और हम चाहते हैं कि आप और पापा मिलकर सोनी का कन्यादान करेंगे तो हमें भी अच्छा लगेगा साथ ही सोनी के ससुराल में भी उसकी इज़्ज़त बनी रहेगी ।
मानिनी चुपचाप बच्चों की बातें सुन रही थी । उसने उनकी बातों का जवाब नहीं दिया और अपने कमरे में चली गई । उसने अंदर से दरवाज़ा बंद कर दिया ।
उसे वह दिन याद आया जब माता-पिता ने उसकी शादी दीपक से करा दी । वह सरकारी नौकरी करता था । माता-पिता ने सोचा अकेला लड़का है मानिनी को बहुत खुश रखेगा ।
मानिनी के कहने पर कि मैं कम से कम बारहवीं की पढ़ाई कर लेती हूँ उसके बाद शादी करूँगी परंतु उन्होंने उसकी बात नहीं मानी और दसवीं कक्षा के समाप्त होते ही अठारह साल की है बताकर शादी करा दी ।मानिनी शादी के बाद दीपक के साथ उसके घर आ गई ।
उसका घर छोटा था पर अच्छा था । मानिनी अपने घर को अच्छे से सँभालने लगी । दीपक रोज रात को बहुत देर से घर आता था । अगर कभी जल्दी आ भी गया तो अपने साथ अपने दोस्तों को लेकर आ जाता था । मानिनी हमेशा रसोई में ही रहती थी । वह मानिनी की तरफ़ ध्यान नहीं देता था ।
एक दिन घर आते ही दीपक ने कहा मैं अपनी नौकरी छोड़ रहा हूँ । मानिनी हताश हो गई पिछले कई दिनों से वह देख रही थी
कि दीपक कुछ न कुछ व्यवसाय के बारे में बातें कर रहा था । उसके चलते उसने बहुत से पैसे खर्च कर दिए थे । परंतु सरकारी नौकरी होने के कारण मानिनी को बुरा नहीं लगा पर आज जब सरकारी नौकरी छोड़ने की धमकी दी तो उसे बुरा लग रहा था ।
इसी बीच मानिनी प्रेगनेंट हो गई उसे आराम चाहिए था पर दीपक उसे मायके नहीं भेज रहा था । यह कहकर कि माँ कहती है कि लड़कियाँ अपने मायके जाती हैं तो काम नहीं करती हैं और डिलीवरी में प्राब्लम हो जाता है । नौ महीने की पेट लेकर भी वह घर के सारे काम करती थी । नौ महीना ख़त्म होने के पहले दीपक ने उसे मायके भेजा ।
मानिनी को लड़का हुआ । दीपक ने उसे दस दिन में ही घर बुला लिया यह कहकर कि माँ ने कहा कि यह हमारे घर का रिवाज है । मानिनी के माता-पिता ने उसे उसके घर छोड़ दिया और पंद्रह दिन रहकर चले गए । दीपक फिर से अपने व्यापार अपनी नौकरी में व्यस्त हो गया था ।
मानिनी को लगा कि चलो अच्छा है दीपक ने अब तक सरकारी नौकरी छोड़ने की बात नहीं की है ।बेटा तीन साल का हो गया था । मानिनी भी घर और बच्चे की ज़िम्मेदारी में व्यस्त हो गई थी । इसी बीच मानिनी फिर से प्रेगनेंट हो गई । पहली बार के समान ही दीपक ने उसे नवें महीने में ही उसे मायके भेजा था ।
अबकी बार मानिनी ने लड़की को जन्म दिया था । दस दिन बाद फिर से माता-पिता उसे उसके घर छोड़कर दस दिन रहकर चले गए थे । इस बार मानिनी को दीपक में कुछ बदलाव नज़र आया । दो दिन में पता चला कि उसने सरकारी नौकरी छोड़ दी है और व्यापार करने लगा है ।
दीपक ने कहा- मानिनी मैंने नौकरी छोड़ दिया है और अब व्यापार कर रहा हूँ ।
मुझे थोड़े और पैसों की ज़रूरत है इसलिए मैं सोच रहा हूँ कि तुम्हारे गहने मिल जाए तो मेरा काम अच्छे से शुरू हो जाएगा । यह कहकर उसने उसके गहने भी ले लिया ।
मानिनी घर का काम बच्चों के काम में इतनी व्यस्त हो गई थी कि उसे दीपक के बारे में सोचने का मौक़ा भी नहीं मिला था । एक दिन वह बच्चे को गोद में लेकर सब्ज़ी मंडी गई थी । वहाँ पड़ोस में रहने वाली नीरजा मिल गई थी ।
अरे! मानिनी तुझे बहुत दिनों बाद देखा है कैसी हो तुम ?
नीरजा _जी…मैं बिलकुल ठीक हूँ । आपको मालूम है न बच्चों के कारण समय ही नहीं मिलता है ।
नीरजा ने कहा- वह तो सही है मानिनी । एक बात कहूँ तुम्हारे मायके जाने के बाद दीपक ने एक औरत को लाकर घर में रख लिया था ।
मोहल्ले वालों ने जब ऑब्जेक्ट किया तो उसे वापस छोड़ कर आया है । उससे झगड़ा मत करना । तुम्हें भी उसके बारे में पता चले इसलिए मैंने तुम्हें बता दिया था । उसके साथ सोच समझ कर समझदारी से बात करना ।
यह सुनकर मानिनी को बहुत बुरा लगा । वह सब्ज़ियाँ लेकर घर आ रही थी कि देखा घर के सामने लोगों की भीड़ थी ।
दीपक सबसे हाथ जोड़कर निवेदन कर रहा था कि थोड़ी सी मोहलत दे दें तो सबके पैसे सबको लौटा देगा । सबने दीपक को वार्निंग देकर छोड़ दिया । मानिनी को अब पता चल गया था कि दीपक गले तक उधार में डूब गया था ।
दीपक सुबह से गया हुआ था शाम को भी वापस नहीं आया था । मानिनी को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें दीपक को कहाँ ढूँढे?
मानिनी रात भर दीपक के इंतज़ार में बैठी रही ।
नीरजा ने सुबह ही आकर बताया था कि मानिनी मोहल्ले में सब बातें कर रहे हैं कि दीपक उसी औरत के साथ भाग गया है जिसे वह घर में लेकर आ गया था ।
यह सुनते ही मानिनी को काटो तो खून नहीं था । उसने अपने पिता को फ़ोन किया क्योंकि इन दो बच्चों को लेकर उसे कहीं तो जाना है ।
पिताजी आए उसे दोनों बच्चों के साथ अपने घर लेकर गए । मानिनी पढ़ी लिखी नहीं थी ।
उसे समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करूँ कितने दिन माता-पिता पर बोझ बन कर रहूँगी पर बच्चों को तो पालना ही पड़ेगा ।
उनकी पढ़ाई , उनके खर्च कैसे उठाऊँगी यही सोचते हुए दिन रात चिंता कर रही थी । माँ पिताजी के पास भी उतने रुपये नहीं हैं कि उसे तसल्ली देते थे । पहली बार पिताजी को भी लगा कि बेटी को पढ़ाता तो अच्छा था ।
मानिनी ने हार नहीं मानी और जो विद्या उसे आती थी उसी पर काम करने की सोची । बडियाँ बनाना, आचार ,चटनियाँ बनाना आदि उसे बहुत ही अच्छे से आता था । सब छोटे छोटे पैकेट बनाकर दुकानों में देती थी । उन्हें तो पहले लोग चिढ़ाते थे पर धीरे-धीरे उसका बिज़नेस चलने लगा ।
कुछ सालों में ही उसने एक होटल भी खोल दिया था । उसे मालूम चल गया था कि दीपक कहाँ है पर उसने उसके बारे में जानना ज़रूरी नहीं समझा । उसने बहुत ही मेहनत से बच्चों को पढ़ाने की ज़िम्मेदारी उठाई।
बच्चे भी होशियार थे तो पढ़ लिखकर नौकरी करने लगे थे । सागर ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की और एक बहुत बड़े कंपनी में काम करने लगा था । सोनी ने डेंटिस्ट का कोर्स किया और एक अस्पताल में काम करती है । उसी के साथ मिलकर काम करने वाले विजय के साथ उसकी शादी तय हुई थी ।
बाहर कमरे में सब मिलकर मानिनी के बारे में ही बातें कर रहे थे ।विजय के माता-पिता भी आए थे । जब उन सबको देखा था बच्चों को भी फ़िक्र हुई थी । माँ ने बहुत देर से दरवाज़ा नहीं खोला है । बच्चों ने ही बाहर से दरवाज़ा खटखटाया था कि माँ प्लीज़ दरवाज़ा खोलो न क्या कर रही हो? विजय के माता-पिता आपसे मिलने आए हैं ।
मानिनी ने आँसू पोंछ कर दरवाज़ा खोला । देखा तो विजय के माता-पिता बच्चों के चाचा चाची ,मामा मामी सब लोग बाहर खड़े थे । शायद बच्चों ने उन्हें बुलाया था । मानिनी ने विजय के माता-पिता से कहा कि आपको मैंने सब कुछ बताया है आपसे छिपाया कुछ भी नहीं है ।
जब मैं अकेली बच्चों को पाल पोसकर बड़ा कर सकती हूँ तो कन्यादान के लिए उस आदमी की ज़रूरत ही क्यों ?
जिसने मुझे बच्चों के साथ अकेले छोड़ दिया था । देखिए बच्चे इस बात को नहीं समझ रहे हैं परंतु मैंने सोच लिया है कि मेरी बेटी का कन्यादान मैं ही करूँगी । वैसे भी क्यों न करूँ मैं अपनी क़िस्मत पर नाज जिसे मैंने अपने हाथों से सँवारा है ।
सबने मिलकर एक साथ कहा कि मानिनी जी कन्यादान आप ही करेंगी । हमें आप पर गर्व है । उन सबकी बातों को सुनकर बच्चों ने भी माँ से सॉरी कहा और उसके गले लग गए ।
के कामेश्वरी
#क्यों न करूं अपनी किस्मत पर नाज़