मेरी बात मान ले यशोदा, जब खसम ही दगा दे गया तो तू भी किसी के साथ बैठ जा।कम से कम तेरा तथा इस नन्ही जान का पेट तो भरता रहेगा।
क्या कह रही हो बुआ,आदमी लंपट निकल गया तो क्या मैं भी वेश्या बन जाऊं?ऐसे ही किसी के साथ बैठ जाऊं।बुआ भगवान ने पेट दिया है
तो दो हाथ भी तो दिये हैं।क्या मैं इतनी गयी बीती हूँ बुआ, जो मेहनत मजदूरी करके भी अपना और अपने बच्चे का पेट भी न भर सकूं?
देख ले बिटिया,जमाना खराब है,अकेली और छोड़ी गई औरत को हर कोई खा जाने वाली निगाहों से देखे है, मन्ने तो इसी खातिर सलाह दी थी।आगे तेरी मर्जी।भगवान तेरा भला करे।
रामकरण एक स्कूल में चपरासी था।घर मे बस माँ थी,उसके वेतन से खूब आराम से माँ बेटे की हर जरूरत पूरी हो जाती।रामकरण को स्कूल में प्रधानाचार्य के साथ साथ पूरा स्टाफ भी उसके मेहनती और ईमानदारी के कारण पसंद करता था।माँ ने रामकरण के लिये एक जानने वाले परिवार की एक सुंदर लड़की यशोदा से उसका रिश्ता पक्का कर दिया।
शुभ मुहर्त में दोनो के फेरे भी करा दिये।रामकरण यशोदा को पाकर काफी खुश था।यशोदा भी कर्मठ महिला निकली,उसने माँ की और रामकरण की पूरी जिम्मेदारी संभाल ली थी।खाली समय मे वह कुछ सिलाई का कार्य भी कर लेती।थोड़ा बहुत सिलाई का कार्य वह जानती थी।
इससे एक तो उसका खाली टाइम भी कट जाता और साथ ही थोड़ी बहुत आमदनी भी हो जाती। इसी बीच माँ अचानक ही चल बसी,शायद दिल का दौरा पड़ा था।अब घर मे रह गये रामकरण और उसकी गर्भवती पत्नी यशोदा।
यशोदा को रामकरण के ड्यूटी पर जाने के बाद खालीपन लगता,इसलिये उसने सिलाई का कार्य बढ़ा लिया।पड़ौस में ही एक शिब्बू चाचा की दर्जी की दुकान थी।शिब्बू चाचा अपने अधिक कार्य को यशोदा से करा लेते थे,इससे यशोदा को काम की कमी महसूस नही होती।इस प्रकार रामकरण और यशोदा की गृहस्थी भलीभांति चल रही थी,इस बीच उनके घर मे एक प्यारा सा मुन्ना भी आ गया।
अब तो दोनो को एक खिलौना मुन्ना रूप में उन्हें मिल गया।
समय की वक्र की दृष्टि से कौन बच पाया है?यशोदा की जिंदगी में तूफान आ गया।शिब्बू चाचा एक दिन यशोदा से बोले बिटिया मैं कहना तो नही चाहता था,पर तेरे कारण मुझे कहना तो पड़ेगा।यशोदा एकदम घबरा कर बोली चाचा क्या बात है,
मुन्ना के बापू तो ठीक है ना?शिब्बू चाचा ने यशोदा के सिर पर हाथ रख कर कहा बिटिया रामकरण के लक्षण कुछ ठीक दिखाई नही दे रहे हैं।यशोदा अचकचा कर बोली चाचा साफ साफ बताओ,क्या बात है।
बिटिया, रामकरण किसी अन्य महिला के साथ रंगरेलियां मना रहा है,उसे संभाल बेटी,कही बात हाथ से न निकल जाये।यशोदा धक से रह गयी।किंकर्तव्यविमूढ़ सी खड़ी यशोदा की तो सोचने की शक्ति ही मानो समाप्त हो गयी।शिब्बू चाचा यशोदा को ढाढस बंधा कर चले गये।
अवाक सी यशोदा की आंखे मुन्ना को छाती से लगाये शून्य में देखते देखते कब लग गयी,उसे भी पता नही चला।कब रामकरण आया,उसे खबर भी नही पड़ी।रामकरण ने भी उसे नही जगाया।
सुबह जब आँख खुली तब यशोदा और रामकरण का आमना सामना हुआ।यशोदा की आंखों से आंसू सूख चुके थे।यशोदा सूखी आंखों देखते हुए बोली मुन्ना के बापू मुझमें कमी थी तो एक बताता तो,मैं खुद ही जहर खा लेती,पर मुझे इतना बड़ा धोखा क्यों दिया
,मेरा क्या कसूर था?रामकरण ने समझ लिया कि उसकी पोलपट्टी खुल चुकी है,अब बहाने बाजी या झूठ बोलने से काम नही चलेगा।उसने कहा हां यशोदा मैं बहक गया था,पर अब तू यकीन कर अब सब ठीक हो जायेगा। यशोदा फीकी हंसी हंस कर रह गयी।
सुबह ही तो रामकरण और यशोदा की उक्त बातें हुईं ही थी,रात्रि में रामकरण घर आया ही नही।वह उसी दिन दूसरे मुहल्ले में अकेली रह रही रुक्मणि के साथ कस्बे को ही छोड़ गायब हो गया।अकेली रह गयी यशोदा अपने नन्हे मुन्ना के साथ।
यशोदा ने रामकरण के लिये कोई रिपोर्ट दर्ज नही कराई,उसे ढूढने की कोशिश भी नही की।उसे रामकरण से विरक्ति हो गयी।उसने अपने को रामकरण से शून्य मान लिया।ऐसे में शिब्बू चाचा ने यशोदा की काफी मदद की,उन्होंने यशोदा को भरपूर सिलाई का काम देना शुरू कर दिया।
ऐसे में दूर की रिश्तेदार जिसे सब बुआ ही कहते थे,मिलने आयी।बुआ ही यशोदा को किसी अन्य के साथ बैठ जाने की सलाह दे रही थी,जिसे यशोदा ने सिरे से ही नकार दिया।
इस बीच पास के एक विद्यालय में यशोदा को सेविका के रूप में अपने यहां नौकरी दे दी।विद्यालय की ओर से उसे वही एक कमरा भी रहने को दे दिया गया।अब यशोदा की दिनचर्या फिक्स हो गयी थी,दिन में विद्यालय की ड्यूटी पर रहती,बचे समय मे कुछ सिलाई का काम करती,मुन्ना के साथ खेलती।मुन्ना बड़ा हुआ
तो उसी विद्यालय में दाखिला करा दिया गया।उसकी फीस भी माफ कर दी गयी।मुन्ना पढ़ाई में तीव्र बुद्धि प्रदर्शित करता जा रहा था।
एक रात में यशोदा के कमरे को किसी ने खटखटाया।दरवाजा खोलने पर यशोदा ने सामने रामकरण को खड़ा पाया।रामकरण यशोदा के पावँ पड़कर माफी मांग रहा था,रुक्मणि उसको भी छोड़ कर किसी अन्य के साथ भाग गयी थी।यशोदा एक बार तो पिघली,
पर दूसरे ही क्षण संभलकर बोली,देखो मेरा अब तुमसे कोई सम्बंध नही रह गया है, अब तुम मेरे से मिलने का प्रयत्न भी मत करना।रामकरण खुशामद करता रह गया,यशोदा ने झटके से दरवाजा बंद कर लिया।
आज कस्बे के एक बड़े हाल में एक फंक्शन कस्बे की समाज सेवी संस्था की ओर से आयोजित
किया गया था।इस फंक्शन में कस्बे के अभिजीत का आई ए एस में चयन होने पर सम्मानित किया जाना था। हाल ठसाठस भरा था।तभी अभिजीत को मंच पर आमंत्रित किया गया।उसे कार्यक्रम के अध्यक्ष माला पहनाने को थे कि अभिजीत बोला सर मैं अपनी माँ को भी मंच पर बुलाना चाहता हूं।
अभिजीत अपनी माँ को मंच पर लेकर आता है और तब कहता है कि ये मेरी माँ है,मेरे पिता मुझे एक वर्ष की उम्र में ही मां की गोद मे छोड़ भाग गये थे।पर मेरी इस यशोदा मां ने जमाने से संघर्ष करते हुए अपने मुन्ना को अभिजीत रुप मे गढ़ दिया ।आज का सम्मान वास्तव में मेरी माँ को मिलना चाहिये।
खुशी के आंसुओं से सरोबार यशोदा ने अपने मुन्ना को वहीं स्टेज पर ही अपनी बाहों में भर लिया।आखिर उसने लिखी किस्मत पर विजय जो प्राप्त की थी।
बालेश्वर गुप्ता, नोयडा
मौलिक एवं अप्रकाशित।
#क्यूँ ना करूँ अपनी किस्मत पर नाज़