आज वट सावित्री व्रत का पर्व हैं और सोसाइटी की सभी सुहागिन स्त्रियाँ खूब सज-धज कर सोसाइटी में ही स्थित मंदिर के पास लगे बरगद के पेड़ की पूजा -अर्चना करने जा रही थी।
मैं इस पर्व पैट अत्यधिक उदासे और दुःखी होती हूँ। थोड़ी आत्मग्लानि भी रहती है… क्योकि यह व्रत मैंने कभी शुरू ही नहीं किया…
मेरे पति ने यह व्रत हमें कभी रहने ही नहीं दिया, जब भी यह पर्व आता तो मैं या मेरी सासु माँ यह व्रत करने को कहते तो… वो कहते—
“ वरगदही( बोल-चाल की भाषा में वट सावित्री व्रत को यही कहते हैं) यानि जिसका वर गदहा।”अपनी सभी भाभियों और अपनी माँ को चिढाते और कहते मेरी पत्नी यह व्रत नहीं रहेंगीं।”
हम सास बहू उनकी बातों पर मुस्कुरा कर रह जाते। मैं # अभागन कभी ये समझ ना पायी।
पति के जाने के बाद.. जब भी यह पर्व आता मैं दुखी हो जाती और सोचती——
काश! मैंने भी यह व्रत किया होता …तो पतिदेव आज मेरे भी जीवित होते ????आज भी ऐसा ही लग रहा था।तभी मेरी बेटी ने पूछा-“ क्यूँ इतनी दुखी हो माँ??? तबियत तो ठीक है ना???”
“ हाँ बेटा! बस ऐसे ही ।” मैंने कहा।
“ नहीं कुछ तो हैं???” उसने मेरे माथे पर हाथ रखते हुवे कहा।
मैं फफक-फफक कर रोने लगी।
“ अरे! क्या हो गया, अभी कल तक तो सब ठीक था, आज अचानक से क्या हो गया तुम्हें माँ???”
मैंने बताया उसे अपने मन के डर की बात … तो बोली- “ कैसी बात करती हो माँ?? पापा के लिए तुम व्रत करना चाहती थी और पापा नहीं चाहते थे, तुम्हें तो खुश होना चाहिए माँ! कि…कितना समझदार और नेक पति मिला था तुम्हें।”
“और रही बात पापा के ना रहने की तो माँ… वो एक हादसा था, जिसमें तुम मौत से जीत गयी और पापा हार गये। तुम- पापा ३३ वर्ष साथ-साथ रहे,
माँ! हर छोटी -छोटी ख़ुशियों को तुम दोनों ने साथ-साथ जिया हैं, एक दूसरे का हर जन्मदिन, हर शादी की सालगिरह तुमदोनों ने मिलकर हंसी-ख़ुशी मनायी हैं माँ!यह सब तुम्हारी ‘ज़िंदगी के कामयाबी’ के छोटे -छोटे पल थे माँ! और तो और माँ पूरे खानदान में तुम और पापा ने अपनी शादी की ‘सिल्वर जुबली’
कितने धूमधाम से मनायी थी ना माँ!! अपने ही परिवार -खानदान में कितने ही लोगों की शादी की २५वी और ५०वी शादी की साल गिरह आयी, लेकिन किसी ना किसी कारणवश वो लोग सेलिब्रेट नहीं कर पाए!!!”
“तुमने कैसे अपने आप को #अभागन मान लिया। तुम और पापा बहुत ही नसीब वाले हो माँ!!! कि… तुमदोनों ने ना जाने कितने ही ख़ुशी के पल साथ-साथ जिया और उत्सव स्वरूप सेलिब्रेट किया हैं, और माँ इस दुनिया में कुछ भी स्थिर नहीं हैं,
तुम्हीं ने बताया था ना माँ!!!कि…’जो आया हैं, वह जायेगा भी एक दिन। माँ कोई साथ आता हैं और ना कोई साथ जाता हैं।’अपने बीते हुवे जीवन के ख़ुशियों के पल को याद कर खुश रहा करो माँ!!!!’ बहुत नसीब वालों को नसीब होता है यह पल!!!’
और तुम #अभागन नहीं बहुत ही ख़ुशक़िस्मत वाली हो कि… तुम्हें हमारे पापा जैसा पति और हंसते हुवे आगे बोली…मुझ जैसी बेटी मिली हैं… “
मैं भी उसकी बात पर मुस्कुराने लगी और सोचने लगी कि… वाक़ई हम पति-पत्नी नसीब वाले ही हैं जो हमारे बच्चे इतने समझदार हैं। अब मैं अपनी परवरिश पर इतराने लगी! सच ही तो हैं…”जितने दिन का साथ विधाता ने लिखा है, उतना ही तो साथ होगा!!आख़िर मेरे बारे में उस ईश्वर ने भी तो कुछ सोचा ही होगा!!
“और एक बात माँ… जो मिला है ..उसको छोटा मत समझो माँ!! सिर्फ़ नसीब वालों का ही होता है ऐसा नसीब!!!”
“ हाँ मेरी माँ!!”
और हम दोनों ही खिलखिला पड़े।
सच! मैं #अभागन नहीं हूँ।
संध्या सिन्हा