कान का कच्चा – शिव कुमारी शुक्ला   : Moral Stories in Hindi

अजय तुमने सोच भी कैसे लिया कि मैं ऐसा गलत काम कर सकती हूं। दस साल  हो गये हमारी  शादी को तुम मुझे इतना भी नहीं समझ पाये कि मैं किस तरह की सोच रखती हूं। इन दस सालों में तुम मुझे इतना ही परख पाये। मेरे बारे में तुम्हारी कितनी घिनौनी राय है।

तुम्हें इतना ही विश्वास  है मेरे पर । शर्म आती है मुझे तुम्हारी इस छोटी सोच पर कि तुम मेरे बारे में कैसा सोचते हो। आज तुम्हारे व्यवहार ने मेरी  आत्मा पर, स्वाभिमान पर चोट की है जिसे मैं ता जिन्दगी  भुला नहीं सकती।

संजु  मुझे समझने की कोशिश करो  मुझ से कहा तो मैं थोडा शंकालु हो गया।  मुझे तुम पर तो विश्वास था किन्तु पुनीत पर गुस्सा आ रहा था।

 थोडा  शंकालु हो गया। वाह क्या दलील है तुम्हें मुझ पर विश्वास था तो तुमने उस कहने वाले को मुंह तोड़ जबाब क्यों नहीं दिया कि ऐसा कभी नहीं हो सकता मुझे पूर्ण विश्वास है। उसका मुँह बन्द क्यों नहीं कर दिया।

अरे तुम इस बात को इतना  तुल क्यों दे रही  हो मैंने तो बस ऐसे ही पूछ लिया।

यदि यहि व्यवहार में तुम्हारे साथ करुं तो तुम  इसे साधारण तरीके से ही लोगे ।तुम्हें बुरा नहीं लगेगा ।अजय यह साधारण बात नहीं है तुमने मेरे चरित्र पर शक किया है। तुम्हे जरा भी शर्म नहीं  आई ।

 मैं तुम पर कोई शक नही कर रहा किन्तु  जब सुना तो पूछना तो जरुरी था ना।

नहीं नहीं पूछना था जवाब तो तुम्हारे अपने  ही पास था यदि तुम्हें विश्वास होता। यह बहस चल रही थी संजु और उसके पति अजय को बीच। 

दोनों पेशे से शिक्षक थे  और अपनी दो छोटी-छोटी बेटियों के साथ आंननद से  रहते थे। बड़ी बेटी जब पाँच साल की हुई तो उसे अच्छे स्कूल में डालने की जरूरत महसूस हुई ।वे जिस कस्बे में तैनात थे वहाँ अच्छे स्कूल नहीं  थे।

सो उन्होंने अब बड़े शहर में ट्रांसफर  कराने की सोची। अजय का तो हो गया किन्तु संजु का नहीं हुआ। संजु ने अवकाश ले  B Ed  करने के लिए कालेज में एडमिशन ले लिया। और इस तरह वे शहर में शिफ्ट हो गए। किन्तु अवकाश  पूर्ण होने के बद संजु को वापस उसी कस्बे मे जाना  पड़ा।

वहां पूर्व परिचीत के मकान में कमरा किचन लेकर रहने लगी। सप्ताहांत कोटा आ जाती। या फिर बीच में भी समय मिलता तो आ जाती बेटियों बिना उसका मन नहीं लगता। कोशिश कर रहे  थे  ट्रांसफर होने में में समय लग रहा था ।

अजय का दोस्त एवं उसकी पत्नी कभी -कभी  उससे मिलने यह सोचकर आ जाते कि वह अकेली है थोडा बैठ आयें कोई जरूरत हो तो पूछ आयें। उनका सोचना था कि हमारा फर्ज है अजय  की अनुपस्थिती में संजु की मदद करना किन्तु मकान मालकिन को यह गलत लगा और उसने अजय के आने पर उसके कान भर दिये ।

अजय को गुस्सा आया और वह पुनीत  से नहीं मिला चुपचाप संजु के साथ कमरे पर ही था। दो दिन हो गये वह लोग नहीं आए थे अब अजय से नहीं  रहा गया  बोला पुनीत नहीं आया। 

क्यों तुम  मिल  आओ जाके होंगे विजी नहीं आए ।

नहीं मैं तो  देख रहा था कि वह कब  आता है और कितनी देर बैठता है। 

यह सुनते ही संजु बिफर पड़ी क्या कहा छिपकर जासूसी कर रहे थे। तुम्हे मेरे पर शक है। 

यह मैंने कब कहा।

और क्या कह रहे हो मतलब तो वही था न तुम्हारा नहींं तो तुम पुनीत से मिलने जाते।  जब उसने पूरी बात पूछी तो अजय ने बताया माताजी कह रही थीं कि वह आता है  बैठ कर जाता है।

 तो क्या हुआ वह तुम्हारा दोस्त है और सोचता है कि मुझे अकेले में कोई परेशानी न हो सो आता है कभी कभार वह भी अकेला नहीं पत्नी  रुचि  के साथ। रुचि ही उसे लेकर आती है कि भाभी जी अकेली हैं  में थोडा उनके पास बैठ आऊं सो वह उसे लेकर आता है इसमें क्या बुराई है दोनों पहले भी तो आते थे।

अब ऐसा क्या हो गया  जो तुम इतना गुस्सा हो गये ।दूसरों के कहने को सच मान लिया मेरे से ही पूछ लेते और  क्या मैंने तुम्हें बताया नहीं कि वे लोग आते हैं। अजय कान का कच्चा होना इतना भी ठीक नहीं दूसरों की कही बातों  पर विश्वास कर लो।  पति पत्नि  का  सम्बन्ध विश्वास पर टिका होता है ।

रिश्तों के  बीच जो  विश्वास का पतला धागा होता है यदि उसे खींचा जाए तो वह बढ़ता नहीं है वरन् टूट जाता है, और  टूटने पर जुडता नहीं है बल्कि उसमें गाँठ पड जाती है जो ता उम्र नासूर बन कर दुख देती  रहती है। अपनों पर विश्वास करना सीखो। क्या बोलता अजय गल्ती उसकी  थी। संजु मैंने माता जी की बात मान कर जो गल्ती की  है  उसे जीवन में अब कभी नहीं दोहराऊँगा, इस बार मुझे माफ कर दो। 

तभी नीचे से पुनीत कीआवाज आती है भाभी जी। 

संजु बाहर निकल कर बोलती है, हां भाई साहब।

आप ठीक तो है कोई जरूरत  तो नहीं। अभी संजु जबाब  भी नहीं दे पाई थी कि पिछे से अजय बोला क्या नीचे से आवाज लगा रहा है। 

अरे  अजय तू कब आया।

उपर आ । पुनीत  बोला अरे हम लोग चार दिनों से नहीं  आ पाये तो अभी दवा लेने आया था  तो रुचि बोली उधर होते हुए आ जाना, अपन  चार  दिन से नहीं गए है और भाभी जी को बता  देना गुडिया की तबीयत बहुत खराब हो गई थी  सो तीन दिन अस्तपताल में भर्ती कराया।

रुचि बहुत कह रही थी कि भाभीजी को बुला लो  मेरे को अकेले बहुत घबराहट हो रही है किन्तु मैंने मना कर दिया कहाँ उन्हें परेशान करोगी । दिन भर तो नौकरी करतीं हैं  फिर तुम्हारे पास‌आकर और परेशान होएगीं।

पुनीत जिस बेतकुल्फी से बात कर रहा था अजय  को  उसे देख-सुन अपने-आप पर ग्लानि  हो रही  थी माता जी (मकान मालकिन )ने कितना गलत सोचा उसे भी भडका दिया सच है बिना  स्वयं के  देखे सुने  किसी पर भी भरोसा नहीं करना चाहिए  ।

पुनीत का दिल कितना  साफ है और एक मैं क्या  क्या सोच बैठा। संजु सच ही तो कह रही पुनीत और रुचि, पहले भी तो हमारे घर आते थे. अब वह उन्हें कैसे मना कर सकती थी। और ये माताजी भी तो अच्छी तरह जानती थीं।वह पहले यहाँ उनके पड़ोस में ही तो रहते थे ।  हमें बेटा बहू   मानती थीं । संजु को अच्छी तरह जानती थीं कि वह   कैसे स्वभाव की है फिर उन्होंने ये सब क्यों किया ।  मैं  भी  पागल सा उनकी बातों के आ गया।

शिव कुमारी शुक्ला

2-1-24

स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित

वाक्य प्रतियोगिता

#रिश्तों के बीच विश्वास का एक पतला 

 धागा होता है।

1 thought on “कान का कच्चा – शिव कुमारी शुक्ला   : Moral Stories in Hindi”

  1. रिश्तों में विश्वास नाम की डोर के बिना सुखी वैवाहिक जीवन असंभव है। अति सुन्दर।

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