मां समझाओ ना बाबा को.. क्यों मेरे पीछे पड़े हैं, मैंने कह दिया ना मुझे पढ़ना लिखना बिल्कुल नहीं पसंद, तो क्यों जिद कर रहे हैं? मेरा मन तो घर के कामों में, सिलाई बुनाई में लगता है, अगर जबरदस्ती मुझे विद्यालय में डाल भी दिया तो
भी क्या होगा ! अरे बेटा ..पढ़ लिख जाएगी तो तेरा भविष्य सुधर जाएगा, नहीं तो मेरी जैसी अभागन रह जाएगी, मेरे लिए तो काला अक्षर भैंस बराबर है, मैं तो अपने मां बापू की चिट्ठी भी नहीं पढ़ पाती, बस किसी पढ़े लिखे लोगों को तलाशती रहती हूं
जो कम से कम मुझे उनके समाचार तो पढ़ कर बता सके और तेरी तो सभी सहेलियां विद्यालय जाती हैं फिर तुझे स्कूल जाने में इतना जोर क्यों आ रहा है? बिटिया तू आज पढ़ाई का महत्व नहीं समझ रही पर आने वाले समय में तुझे इसका महत्व जरूर पता चलेगा,
बस हमें कुछ ना सुनना.. कल से तू स्कूल जाएगी! ठीक है मां.. बड़े बेमन से रंजना ने स्कूल जाने की हामी भरी ! अगले दिन रंजना अपनी सहेलियों के साथ स्कूल पहुंच गई किंतु वहां मा’साहब की बातें तो कम ही पल्ले पड़ी बल्कि वह तो जाकर वहां बच्चों के साथ खेल कूद में मस्त हो गई, बड़ी मुश्किलों से
जाकर पांचवी तक ही पढ़ पाई रंजना, उसकी सभी सहेलियां पढ़ लिख गई और उसको खूब समझाती किंतु रंजना के तो पढ़ाई दिमाग में घुसती ही नहीं थी, घर का काम चाहे जितना करवा लो! 16 वर्ष की उम्र में ही रंजना का विवाह एक जमींदार परिवार में कर दिया गया और
अगले 10 सालों में वह पांच बच्चों को जन्म दे चुकी थी, चार लड़के और इकलौती लड़की! ससुराल उसको ऐसा मिला जहां रंजना की ही चलती थी, धीरे-धीरे रंजना के बेटे बेटियां पढ़ लिख गई और एक-एक करके सभी का विवाह भी हो गया, बेटी अपने ससुराल चली गई
और बेटे नौकरी के सिलसिले में बाहर चले गए! रह गई तो रंजना जो कि अब पूरे गांव में अम्मा जी के नाम से मशहूर हो चुकी थी, अम्मा का रॉब रुतबा ऐसा की बहुएं थरथर कांपती रहती, पूरे गांव में अम्मा के बिना कोई काम नहीं होता, चाहे शादी ब्याह हो या जचकी,
हर काम में उनकी सलाह को महत्वपूर्ण माना जाता ,घर में भी अगर कोई उनके हुकुम की अवहेलना करता तो अम्मा का गुस्सा ऐसा कि उसके सामने अच्छे-अच्छे हथियार डाल दे, फिर बेचारे बेटों की तो बात ही क्या, अम्मा जी बेटी को अवश्य लाड करती थी
पर बेटी भी अब तो ससुराल वाली हो गई थी! बेटों के बाहर जाने के बाद अम्मा को यह घर काटने को दौड़ता! इतनी बड़ी और सुंदर हवेली, पर किस काम की? जब बेटे बहु ही अम्मा के पास ना टिकना चाहे, अब अम्मा अपना रॉब किस पर चलाएं,
कोई सुनने वाला ही नहीं था, बस दो-चार नौकर रह गए थे अम्मा की सेवा के लिए !अम्मा जी तोचाहती थी कि बेटे बहुएं नाती पोते सब उनके साथ रहे किंतु अम्मा जी के साथ कोई नहीं रहना चाहता था किंतु अचानक 1 साल बाद चारों बेटे सपरिवार आए
और अम्मा से अपने साथ चलने की जिद करने लगे, अम्मा तो यह देखकर पगला सी गई, उन्हें लगा उनकी बेटे आज भी उन्हें कितना चाहते हैं ! बेटों ने कुछ पेपर पर अम्मा के दस्तखत भी लेने को कहा, जब अम्मा ने पूछा.. यह कागज कैसे हैं, तो बेटे बोले..
मां शहर में रहने के लिए कागजों पर दस्तखत होना बहुत जरूरी है, अपने बेटों पर भला कौन विश्वास नहीं करता, तो उन्होंने उन पर दस्तखत कर दिए और बेटे कुछ समय बाद आकर अम्मा जी को ले जाएंगे, ऐसा कह कर चले गए! 2 महीने बाद कोर्ट का नोटिस आया…
यह हवेली जल्दी से जल्दी खाली कर दीजिए यहां पर एक बड़ा सा होटल बनने जा रहा है तो अम्मा जी ने कहा.. कैसा होटल.. नहीं नहीं.. मुझे कोई होटल नहीं बनवाना, यह मेरे पति की आखिरी निशानी है और मैं इस हवेली को बेचना भी नहीं चाहती, तब वकील ने कहा..
देखिए अम्मा जी… आपने कागजों पर दस्तखत किए हैं, जिसमें लिखा है आप अपनी मर्जी से यह हवेली बेच रही हैं, अम्मा को थोड़ा बहुत ही पढ़ाई लिखाई का ज्ञान था किंतु वह अपना नाम तो भली भांति पढ़ना जानती थी, उन कागजों पर सही में अम्मा जी का ही नाम था!
आज अम्माजी कहीं नहीं दिख रही थी, दिख रही थी तो सिर्फ एक ऐसी अभागन जिसने पढ़ाई लिखाई का महत्व न समझ कर अपने पैरों पर खुद कुल्हाड़ी मार ली,
उसे अपने बच्चों से ऐसी उम्मीद बिल्कुल नहीं थी, आज अम्मा जी के पास आंसुओं के अलावा कुछ नहीं बचा था! और वह अभागन सोच रही थी सब कुछ होते हुए भी उसके पास कुछ नहीं है!
हेमलता गुप्ता स्वरचित
कहानी प्रतियोगिता (#अभागन)
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