शांतिनगर कॉलोनी में, एक खूबसूरत सुबह के साथ हरियाली भरी थी। यहाँ रमेश और सुरेश नाम के दो पड़ोसी खुशहाली और सद्भाव के साथ रहते थे। उनके घर एक-दूसरे के बगीचे के साथ जुड़े थे और और उनके बीच एक छोटी सी बाड़ थी। उनकी दोस्ती का वातावरण पूरे कॉलोनी में प्रशंसित था। लेकिन एक दिन एक छोटी सी बात ने उनके बीच मनमुटाव पैदा कर दिया।
एक सुबह, सुरेश ने देखा कि रमेश के घर की बाड़ उनके बगीचे में थोड़ा सा अंदर की तरफ खिसक गई थी। सुरेश को लगा कि रमेश ने जानबूझकर बाड़ को उनकी जमीन पर खिसका दिया है। गुस्से में आगबबूला होते हुए, सुरेश रमेश के दरवाजे पर पहुंचे।
“रमेश जी, ये क्या तरीका है? आपकी बाड़ हमारी जमीन पर आ गई है,” सुरेश ने तीखे स्वर में कहा।
रमेश ने प्रेमभाव से उत्तर दिया, “सुरेश जी, मैंने कोई बाड़ नहीं खिसकाई। हो सकता है यह हवा की वजह से हुआ हो।”
सुरेश ने गुस्से में उत्तर दिया, “मुझे यकीन नहीं होता। मुझे पता है कि आप जानबूझकर ऐसा कर रहे हैं। मैं इसे बर्दाश्त नहीं करूंगा।”
रमेश ने भी गुस्से में आकर कहा, “आप मुझ पर बेबुनियाद आरोप लगा रहे हैं। यह सही नहीं है।”
दोनों के बीच यह छोटी सी बात एक बड़ी बहस में बदल गई और वे एक-दूसरे से बात करना बंद कर दिया और दोस्ती का वातावरण पराजित हो गया। उनके बच्चे, सोनू और मोनू, इस झगड़े से दुखी थे क्योंकि वे अच्छे दोस्त थे और अक्सर साथ खेलते थे।
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एक दिन, सोनू और मोनू पार्क में खेल रहे थे। मोनू ने उदास होकर कहा, “सोनू, ये झगड़ा बहुत बुरा है। हमारे पापा अब एक-दूसरे से बात भी नहीं करते।”
सोनू ने कहा, “हाँ मोनू, हमें कुछ करना होगा। हमें अपने पापा को फिर से दोस्त बनाना होगा।”
मोनू ने चहकते हुए कहा, “सोनू, अगले हफ्ते कॉलोनी में एक सामुदायिक समारोह है। क्यों न हम वहाँ कुछ खास करें?”
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सोनू और मोनू ने सोचा कि सामुदायिक समारोह अपने माता-पिता को मिलाने का अच्छा मौका है। इसलिए उन्होंने एक योजना बनाई।
दोनों बच्चों ने मिलकर एक योजना बनाई। उन्होंने अपने दोस्तों की मदद से एक नाटक तैयार किया, जिसमें उन्होंने बाड़ के झगड़े को हास्य रूप में पेश किया। उन्होंने अपने दोस्तों को नाटक में अलग-अलग किरदार निभाने के लिए तैयार किया। समारोह का दिन आ पहुंचा और पूरे कॉलोनी ने नाटक देखने के लिए इकट्ठा हुआ, जिसमें रमेश और सुरेश भी शामिल थे।
नाटक के दौरान, सोनू और मोनू ने बड़ी ही दिलचस्पी से दो पड़ोसियों के बीच बढ़ते मनमुटाव का विवरण किया। उन्होंने दिखाया कि कैसे छोटी-सी बातों ने उनकी दोस्ती को प्रभावित किया।
सोनू ने ड्रामे में कहा, “अरे मोनू, क्या तुम्हें पता है? हमारी बाड़ हमारी दोस्ती को तोड़ने वाली है!”
मोनू ने जवाब दिया, “हाँ सोनू, लेकिन हमें बाड़ नहीं, दोस्ती को मजबूत करना चाहिए।”
नाटक के अंत में, सोनू और मोनू ने एक दृश्य प्रस्तुत किया, जिसमें बाड़ गिर जाती है और दोनों पड़ोसी हँसते हुए उसे फिर से खड़ा करने का फैसला करते हैं। इस दृश्य ने उपस्थित सभी लोगों के दिल को छू लिया।
रमेश और सुरेश, नाटक को देखते हुए, अपनी गलतियों का एहसास करने लगे। उन्होंने देखा कि कैसे एक छोटी सी बाड़ ने उनके बीच इतनी बड़ी दूरी पैदा कर दी थी।
नाटक के समाप्त होने पर, सुरेश ने पहल करते हुए कहा, “रमेश जी, मुझे माफ कर दीजिए। मैंने बेवजह आप पर आरोप लगाया।”
रमेश ने मुस्कराते हुए कहा, “सुरेश जी, मैं भी माफी चाहता हूँ। हमें इस छोटी सी बात पर झगड़ना नहीं चाहिए था।”
दोनों ने हाथ मिलाया और गले लगाया। उनके बच्चों ने खुशी से चिल्लाते हुए कहा, “हमारे पापा फिर से दोस्त बन गए!”
इस प्रकार, सुरेश और रमेश ने अपनी दुश्मनी खत्म करके फिर से दोस्ती को अपना लिया। उन्होंने समझा कि छोटी-छोटी बातें रिश्तों में दरार नहीं डालनी चाहिए, और संवाद और समझदारी से किसी भी समस्या का समाधान किया जा सकता है।
समारोह के बाद, रमेश और सुरेश ने बाड़ को मिलकर ठीक किया और सुनिश्चित किया कि ऐसी छोटी-छोटी बातें उनकी दोस्ती को फिर कभी प्रभावित न करें। कॉलोनी के अन्य लोग भी इस घटना से प्रेरित हुए और उन्होंने समझा कि आपसी समझ और सहयोग से किसी भी समस्या का समाधान हो सकता है।
इस घटना के बाद, शांतिनगर कॉलोनी में रमेश और सुरेश की दोस्ती और भी मजबूत हो गई। वे अपने बच्चों के साथ मिलकर अक्सर बगीचे में खेलते, हँसी-मजाक करते और एक-दूसरे के सुख-दुख में शामिल होते।
छोटे-छोटे मुद्दों पर झगड़ना व्यर्थ है और सही संवाद और समझदारी से किसी भी मनमुटाव को सुलझाया जा सकता है। बच्चों की मासूमियत और प्यार ने यह साबित कर दिया कि सच्ची दोस्ती हमेशा बनी रहनी चाहिए।
आरती झा आद्या
दिल्ली