परहेज – लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi

अनीशा का दिल आशंकाओं से घिर गया था लेकिन कोई अपराध बोध नहीं था उसे।

बात बस इतनी हुई कि आज लड़के वाले उसे देखने आए थे।हालांकि इस तरह देखना दिखाना जैसी बातों से वह परहेज ही करती थी लेकिन पिता के बहुत समझाने पर अनिकेत से एक अनौपचारिक मुलाकात अपने ही घर पर माता पिता की उपस्थिति में ही करने पर राजी हो गई थी।

अनिकेत की इच्छा थी कि कहीं अलग बाहर वे दोनो मुलाकात करें बात करें एक दूसरे को समझ लें लेकिन अनीशा कुछ अलग ही किस्म की लड़की थी उसका मानना था अकेले नहीं घर वालो के बीच ही बैठकर स्पष्टता से विचारो का आदान प्रदान करना ही रिश्तों को सुदृढ़ करता है।

अनिकेत ने उसकी बात मानते हुए आज उसके घर अपने माता पिता के साथ आना तय किया था।इकलौते पुत्र थे अपने माता पिता के।स्वाभाविक रूप से माता पिता उनके प्रति ज्यादा पजेसिव थे।स्वाभाविक रूप से आम माता पिता की भांति उनकी ख्वाहिश भी एक ऐसी बहू की थी जो अनिकेत के साथ साथ माता पिता का भी पूरा ख्याल रखे घर को साथ लेकर चले।

आज जब वे लोग अनीशा के घर आए तो करीबन दो घंटे के वार्तालाप में जिसमे खाना पीना भी शामिल था अनिकेत का अपने माता पिता के प्रति और माता पिता का अपने पुत्र के प्रति अटूट लगाव ख्याल और एक रहने की अभिलाषा हर क्षण आकार ग्रहण करती रही थी।

जब अनीशा प्लेट में नाश्ता लगा  कर पिता जी को दे रही थी तब अनिकेत ने तुरंत प्लेट से बर्फी का टुकड़ा हटा दिया था,पापा को शुगर है कहते हुए।और माता जी की ओर बढ़ती हुई प्लेट से समोसे हटा दिए थे मां को ज्यादा तेल नुकसान करता है कहते हुए।

हद तो तब हुई जब अनिकेत की ओर प्लेट बढ़ाती अनीशा को रोककर मां ने खुद उस प्लेट का मुआयना किया और एक दो चीजे हटा कर संतुष्ट होकर ही बेटे को प्लेट पकड़ाई मेरा बेटा और हम दोनो बहुत सी चीजो से और बातो से सख्त परहेज करते हैं….उनके कहने के ढंग से अनीशा को यूं प्रतीत हुआ मानो वे अनीशा को आने वाली जिंदगी में पालन करने के  लिए नियम समझा रही हों..!

बेटा सब कुछ अच्छी तरह देख समझ लो किसको किस चीज का परहेज है ध्यान रखना है अब तुम्ही को …अनीशा की मां ने बिटिया के चेहरे पर नाखुशी के उमड़ते हुए भावों को भांपते  हुए मुस्कुरा कर वातावरण हल्का करने का यत्न किया तो अनीशा के पिता भी साथ में मृदुल भाव से हां हां हमारी बिटिया बहुत समझ दार है

सबका ख्याल कैसे रखना है इसे बखूबी आता है।हम दोनों तो उसकी बड़ी बहन की शादी करके विदेश जाने के बाद से इस पर ही निर्भर से हो गए हैं।ये है ही ऐसी सुबह से रात तक हम दोनों को कब क्या चाहिए पूरा ध्यान रखती है पूरे घर का काम बाहर के काम सब इसीके जिम्मे हैं बहुत गुणी है मेरी बिटिया  पता नही इसके जाने के बाद हम कैसे रहेंगे ….कहते हुए उनका गला द्रवित हो उठा था।

लपक कर अनीशा ने पिता को संभाला जल्दी से एक गिलास पानी निकाल कर दिया और पिता के बगल में ही बैठ गई।

अब ये तो विधि का विधान ही रहता है कि बेटियों को पराए घर जाना है तो कैसा मोह और कैसा दुख अनिकेत की मां ने अनीशा और उसके पिता को इतना भावुक होते देख  त्वरित तीखी प्रतिक्रिया दे दी थी।

लीजिए ना ये सब अनीशा ने घर में ही पकाया है नुकसान नहीं करेगा खा लीजिए अनीशा की मां ने हटाया हुआ बर्फी का टुकड़ा अनिकेत के पिता की ओर बढ़ाते हुए आग्रह किया था।

मीठा तो मीठा ही होता है घर पर बनाने से उसकी मिठास तो वही रहेगी ना परहेज तो परहेज ही रहना चाहिए…अनिकेत ने तुरंत मां का आग्रह वापिस लौटाते हुए तर्क प्रस्तुत कर दिया था।

अचानक अनीशा की मां को खांसी आ गई और प्लेट उनके हाथों से छूट कर अनिकेत के पैंट पर गिर पड़ी।

जब तक कोई कुछ कहता समझता अनिकेत की मां झपट कर उठीं और अपने रूमाल से पैंट साफ करने लगीं…. खांसती हुई  अनीशा की मां की तरफ हिकारत भरी निगाह थी उनकी…. जो विवश सी असमय आ चुकी खांसी और उसके दुष्परिणामों  को नियंत्रित करने की असफल कोशिश कर रहीं थीं।

अनीशा ने तुरंत अपराध बोध से ग्रस्त खांसती हुई मां को संभाला सोफे पर बिठाया और जल्दी से उनकी खांसी वाली दवा लेकर पिलाने लगी।

अनकहा असंतोष और अप्रसन्नता अचानक पूरे वातावरण में पसर गई थी नए बनते हुए रिश्तों के मध्य सिर उठाता हुआ मनमुटाव अप्रत्यक्ष उपस्थिति दर्ज करवा चुका था।

अनिकेत की मां ने अनीशा की मां की तरफ ध्यान नहीं दिया। अनीशा ने भी उनके बेटे के पैंट की तरफ ध्यान नहीं दिया यह बात उन्हे बहुत नागवार गुजर रही थी।

अच्छा अब हम लोगों को चलना चाहिए दो तीन जगह और भी जाना है हमें दर्प से कहती लड़के की मां उठ खड़ी हुई तो लड़की के पिता सहम गए बहुत संकोच से पूछ बैठे आपको कोई बात बुरी लगी हों तो मैं क्षमा प्रार्थी हूं मेरी पत्नी की तबियत थोड़ी खराब सी रहती है ……

थोड़ी नही पूरी ही खराब लगती हैं मुझे तो इनकी तबियत ।क्या बेटी के ख्याल के भरोसे बैठे रहेंगे इतनी सी बात आप लोग पहले अच्छी तरह समझ लीजिए कि बेटी पराए घर जाने के लिए ही होती है…कब तक यह अपनी मां का ख्याल रख पाएगी…

जब तक इनकी बेटी जिंदा रहेगी तब तक…. अनीशा ने तेजी से उनकी बात काटते हुए कहा उसका धैर्य अब जवाब दे चुका था।

बेटा अपने माता पिता का ख्याल रखे और उसकी पत्नी भी जब आए तो वह भी जी जान से सेवा करे और जिन मां बाप के बेटे ही ना हों वे क्या बेसहारा छोड़ दिए जाएं वे संतान हीन कैसे मान लिए जाएं आखिर बेटी भी तो संतान ही होती है जो बेटी अपने माता पिता का ख्याल रखती है वह अपने सास ससुर का भी वैसा ही ख्याल रख पाएगी।

आपको अपने बेटे के पैंट गंदी होने की ज्यादा चिंता थी मेरी मां की खांसी से आपको नफरत हो रही थी ।कितने स्वार्थी हैं आप लोग मेरे पिता के अपनी संतान के प्रति भावुक होने पर भी आपको एतराज है ।जब अभी रिश्ता जुड़ने के पहले ही आप लोग मेरे मां पिता से इतना परहेज कर रहे हैं तो रिश्ता जुड़ने के बाद तो एकदम किनारा ही कर लेंगे..!!

अनिकेत अवाक सुन रहा था और उसकी मां के कदम दरवाजे की तरफ बढ़ चुके थे…!

जाने के पहले मेरे प्रति आपके क्या विचार हैं या होंगे इसके पहले मैं अपने विचार अभी ही स्पष्ट कर देना चाहती हूं ।बेटा या बेटी का भेद मैं नहीं मानती संतान बस संतान होती है जिसे अपने मां पिता जी का ध्यान रखना चाहिए ।मैं अपने मां पिता जी का ध्यान शादी के बाद भी रखूंगी ।

ऐसे रीति रिवाज जो एक संतान का अपने मां बाप का ख्याल रखने पर बंदिश लगाते हो…. मैं उनसे परहेज करती हूं…!!हम उन खाने पीने की चीजों से परहेज इसलिए करते हैं क्योंकि वे हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकती हैं वैसे ही हमे ऐसे विचारो और रिवाजों से भी परहेज करना चाहिए जो समाज और परिवार के स्वास्थ्य के लिए हानिकारक होते हैं हो रहे है…!

सबके जाने के बाद अनीशा चुप ही थी लेकिन उसके मां पिताजी की अकुलाहट कई गुना बढ़ गई थी।बेटा हम लोगों की चिंता में मत घुल…आखिर ये तो जमाने का दस्तूर है बेटी शादी के बाद पराए घर ही चली जाती है वही उसका घर होता है… हम लोगों को पाप का भागी मत बना…. मां का अपराध बोध बढ़ता ही जा रहा था।बनते हुए रिश्तों में मेरे कारण मनमुटाव की स्थिति बन गई है …!

मनो का मिलना उतना सरल नहीं होता जितना मनो में मुटाव उत्पन्न हो जाना।मन तो संवेदनशील होता है छोटी सी ही बात से जुड़ जाता है और छोटी सी ही बात से अलग हो जाता है।लेकिन अगर मन दृढ़ता से मिल चुके हैं तो छोटी बड़ी कैसी भी बातें बेअसर हो जाती हैं।

अनिकेत के परिवार को गए हुए करीब एक हफ्ता बीत गया था …. अनीशा मां पिता जी की मनोदशा शांत करने में लगी थी।

तभी मोबाइल बज उठा था..!

देखा तो अनिकेत का था… अनीशा ने अनिच्छा से फोन उठा लिया था …..जी हेलो.. अनीशा के कहते ही अनिकेत का स्वर उभर आया।

अनीशा जी आप सभी से माफी मांगना चाहता हूं प्लीज बुरा मत मानिएगा..! आपकी बातें मेरे दिल को छू गईं।सच कहा आपने संतान का हक बनता है अपने मां पिता का ख्याल रखना! समाज इन पूर्वाग्रहों से कब मुक्त होगा कि बेटी पराए घर जायेगी अपने खुद के मां पिता उसके लिए पराए हो जायेगे …

अगर अपने मायके की तरफ ध्यान रहेगा तो ससुराल की तरफ ध्यान नहीं देगी….आप मेरे भी मां पिता जी का ख्याल रखिएगा और मैं आपके भी मां पिता जी का….किसी रीति रिवाज की क्या मजाल जो ये हक छीन सके।सिर्फ बेटा बहू क्यों बेटी और दामाद भी तो मां पिता का ख्याल रख सकते हैं।

कहिए आपके इस हक का उपयोग करने में मैं आपका साथ दे सकता हूं….!!

अनीशा की आशंकाएं अनिकेत की बातें सुनकर सुनहरे विश्वास में बदलने लगी थीं।एक ऐसे विश्वास में जो उसके विचारों से उसके ख्यालों से परहेज नहीं रख रहा था बल्कि उन्हे सहेज कर उन्हे अपना कर ठोस आकार देना चाहता था।

अनीशा कुछ कहती तब तक मां ने उसकी मुखमुद्रा देखते हुए मोबाइल ले लिया था … हां हां अरे अनिकेत बेटा बिलकुल आओ अभी आ जाओ अच्छा तुम्हारे मां पिता जी भी आना चाहते हैं ये तो बहुत अच्छी बात है …तुम्हारा ही घर है बेटा…..मां की खुशी से चहकती आवाज ने अनीशा को अनिकेत के अपने घर ही नहीं अपने जीवन में भी आने की खुश खबर दे दी थी।

लतिका श्रीवास्तव 

#मनमुटाव#

1 thought on “परहेज – लतिका श्रीवास्तव : Moral Stories in Hindi”

  1. वहुत सुंदर कहानी है पढ. कर बहुतअच्छा लगा

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