बेटी अब से ससुराल ही तेरा घर है अब तो तू यहां की मेहमान है – मनीषा सिंह। : Moral Stories in Hindi

स्टेशन छोड़ते ही गाड़ी धीरे-धीरे तेज होती जा रही थी ज्यों -ज्यों गाड़ी तेज रफ्तार पकड़ रही थी त्यों -त्यों सरस्वती की आंखों से मां-बाप ओझल होते जा रहे थे।

आशु थमने का नाम नहीं ले रही थी मन मारकर अपनी सीट पर जाकर बैठ गई।  

अपनी और बच्चों की छुट्टियां खत्म होने के बाद सरस्वती वापस दिल्ली आ रही थी ।

मम्मी आप रोती क्यों है? अगली छुट्टी में हम फिर से नानी घर आएंगे!

 छोटा बेटा प्रेम मां को चुप कराते हुए बोला।

सरस्वती मुस्कुरा कर बेटे के सर पर हाथ फेरा और अपनी आंखें बंद कर अतीत में खो गई ।

 विदाई के वक्त मां के वाक्य ने सरस्वती के मन में एक विरोधाभास पैदा कर दिया था कि, वो इस घर की बेटी है या मेहमान ? अपने मां -बाप के लिए उसके द्वारा किया गया फर्ज किस नाते से होगा—-? बेटी बनकर—- या—- मेहमान बनकर—-  ?

खैर समय बीतता गया भगवान की कृपा से सरस्वती के दो लाल हुए– प्रेम और साहिल। 

बच्चे बड़े हो गए। स्कूलों में गर्मी की छुट्टियां लगी तो जाहिर है  बच्चों को छुट्टियां बिताने का ख्याल दादी और नानी घर का ही आता है ।

सो स्कूल में शिक्षिका होने के नाते सरस्वती भी अपनी छुट्टियां मनाने के लिए दिल्ली से पटना पहले ससुराल आई क्योंकि बच्चों की जिद थी कि पहले दादी के घर फिर नानी के यहां।

ससुराल में 15 दिन लगाकर बची छुट्टियां मनाने सरस्वती अपनी मायके आ गई ।

भाई के बच्चे और सरस्वती के बच्चे सभी मिलकर पूरे -पूरे दिन धमाल मचाते इनकी धमाल चौकड़ी से पूरा घर हिल जाता।  नाना -नानी  भी अपने  नातियो और पोते पोतियो के धमाल चौकड़ी में शामिल हो जाते और बच्चों के साथ उनका भी मन लग जाता।

 एक दिन भाभी रामा ,और मां अंजनी के बीच किसी बात के लिए कहा सुनी हो गई। 

अंजनी जी ने बात को एगो पर ले लिया इधर रमा भी झगड़े को खींचने लगी ।

अब खाना  बनाने की जिम्मेदारी सरस्वती केऊपर आ गई ।

उनके झगड़ों में वो “बाली का बकरा” बन गई ।

देखते- देखते 5 दिन बीत गए लेकिन इन दोनों बीच शीत युद्ध चालू थी ।और  सरस्वती की छुट्टियां भी समाप्त होने वाली थी।

 दो दिन बचे थे दिल्ली जाने में सो उसने इन दोनों के झगड़े को खत्म करने का निश्चय किया। 

गलती उसे रामा की ही लगी थी सो उसे ही समझाने की कोशिश में लग गई ।

भाभी —!”आप मम्मी की बातों पर इतनी जल्दी रिएक्ट मत करो वह आपको सही तो कह रही थी आप 8:00 बजे सो कर उठती हो! मानती हूं कि बच्चों की छुट्टियां अभी चल रही है लेकिन भैया की ऑफिस तो बंद नहीं है ना ।उसकी ऑफिस तो समय से ही होती है।

थोड़ी जल्दी उठ जाया करो तो भैया भी टाइम पर ऑफिस जाया करेंगे। जाइए मम्मी से माफी मांग लीजिए कब तक आप दोनों एक दूसरे से बात नहीं करोगे। और वैसे भी वो आपसे बड़ी है मां हैं।माफी मांगने से आप छोटी नहीं हो जाएंगी।

 सोचिए पापा -भैया कितने टेंस हो जाते हैं।

 घर में हंसी-खुशी का माहौलअच्छा लगता है ना —।”

सरस्वती को भाभी से पूरी आशा थी कि वह समझ जाएंगी ।लेकिन —!

सरस्वती दीदी —!आप इस घर की मेहमान हो सो प्लीज मुझे समझाने की चेष्टा ना करें।  रामा मानने को तैयार नहीं थी ।

मेहमान—? सुनकर सरस्वती की धड़कने बढ़ गई दिमाग सुन्न हो गया ।

आंखों में आंसू लिए बिना कुछ बोले छत की ओर दौड़ पड़ी वहां कुछ देर बैठ जब मन हल्का हुआ तब नीचे आकर अपने काम में लग गई।

 अभी कुछ साल पहले 

सरस्वती के पिता दीनानाथ जी को प्रोस्टेट की प्रॉब्लम आई  तो डॉक्टर ने उनको कैंसर वाली दवा कुछ रिपोर्ट के आधार पर ही प्रिसक्राइब कर दि ।

घर में सभी की नींद उड़ गई ।

 उस समय भाभी ने भैया को दिलासा देते हुए कहा  था कि सरस्वती दीदी है ना वह सब संभाल लेंगी।

 पापा को हमें दिल्ली दिखाना चाहिए ।

सरस्वती ने ,दीनानाथ जी की दिल्ली के सबसे बेस्ट डॉक्टर से इलाज करवाई।भगवान का लाख-लाख शुक्र है वहां के सभी टेस्ट के बाद रिपोर्ट अच्छी आई। प्रोस्टेट में थोड़ी सी इन्फेक्शन बताई गई थी बाकी सब सही था। 

उस समय सरस्वती ने अपनी पूरी एरी- चोटी एक कर दी थी अच्छे डॉक्टर से इलाज के लिए ।

 स्कूल से छुट्टियां ले पिता की सेवा में दिन-रात लग गई। 

 “आज –अगर मेरी बेटी नहीं होती तो दिल्ली जैसे अनजान शहर में इतनी आराम और सरल सुविधा से इलाज संभव नहीं हो पता।

 अंजनी जी का रामा से फोन पर बात -चित हो रही थी 

 हां मां —! ये तो है पर “दीदी का भी बेटी होने के नाते फर्ज बनता है वो कोई दूसरी नहीं इस घर की बेटी हैं ।”

वाह भाभी वाह !उसे समय मैं दूसरी नहीं थी इस घर की बेटी थी और आज जब आपको सही बात बताने आई तो एक पल में मुझे मेहमान बना दिया। 

सोचते -सोचते जाने कब सरस्वती की आंख लग गई-।

” मां—! आपके लिए भेज या नॉनवेज आर्डर करूं?

 बड़ा बेटा साहिल की आवाज सुनकर सरस्वती की आंख खूली तो देखा ऑर्डर वाला पेन कागज के साथ आर्डर लेने के लिए खड़ा था।

मेरे प्रिय पाठकों आप मुझे अपने कमेंट में ये जरूर बताएं की क्या बेटियां सिर्फ  अपने मायके के प्रति जिम्मेदारियां निभाने के लिए ही बेटी होती है— ? 

बाकी समय मेहमान बन जाती है । 

क्यों उसे हर बार यही सुनाया जाता है कि तू तो अब पराई हो चुकी है——?

 अगर आपको मेरी कहानी पसंद आई हो तो प्लीज इसे लाइक्स , कॉमेंट्स और शेयर जरूर करें। । 

धन्यवाद ।

मनीषा सिंह।

Leave a Comment

error: Content is Copyright protected !!