परवरिश का मान – अर्चना सिंह : Moral Stories in Hindi

दस साल का था पीयूष जब उसकी मम्मी को आर्थराइटिस की बीमारी ने बुरी तरह घेरा । पीयूष की चाची स्नेहा जब शादी के बाद दूसरी बार ससुराल गयी तो उससे मासूम पीयूष का दुखद बचपन और अपनी जेठानी ( पीयूष की माँ रूपा ) का दर्द नहीं बर्दाश्त हुआ ।

घर की स्थिति भी बहुत अच्छी नहीं थी कि नौकर – चाकर रख लिए जाते ।

कमर और घुटने में तकलीफ की वजह से किसी तरह रूपा खाना बनाती पेट भरने के लिए और पीयूष अपने दोस्तों का खाना देखकर अक्सर ज़िद करता…”मम्मी ! मेरे लिए भी आज ये बना दो, आज वो बना दो । रुपा कभी तो कष्ट सह के बना देती तो कभी चिड़चिड़ा जाती । 

पीयूष के पापा की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई थी । 

 सास भी उम्र की वजह से तकलीफ़ों से घिरी रहती थीं ।  किसी तरह स्वयं का काम कर लेती थीं । ससुर ट्यूशन पढ़ाकर परिवार का निर्वाह करते थे ।

स्नेहा अच्छे घर से थी, उसके  पति अतुल भी बैंक में क्लर्क थे । दिल से और विचार से बहुत दयालु थी स्नेहा ।

स्नेहा ने सासु माँ मालती जी से पूछा…”मम्मी ! पीयूष को अपने साथ लेकर सिलवासा जाना चाहती हूँ अगर आप इजाजत दें तो । वैसे तो मैं चाहती थी दीदी, आप और पापा जी भी चलें पर ज़बरदस्ती नहीं है । पीयूष की देखभाल मैं अच्छे से करूँगी और अच्छे स्कूल में दाखिला कराउंगी । स्नेहा की बातें सुनकर रूपा के चेहरे पर खुशी साफ झलक रही थी ।

मालती जी के मन में भी अगाध खुशी थी कि छोटी बहू ने बड़ी का दुःख समझा । उन्होंने खुशी- खुशी अनुमति दे दी जाने के लिए ।

दो दिन बाद का टिकट हुआ ।  जाने वाले दिन रास्ते मे खाने के लिए बहुत मुश्किल से रूपा और पीयूष की दादी ने मिलकर कुछ नाश्ता बनाया और रात में खाने के लिए रोटियाँ दीं ।

आज स्नेहा पीयूष को लेकर पहुँच गयी सिलवासा । उसने अच्छे स्कूल देखकर पीयूष का दाखिला कराया । डांस क्लास में भी डलवाया और पीयूष की इच्छा थी क्रिकेट सीखने की, स्नेहा और अतुल ने बात करके क्रिकेट अकादमी में भी डलवा दिया । 

पीयूष इस शान – ओ – शौकत को देखकर, महसूस कर बहुत खुश था । उसने चाचू चाची को एक प्यार भरी झप्पी दी ।

बहुत अच्छे से दिन बीत रहे थे । स्नेहा अतुल के घर आने से पहले पीयूष को पढ़ाकर पार्क में खेलने ले जाती फिर खिलाकर सुला देती । दो टेस्ट हो चुके थे स्कूल में अच्छी पढ़ाई चल रही थी। लगभग आठ महीने बीतने को थे । एक दिन अचानक स्नेहा को चक्कर सा आ गया । डॉक्टर के पास अतुल के साथ दिखाने गयी तो पता चला स्नेहा गर्भवती है । अतुल  बहुत खुश हुआ ।

अब तबियत खराब होने के कारण स्नेहा पीयूष पर कम ध्यान दे पाती । हर दिन के क्रियाकलाप देखकर अतुल ने स्नेहा से कहा कि..मेरा तो दिन भर बैंक में निकल जाता है, तुम्हारी तबियत ठीक नहीं रहती तो धीरे- धीरे काम पीयूष को सिखाना होगा । कम से कम नीचे से छोटी – मोटी जरूरत की चीजें तो ला देगा और तुम्हारा बोझ भी कम हो जाएगा ।

स्नेहा जिस सोसायटी में रहती थी उसके ठीक नीचे बाजार भी था । उसने पहले पीयूष को लिफ्ट में अकेले आना- जाना, फिर दूध – दही लाना आदि सिखाया । वैसे तो ऑनलाइन सब आ जाता था लेकिन कुछ नहीं मिल पाया तो छोटी – मोटी वस्तुएं पीयूष भी ला देता था ।

अब कभी – कभी स्नेहा क्लासेज़ छोड़ने जाती कभी पीयूष खुद चला जाता । चाची को परेशान देखकर वो तकलीफें समझ रहा था । अतुल ने अपनी खुशी मम्मी के साथ बांटी तो मालती जी ने अपनी बहू रूपा के साथ आने की इच्छा जताई ।

काफी दिनों से उनका भी मन हो रहा था पीयूष से मिलने का । टिकट लिया अतुल ने ,रूपा और मालती जी आ गईं । उस दिन स्नेहा की तबियत थोड़ा ज्यादा खराब थी पीयूष ने कह दिया था घर में कि वो दूध अंडे लेकर दोस्तों के साथ पिज़्ज़ा खाते हुए आएगा। 

घर घुसते के साथ ही मालती जीऔर रूपा पीयूष को खोजने लग गए । स्नेहा ने शर्बत बनाकर देते हुए कहा…”आता ही होगा अकादमी से । शर्बत पीकर स्नेहा आराम करने गयी तो मालती जी और रुपा बालकनी में गयीं । वहाँ स्नेहा की पड़ोसन मुग्धा दिखी । उसने प्यार से दोनो को नमस्ते किया

और अपने घर चाय के लिए बुलाया । मालती जी और रुपा दोनो मुग्धा के घर गयीं तो मुग्धा ने पीयूष के खिलाफ दोनो के कान भरे । मुस्कुराकर रुपा से पूछा..”आपका बेटा है ?  बहुत होनहार और समझदार है । पर स्नेहा भी न , बहुत काम लेती है उससे । मालती जी को अब बातें सुनने में मज़ा आने लगा था ।

वो चाहतीं तो विरोध कर सकती थीं पर उन्होंने जरूरी नहीं समझा ।अपने बेटे के सिर पर हाथ फेरते हुए मुग्धा ने कहा..अब मेरे बेटे को ही देखिए , दोनो हमउम्र हैं । मैं चाहूं तो इसे कहीं भी भेज सकती हूँ पर नहीं भेजती, वो बच्चा है अभी  । स्नेहा तो दूध भी मंगाती है, कभी – कभी देखती हूँ राशन भी ले आता है तो कभी- कभी अंडे और स्नेहा के लिए जूस, नारियल पानी सब ले आता है । 

इतनी बातें सुनकर रुपा का चेहरा अब गुस्सा से तमतमा रहा था  । वो चाय की आखिरी घूँट खत्म करके बाहर आ गयी और पीछे- पीछे मालती जी भी आ गईं ।

जैसे ही घर मे प्रवेश किया मालती जी ने पूछा..”कहाँ रह गया पीयूष, अब तक नहीं आया ? तब तक पीयूष पर नज़रें पड़ी वो पीठ पर बैट रखे दोनो हाथों में अंडे और नारियल पानी लिए आ रहा था। देखते ही माँ- दादी ने उसे गले से लगा लिया । पीयूष हाथ – पैर धोने बाथरूम गया तो रूपा बोलने लग गयी..”इतने प्यारे बच्चे को मैंने कितने नाज़ों से संभाला था मम्मी जी और कितने सामान ढोना पड़ रहा है इसे , कितना दुबला भी हो गया है यहां रहकर ।

अतुल को ये सब सुनकर बुरा भी लग रहा था और गुस्सा भी आ रहा था । मालती जी ने बोला..”मेरी ही गलती हुई जो इसे भेज दिया, हर काम मेरा बच्चा कर रहा है । मुग्धा भी तरस खा रही थी इस बच्चे पर की कितना काम कराती है । मुग्धा का नाम सुनकर स्नेहा बाहर आई और पूछने लगी …”क्या मम्मी जी, आपलोग आकर पहले वहाँ चली गईं ? मेरी बातों पर भरोसा नहीं आपको।

रुपा ने कहा..”देखे हुए पर भरोसा कर रही हूँ, मेरा बच्चा कैसा हो गया है । इतना शोर सुनकर हड़बड़ाते हुए पीयूष बाहर निकलकर बोला..”मम्मी, दादी ! आपलोगों ने क्या शोर मचा रखा है, बिना जाने- बुझे कुछ बोल देते हो । नीचे से दो – चार चीजें ले आयी वो सामान ढोना हो गया ।

हर तरह के व्यंजन खा रहा हूँ हर सुविधा मुझे मिल रही है तो उसके लिए आप लोगों ने विरोध क्यों नहीं जताया । क्यों नहीं बोला कि घर मे तो सादा- सामान्य खाता था तो यहाँ एक से बढ़कर एक चीजें खाने और हर सुविधा मिल रही है, तो क्या हुआ अगर चाची का थोड़ा हाथ बंटा दिया तो …?

और दुबला होने की वजह मेरा योगा करना है खाना कम खाना नहीं। दोस्त मुझे मोटू- ,मोटू कहकर चिढ़ाते थे। 

स्नेहा पीयूष को देखते रह गयी । उसका मुँह खुला का खुला रह गया । उसके बदले पीयूष ने जवाब दे दिया था । रूपा और मालती जी भी पीयूष की बातें सुनकर आवक रह गए ।

अतुल ने अब माँ से पूछा ..” मम्मी ! आपके लिए स्नेहा और मुझसे ज्यादा हमारी पड़ोसन सगी हो गयी । उसकी बातों पर आपने झट यकीन कर लिया, यहाँ तो कम से कम देख लिया होता ।अरे..उसका बेटा तो भोंदू है, वो नहीं जा पाता अकेले कहीं तो दूसरे को भी मना करता है । पीयूष हमारा दुश्मन नहीं है । अब इतना बड़ा हो गया, बच्चा नहीं है उसे पढ़ाई और अन्य चीजों के साथ – साथ दूसरे जवाबदेही, जिम्मेदारी तो सिखाना होगा न ? 

दूसरों का काम तो भड़काना है, आप तो अपनो पर भरोसा रखिए । आप सुनते रह गईं इसलिए मुग्धा को मौका मिल गया ।

स्नेहा को अच्छा लग रहा था उसको बोलने की जरूरत नहीं  पड़ी , जो परवरिश उसने पीयूष को दिया उसने उसका मान रखा । मालती जी और रूपा अतुल और स्नेहा के सामने अपनी बातों का पश्चाताप लिए खड़े थे ।

आखिरकार..रूपा ने अतुल से कह ही दिया..”दूसरे की बातों में आकर अपने को नहीं समझ पायी देवर जी, माफ कर दीजिए मुझे ।

स्नेहा ने पीयूष और रूपा को गले से लगा लिया । मालती जी ने ये कहते हुए कि..”कभी – कभी बच्चे भी बड़ों के आंखों से गलत का पर्दा उठा देते हैं । स्नेहा और अतुल का माथा चूम लिया ।

मौलिक, स्वरचित, सर्वाधिकार सुरक्षित

अर्चना सिंह

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