अब आगे ••••••••••
राजकुमार मणिपुष्पक के आगमन से वर्षों से सूने पड़े राजमहल का कण कण मानों खिल उठा। आनन्द और प्रसन्नता की बयार बहने लगी। महारानी अनुराधा तो मानों पुत्र का मुख देखकर ही सॉसें लेती थीं। राजकुमार की बाल सुलभ क्रीड़ाओं और चेष्टाओं को देख-देख कर महाराज और महारानी स्वयं को धन्य मानकर बार-बार ईश्वर को धन्यवाद देते।
उन्हें राजकुमार में राम एवं कृष्ण का साकार रूप नजर आने लगा। स्वर्गिक आनंद से राजमहल हिलोरे लेने लगा।
शिशु मणिपुष्पक धीरे-धीरे बड़े होने लगे। वे पालने से, घुटने और घुटनों से पैरों पर चलने लगे। जैसे-जैसे राजकुमार बड़े हो रहे थे उनमें मानवीय गुणों का विकास होने लगा। वे दयालु विनीत एवं मृदुभाषी होने के साथ ही अत्यन्त भावुक हृदय के स्वामी थे।
पशु पक्षियों तक की पीड़ा उनके लिए असहनीय थी। राजपुत्र एवं कृषक पुत्र समान रूप से उनके मित्र थे।
राजकुमार की प्रत्येक वर्षगाॅठ पर बाल – उत्सवों का भव्य आयोजन किया जाता था। सम्पूर्ण राज्य के बच्चों के अतिरिक्त अन्य राज्यों के राजकुमार और राजकुमारियां उत्सव में अपने-अपने माता-पिताओं के साथ आमंत्रित किए जाते थे।
राजकुमार मणिपुष्पक की सातवीं वर्षगॉठ थी। प्रत्येक वर्ष की तरह इस बार भी महाराज देव कुमार अपनी महारानी यशोधरा एवं पॉच वर्षीय पुत्री मोहना के साथ राजकुमार की वर्षगाॅठ में सम्मिलित होने आये थे।
महाराज देवकुमार के विदा होने के एक दिन पहले रात्रि भोज के समय महाराज देवकुमार ने देखा कि महाराज अखिलेन्द्र बड़े ध्यान से राजकुमार मणिपुष्पक और राजकुमारी मोहना को देख रहे हैं।
उनका ध्यान थाल में परोसे गये व्यंजनों की ओर नहीं है।
” क्या बात है मित्र। बच्चों को बहुत ध्यान से देख रहे हो।”
” कुछ नहीं, सोंच रहा हूॅ कि यदि हमारी मित्रता की डोर सम्बन्धों की डोर में परिवर्तित हो जाये तो कैसा रहे ? “
महाराज देवकुमार चौंक पड़े – ” यह मेरी और महारानी अनुराधा की मनोकामना है कि राजकुमार और मोहना के मध्य यह आत्मीयता और प्रेम आजीवन के प्रेम सम्बन्ध में परिवर्तित हो जाये। आप एक बार यहॉ से विदा होने के पहले
महारानी यशोधरा तक मेरा अनुरोध पहुॅचा दें क्योंकि अन्तिम निर्णय उन्हीं का मान्य होगा। माता होने के कारण अपनी पुत्री के भविष्य के सम्बन्ध में निर्णय लेने का उन्हें पूर्ण अधिकार है।”
महारानी यशोधरा को जब पता चला तो उन्होंने प्रसन्न होकर महारानी अनुराधा को गले से लगा लिया – ” यह मेरी पुत्री का सौभाग्य होगा जिसे विवाह के बाद आप और महाराज माता पिता के रूप में और राजकुमार मणि पुष्पक पति रूप में प्राप्त होंगे।
आप आज ही वाग्दान संस्कार की व्यवस्था कीजिये। हम प्रस्थान के पहले धार्मिक रूप से इन दोनों को इस नये सम्बन्ध में बद्ध करना चाहते हैं।”
राजमहल में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। राज ज्योतिषी को जब ज्ञात हुआ तो वे और उनकी पत्नी सुनन्दा सन्न रह गये। सत्य उजागर करने का उनमें साहस नहीं था लेकिन फिर भी उन्होंने हल्के शब्दों में प्रतिरोध किया – ” महाराज, राजकुमार और राजकुमारी अभी शिशु हैं,
इतनी अल्पायु में इन्हें ऐसे जन्मजन्मांतर के सम्बन्ध में बॉधना उचित नहीं है। दोनों को युवा होने दीजिये इसके पश्चात वाग्दान संस्कार किया जाता तो अधिक उचित था। अभी तो राजकुमार मात्र सात वर्ष के हैं।”
सुनकर सभी हॅस पड़े। हॅसते हुये ही महाराज देवकुमार ने मुस्कराती हुई महारानी यशोधरा को देखकर कहा -” मेरा और महारानी का वाग्दान तो महारानी के जन्म के पहले ही हो गया था।”
” सही तो कह रहे हैं महाराज। हम दोनों को पता था कि आगे चलकर हम जीवनसाथी बनेंगे तो कच्ची मिट्टी से मन पर एक दूसरे की छवि धीरे धीरे स्वयं ही परिपक्व होने लगी और हम दोनों ही एक दूसरे के सपनों में जीने लगे। हमारी सन्तानों के हृदयों पर भी एक दूसरे की छवि धीरे धीरे परिपक्व होती जायेगी। “
राज ज्योतिषी अधिक कुछ न बोल पाये। राजकुमार और राजकुमारी को किसी बात का अधिक ज्ञान नहीं था, वे दोनों यज्ञ वेदी के सम्मुख बैठकर आदेश का पालन करते जा रहे थे। उन्हें लगा कि यह भी किसी प्रकार की क्रीड़ा का कोई भाग है जिसमें दूसरे मित्रों के स्थान पर उनके माता पिता और राजमहल के आत्मीय स्वजन भी सम्मिलित हैं। वे दोनों तो इस बार कुछ अधिक उपहार प्राप्त करके ही प्रसन्न थे।
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एक भूल …(भाग-6) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral Stories in Hindi
बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर