अब आगे ••••••
आज से करीब पॉच सौ वर्ष प्राचीन रामलला की इस मूर्ति का इतिहास यहॉ का बच्चा बच्चा अपने घर के बड़े – बुजुर्गों से इतनी अधिक बार सुन चुका है कि अगली पीढ़ी को इसका इतिहास विरासत के रूप में स्वत: ही सौंप देता है। वर्षो से यही क्रम चलता आ रहा है।
पॉच सौ नगरों के छोटे से राज्य सन्दलपुर पर शासन करने वाले महाराज अखिलेन्द्र अपनी प्रजा का सन्तानवत पालन करते थे। प्रजा पूर्णत: सुखी और आनन्दित थी। साम्राज्य वृद्धि के नाम पर अपनी लोलुप प्रवृत्ति को निरीह मानवों के रक्त,
अबलाओं के ऑसुओं और अबोधों के क्रन्दन से पुष्पित और पल्लवित करने की आकांक्षा महाराज को जरा भी नहीं थी। वीरता के साथ दयालुता महाराज का स्वभाव था। अपने राज्य की शत्रुओं से रक्षा कर सकने मे वह और उनकी सेना पूर्ण सक्षम थी।
समीपवर्ती पड़ोसी राज्य को इस बात का भली प्रकार ज्ञान था अत: कोई भी सन्दलपुर पर आक्रमण करने या उस ओर ऑख उठाकर देखने का भी दुस्साहस नहीं कर पाता था। वैसे भी महाराज के अपने पड़ोसी राज्यों से मधुर और मैत्री पूर्ण सम्बन्ध थे।
इस सबके साथ ही एक अभाव ऐसा था जो शल्य के समान प्रजा के साथ ही महाराज और महारानी के हृदयों को पीड़ित किये रहता था। वह शल्य था – राजमहल का सूनापन, महारानी का रिक्त ऑचल। महाराज और महारानी ने न जाने कितने ब्रत, उपवास, अनुष्ठान और यज्ञ किये। मन्दिरों और साधु – सन्तों के समक्ष मस्तक झुकाया। दान और पुण्य की वर्षा कर दी लेकिन कुछ भी फलीभूत नहीं हुआ।
महारानी ने हृदय पर पत्थर रखकर महाराज को दूसरा विवाह करने का अनुरोध किया लेकिन महाराज ने महारानी के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया साथ ही उन्हें चेतावनी भी दी कि यदि उन्होंने दुबारा इस प्रकार के अनुरोध की पुनरावृत्ति की तो वह राज्य और राजमहल छोडकर कहीं दूर अज्ञात स्थान पर चले जायेंगे।
महारानी के नेत्रों में ऑसुओं के स्थान पर प्रेम और विश्वास का गर्व चमकने लगा –
” परन्तु महाराज•••••• मैं •••••••।”
” आप मेरी शक्ति हैं महारानी। आप निराश हो जायेंगी तो मेरा और इस राज्य का क्या होगा? कुलदेवी पर विश्वास रखिये, वे हमें निराश नहीं करेंगी। वे केवल हमारे धैर्य की परीक्षा ले रही हैं।” महाराज मुस्करा दिये।
महारानी अनुराधा जाकर कुलदेवी के चरणों में गिर पड़ी – ” तुम अन्तर्यामी हो, जगज्जननी हो। या तो मेरे ऑचल में अपने प्रसाद स्वरूप सन्तान का वरदान दो या मृत्यु का वरदान दो ताकि महाराज दूसरा विवाह कर सकें।”
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एक भूल …(भाग -3) – बीना शुक्ला अवस्थी : Moral Stories in Hindi
बीना शुक्ला अवस्थी, कानपुर