सुबह सुबह अचानक अपनी बेटी सौम्या को अकेले दरवाजे पर देखकर पूनम आश्चर्यचकित रह गई। सौम्या की शादी कुछ ही महीने पहले हुई थी और ऐसा भी नहीं है कि सौम्या पहली बार इस तरह अकेले आई हो…इससे पहले भी
वह अपने पति सुलभ से छोटी छोटी बातों पर झगड़कर अपने पति की शिकायत करने के उद्देश्य से 2–3 बार अकेले मायके आ चुकी थी और हर बार पूनम उसे समझा बुझा कर वापिस भेज देती थीं….लेकिन इस बार उसका भारी भरकम सूटकेस और बैग देखकर पूनम उसे देखती रह गई। वह जानती थी कि उसकी बेटी थोड़ी जिद्दी स्वभाव की है इसलिए उसने फिलहाल उससे कुछ बात नहीं की और जाकर आराम करने को कहा।
थोड़ी देर बाद जब उसने अपनी बेटी से पूछा कि क्या बात हो गई….इस तरह अचानक इतना सामान लेकर और वो भी अकेले..
“मम्मी, मुझे नहीं जाना अब वहां…किसी को मेरी भावनाओं की कोई कद्र नहीं है…और हां इस बार आप भी मुझे ही समझाने मत बैठ जाना….”
“देख सौम्या अगर तू खुशी खुशी आती तो भले ही कितने ही दिन रहती मुझे खुशी होती …लेकिन अब जब तू इस तरह आई है तो चिंता तो होगी ही….भला मुझे भी तो पता चले कि ऐसी कौन सी बात हो गई जो इस तरह चली आई…”
“और फिर तुम पहले की तरह ही मुझे समझाने लग जाओ है न….”सौम्या ने गुस्से से कहा।
“ऐसा नहीं है बेटा….अच्छा तू ही बता इससे पहले जब भी हमने समझाया तो क्या वो गलत था….थोड़ी बहुत तेरी भी तो गलती थी…”
सौम्या अपने माता पिता की 2 बेटों के बाद अकेली बेटी थी इसलिए थोड़े ज्यादा ही लाड़ प्यार में पली थी, उसे जो चाहिए होता कोई न कोई उसे लाकर दे देता जिससे उसकी सारी इच्छाएं पूरी हो जाती…..और यही अपेक्षा वह अपने ससुराल में पति और ससुराली जनों से करती …हालातों से समझौता करना तो मानो उसने सीखा ही नहीं था।
“अच्छा चल अब बता भी दे कि क्या हुआ….”पूनम ने पुनः सौम्या से पूछा।
लेकिन वो टस से मस नहीं हुई तब हारकर पूनम ने अपने दामाद सुलभ को ही फोन लगा दिया और शाम को घर आने को कह दी जिससे बैठकर बातें हो सकें….
शाम को जब सुलभ घर आया तब–
“मम्मी आप तो जानती ही हो कि हमारी शादी से 6 महीने पहले मेरी छोटी बहिन की शादी हुई थी और फिर हमारी हो गई जिसके चलते बहुत खर्चा हो गया था और वैसे भी सौम्या के पास शादी की ही बहुत सी ऐसी साड़ियां हैं
जिन्हें उसने अभी तक शायद ही खोला हो और ऐसे ही गले के सेट हैं जिन्हें 1 या 2 बार ही पहना है लेकिन फिर भी यह जिद पर अड़ी है कि नए लेने हैं जबकि हम कह रहे हैं कि कुछ महीने रुक जाए तब दिला देंगे….”सुलभ ने बताया।
बात ऐसी थी कि सौम्या की बड़ी ननद के बेटा हुआ था और उसी की खरीददारी के लिए सुलभ और उसके माता पिता बाजार जा रहे थे बस तभी सौम्या ने कह दिया कि उसे भी नई साड़ी और गले का सेट चाहिए तभी वह ननद के यहां कार्यक्रम में जायेगी….बस इसी बात को लेकर बात बढ़ गई और सौम्या अपने मायके चली आई।
पूनम ने सुलभ को बोल दिया कि अभी तो तुम्हारी बहन के यहां कार्यक्रम में 5–6 दिन हैं…आप परेशान न हों….मैं सौम्या को समझा दुंगी और 2–3 दिन में भेज दुंगी…
सुलभ के जाने के बाद पूनम ने सौम्या को अलग से समझाया ” एक बात सुन….तू अब छोटी बच्ची तो रही नहीं है…. समझदार हो गई है अतः घर की परिस्थितियां तो तू भी समझ सकती है….वो तो सुलभ और उसका परिवार इतने सुलझे हुए लोग हैं
कि ज्यादा कुछ नहीं कहते और उसने केवल शादी ब्याह के खर्चे बताए जबकि तुझे भी पता है कि शादी ब्याह के चलते ठीक से ध्यान न देने पर उनके कारोबार पर भी बहुत प्रभाव पड़ा था …और उस समय भी तूने बाहर घूमने की जिद की थी ….
और इसी तरह कई बार तूने कभी किसी बात पर तो कभी किसी बात पर जिद की थी और ससुराल वालों को कितना सुनाया जबकि ये भी नहीं देखा कि किसके सामने क्या कह रही है….तब भी हमने तुझे समझाया था कि हर बात के लिए इतनी जिद ठीक नहीं है…
परिस्थितियां समझने की कोशिश किया कर….जरूरी काम पहले हैं और सब बाद की बातें हैं….और फिर से तू वैसी ही जिद लेकर बैठ गई….”
सौम्या मां की बात बीच में ही काटते बोली–” तो ये सब मेरे लिए ही है, अब तुम्हें पता है मां ननद के बेटा हुआ है तो बेटे के लिए सोने चांदी की पांच चीजें, ननद के लिए सोने की चेन और नंदोई के लिए सोने की अंगूठी खरीदी जा रही है और बाकी का सामान है वो अलग…..मैंने अपने लिए कुछ मांग लिया तो इन्हें बहाने मिल गए….”
“अरे तो तू ही सोच उनके यहां खाली हाथ अच्छा लगेगा क्या… तू तो घर की ही है तुझे बोल तो रहे हैं कि दिलवा देंगे….और तू एक बात सोच अगर तेरा जैसा ही व्यवहार अगर तेरी भाभियां करें तो क्या तुझे अच्छा लगेगा….तुझे याद नहीं
कि कैसे खुशी खुशी तेरी भाभियों ने तेरी शादी में सब कुछ किया था….उन्होंने तेरी शादी में अपनी शादी के ही लहंगे पहने थे चाहतीं तो वो भी नई साड़ी या लहंगे खरीदने की कहती लेकिन उनको पता था कि बहुत खर्चा है इसलिए उन्होंने अपने लिए ज्यादा कुछ नहीं खरीदा।
और दूसरी बात अगर तू यहां रुक भी जाए तो कब तक रुकेगी….कभी न कभी तो जाना पड़ेगा तब अपनी ननद को क्या मुंह दिखाएगी….तू ही सोच कि तेरे यहां किसी कार्यक्रम में तेरी भाभी नहीं जाएं तो तुझे कैसा लगेगा…तू कह रही है कि तेरी भावनाओं की कोई कद्र नहीं करता
पर तू भी तो समझ अपने परिवार वालों की भावनाओं को, उनकी परेशानियों को…..और अगर तू ये सोच रही है कि हमेशा के लिए ही तू यहां रहेगी तो बेटा अभी तो हम हैं आगे जब हम नहीं होंगे तब क्या करेगी….क्या भैया भाभी से इतना सम्मान पा सकेगी जो तुझे अब मिलता है….
बेटी अब से ससुराल ही तेरा घर है अब तो तू यहां की मेहमान है और मेहमान तभी तक सम्मान पाते हैं जब कुछ दिन रहते हैं अतः अपने और अपने परिवार के मान सम्मान का ख्याल रख और हां मुझसे तो तू सब बातें कर लेती है
लेकिन बेटा और किसी के सामने ऐसी बातें नहीं करना यहां तक कि अपने भैया भाभी से भी नहीं…जैसे तू अपने घर की कमियां छुपाती है और कोई कमी निकाले तब भी तू बर्दास्त नहीं करती उसी प्रकार ससुराल की कमियां भी ऐसे बाहर किसी से नहीं कहना क्योंकि अब वो भी तेरा घर है ….
देख बेटा, समय एक सा नहीं रहता मान लो अभी तुम्हारे घर में परेशानी है तो कल को दूर भी हो जायेगी लेकिन एक बार अगर मान सम्मान खत्म हो गया तो दुबारा नहीं मिलता….बेटा अब तुम्हारे हाथ में केवल हमारी ही नहीं बल्कि उस घर की भी इज्जत है जो कि अब तुम्हारा घर है ….
अच्छा तो अब खुशी खुशी अपने घर जा और अपनी ननद के कार्यक्रम में जा…बाद में खुशी खुशी हमारे यहां आना तुम्हारा स्वागत है….”
सौम्या को अपनी मां की बात अच्छे से समझ आ गई और वह खुशी खुशी अपनी ससुराल चली गई और वहां अपने व्यवहार के लिए सबसे माफी मांग ली….आगे से फिर कभी उसने शिकायत का कोई मौका नहीं दिया।
प्रतिभा भारद्वाज ‘प्रभा’
मथुरा (उत्तर प्रदेश