सुरेखा जी से तो अपनी खुशी थामे नहीं थम रही थी और हो भी क्यों ना! नई ब्याहता बिटिया सिमरन और दामाद मानवेन्द्र घर जो आ रहे हैं! अपनी पड़ोसन को चहकते हुए बता रही थी।
बेटी घूमने निकली थी तो थोड़ा सा रुट चेंज करके बीच में दो दिन के लिए मायके भी रुकने आ रही है। समझदार पति हो तो ऐसा जैसा मेरी बेटी को मिला है। तो क्या हुआ जो अभी कुछ दिन पहले ही मायके आके गई है। आखिर किस लड़की का मन नहीं होता
माता पिता को देखने का? माना की सास थोड़ा तेज़ है, मगर उससे क्या? मानवेन्द्र ने कह दिया तुम्हें जब मम्मी पापा से मिलने का मन हो मुझे बता दिया करना, मैं कोई ना कोई उपाय निकाल कर तुम्हें उनसे मिला लाया करूंगा।
आफिस के टूर वगैरह लगते रहते हैं, तुम्हें भी साथ ले चलूंगा। फिर वही से मम्मी पापा से भी एक दो दिन के लिए मिल आना। सच कहूं तो मुझे तो इस बात की भी कोई परवाह नहीं कि समधन रानी जरा तेज हैं,,…अरे हुआ करें तेज़,उनकी सारी तेजाई की ऐसी की तैसी!
बड़ा चिढ़ा करें जो मेरी बेटी को एक से एक मार्डन ड्रेसेज ला के देता है, मैंने कहा तू तो निडर हो कर पहना कर, कुछ बोलें तो कह देना, मेरा पति ला के देता है तो मैं क्यूं ना पहनूं,? खाने पीने में भी सिमरन को ठीक से ना पूछती थी
उसकी सास,ये भी ना सोचती थी कि नई बहू है संकोच करेगी, कहीं भूखी ना रह जाए। सिमरन ने मानवेन्द्र को बताया तो वो इतना नाश्ते का सामान लाके रख देता है,कहता है तुम खाकर ही निकला करो…. अरे कमरे से , फिर किसी का काहे का डर?
इतना पढ़ने में होशियार है, इतनी अच्छी नौकरी फिर मेरी बेटी ने तो अपने बस में कर रखा है…… लो गाड़ी का हार्न बजा, बेटा विवेक एअरपोर्ट से बिटिया दामाद को लेके आ गया मैं चलूं अब
बाउंड्री से लटक कर अपनी पड़ोसन से बात करना छोड़ कर सुरेखा जी बेटी दामाद की आगवानी को भागी…. लोटे से जल उतारने के बाद जो उन्होंने किनारे डाला तो विवेक जो मोबाइल से सबकी पिक लेता जा रहा था,बोल उठा
मम्मी इतना बिजी हो थोड़ा स्माइल करो तो फोटो भी अच्छी आएगी
अरे धत्… मैं सिर्फ फोटो के लिए क्यूं दिखावे वाली स्माइल करूं, मेरा दिल तो वैसे ही खुशी के मारे बल्लियों उछल रहा है,मेरा हीरे जैसा दामाद घर जो आया है… और सुन जरा विवेक,ये फोटो कहीं ना डालना, वरना समधन जी को घर बैठे ही पता चल जाएगा कि दोनों यहां रुकते हुए जा रहे हैं।
मानवेन्द्र ने झुककर पैर छुए तो हजारों आशीष और दुआओं का पिटारा खुल गया।
दामाद के पीछे पीछे घूमते हुए उनकी आवभगत में कोई कोर कसर ना छोड़ रही थीं, सुगंधा जी…. ढेरों पकवान, व्यंजन की तो ढेर लगा रही थी
बस अफसोस लड़की के जाते समय कुछ साथ रख ना पाईं….. आखिर ससुराल वालों को पता थोड़े ही था कि यहां मायके में रूकते हुए गई है।
हर आने जाने वाले से बस दामाद का ही गुणगान करती थीं
जितना बखान कर लें मगर मन ना भरे।
आखिर जो इंसान अपनी पत्नी को खुश रखे,उसकी खुशी के लिए अपनी ( तथाकथित) तेज़ तर्रार मां से भिड़ जाए,और दुनिया की परवाह ना करके अपनी पत्नी पर कोई आंच ना आने दें, ऐसा दामाद किस सास को प्रिय नहीं होगा??
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क्या कहते हैं जी, विवेक की शादी की बात पक्की हो गई है सिमरन को बुला लें, महीना भर पहले से आ जाएगी तो मुझे भी सहारा रहेगा, सुरेखा जी ने अपने पति से कहा।
कैसी बात करती हो तुम भी, अभी उसके ससुर जी की तबियत ठीक नहीं है…. शादी के कुछ दिन पहले आ जाएगी, अभी से कहना अच्छा लगेगा क्या?
उन्हें वैसे भी पता था कि सिमरन सिर्फ घूमने में बिजी रहेगी कोई हेल्प ना होगी, अपनी बेटी को वो भली भांति जानते थे, यहां भी लाड़ में कोई जिम्मेदारी ना उठाती थी
ये भी कोई बात हुई?…दोनों पति पत्नी काफी हैं एक दूसरे की देखभाल करने के लिए,…. बार बार भाई की शादी पड़ेगी, मेरी बेटी तो आएगी.. सुरेखा जी ने तुनक कर कहा।
विवेक अभी कहां जा पाएगा? उसे सौ काम है… छुट्टी कहां है उसके पास..
किसी को परेशान होने की जरूरत नहीं है, मैं दामाद जी से बात करूंगी,वो स्वयं छोड़ जाएंगे
और
सिमरन ,को छोड़ने मानवेन्द्र जी आए
सिमरन ,अकेली बहन ,भाई की शादी की हर रस्मों में जी भर कर एंजॉय की।
नई भाभी वैशाली घर आ चुकी थी। सुबह हलवाई नाश्ता बना रहा था । सुरेखा जी सबको नाश्ते के लिए पूछ पूछ कर खिला रही थीं, उन्होंने सिमरन से कहा
जा भाभी नहा धोकर तैयार हो गई हों तो बाहर बुला ला सबके पैर छूले फिर तो कल से सब चले ही जाएंगे।
सिमरन कमरे में आई,तो ऊंचे स्वर में बोली
ये क्या भैया, भाभी को नाश्ता कहां से लाकर दे दिया, बाहर सब इंतजार कर रहे हैं, भाभी आपको तो सोचना चाहिए था, मम्मी कब से बुला रही हैं
कहीं अलग से बाजार से नहीं लाया सिमरन, हलवाई के पास से ही लाकर दिया,देख तो रही हो कितनी देर हो गई है
तो क्या हुआ, शादी ब्याह के घर में थोड़ा ऊपर नीचे होता रहता है, इतना तो सब्र करना चाहिए था।
तब तक सुरेखा जी भी भीतर आ गई, विवेक को लगा कि मम्मी बोलेंगी, कोई बात नहीं बहू खा कर फिर बाहर आना, मगर आते ही मम्मी जी की त्योरियां चढ़ गई।
अरे इतना भी नहीं बर्दाश्त हो रहा था तो हमसे कहती… ये अभी से विवेक से कहना शुरू कर दिया,और आगे से सबके साथ जब नाश्ता बनें तब करना, ये चुपके चुपके पति पत्नी अकेले कमरे में बैठ कर खाएं,ये आइंदा से मैं ना देखूं..
मम्मी जी दनदनाते हुए कमरे से निकल गई आंखों में आंसू भर कर वैशाली अपने पति की ओर देख रही थी।
नाश्ता सामने ही रखा था, अभी तो खाना शुरू ही ना किया था
सिमरन भी जा चुकी थी
विवेक मम्मी के सामने कुछ बोल कर माहौल खराब नहीं करना चाहता था।
सुरेखा जी ने फिर वैशाली को नाश्ता भी नहीं पूछा, जबकि पहले भी वो खा नहीं सकी थी।
दोपहर का खाना बहुत देर से हुआ,तब तक वैशाली का पेट भूख से मरोड़ रहा था,और आखिर उसको उल्टियां आने लगी।
ढेरों मेहमान खाकर जा रहे थे, मगर जिस बहू के आने की खुशी में यह उत्सव था,वही भूखी बैठी थी।
सुबह का तमाशा देख कर विवेक कुछ नहीं बोल रहा था।
कहने सुनने में बड़ी छोटी सी बात
मगर क्या यह बात इतनी ही छोटी थी??
और कहती भी किससे? पिता बचपन में स्वर्ग सिधार गए थे। मां घर में अकेली छोटी बहन के साथ होंगी, मेहमान चले गए होंगे।
मां का शाम तक फोन आया, वैशाली बस फोन पकड़ कर फूट फूटकर रोने लगी।
मां ने समझा,नई जगह है बेटी खुश रहे …..ज्यादा फोन करूंगी तो कैसे नई दुनिया में रचेगी बसेगी?
वैशाली का आफिस शुरू हो गया, शादी के लिए ली गई छुट्टियां भी खत्म हो गई थी।
सुरेखा जी कभी काम करने को, तो कभी आफिस से लेट आने को किसी ना किसी बात पर क्लेश मचाए रहती।
जबकि वैशाली अपने ओर से भरसक प्रयास करती सब कुछ अच्छा करने के लिए।
एक दिन सुरेखा जी की सहेली निगम आंटी ने पूछा कि तुम्हारी बहू तो नौकरी से लेकर घर सबमें कितनी होशियार है, किसी के आने जाने पर भी कितने अच्छे से आवभगत करती है,स्नेह से व्यवहार करती है,मगर कभी तुम खुश नहीं दिखती?
मैं भी जानती हूं जितनी मुस्तैदी से नौकरी करती है वैसे ही सब कुछ संभालती भी है मगर क्या मैं ऐसी बेवकूफ हूं जो अपने बहू की तारीफ करके उसे सिर चढ़ा लूंगी? उसे तो लगना चाहिए कि मुझे उसका कोई काम नहीं भाता,
मुझसे डर कर रहे हैं इतना नकेल कसकर रखती हूं….
मिसेज निगम तो आश्चर्य चकित रह गई, जिसे ऐसी गुणी बहू मिले उसे तो सिर आंखों पर बिठा कर रखना चाहिए, और सुरेखा ऐसा व्यवहार कर रही है अपनी बहू के साथ।
विवेक और वैशाली भरसक कोशिश करते रहे, मगर सुरेखा जी कभी खुश ना हुई। रोज़ आफिस से लौटने पर नया बखेड़ा, तनाव उनका स्वागत करता।
एक दिन वैशाली बहुत गाउन पहन कर सोने जा रही थी,कि उसे याद आया उसने पानी नहीं रखा है, वो किचन से फ्रिज से पानी की बाटल निकालने चली गई। इतनी रात में तो मम्मी पापा कब के सो चुके होते हैं। मगर मम्मी जी किचन में लड्डू खा रहीं थीं, शायद छुप कर, कोई बात नहीं, डायबिटिक हैं, कभी कभी तो मन होता है,लेवाली मम्मी जी को देख कर प्यार से मुस्कराई तो उन्होंने ना जाने क्या समझा और दहाड़ने लगी
समझाए देती हूं आज से नाइटी पहन कर अपने कमरे से बाहर ना दिखो आज के बाद…. ऐसी ड्रेस … मेरे बेटे को बरगला के मंगाई होगी।
थोड़ी स्टाइलिश थी, मगर क्या करूं विवेक बहुत प्यार से लाए थे।
वैशाली कमरे में जाकर रोती रही
सुरेखा जी कमरे में सोने चली गई थीं,विवेक को समझ में नहीं आ रहा था बात कहां से शुरू करूं?
दीपावली का त्यौहार आने वाला था, विवेक ने सुरेखा जी को बताया वैशाली की मम्मी की तबियत ख़राब है उसे वहां लेकर जाना है
सुरेखा जी ने कहा, त्यौहार सिर पर है, अभी कहीं ना जाएगी।
मम्मी मगर उनका और कोई नहीं, थोड़े दिन उसकी मां को उसकी आवश्यकता है, त्यौहार से बड़ा उनका जीवन है।
मगर सुरेखा जी ने एक ना सुनी बड़बड़ाना जारी रखा।
विवेक ने कमरे में आकर वैशाली से कहा…. और
थोड़ी देर बाद दोनों अटैची लेकर कमरे से निकले
सुरेखा जी सिंहनी की तरह दहाड़ कर बोली
मेरे मना करने के बाद भी जाएगा
हां मां,और मैंने कुछ दिन की छुट्टी ले लिया है, मम्मी जब स्वस्थ हो जाएंगी तभी आएंगे
.. हो सकता है दीपावली बाद ही, मम्मी जी का स्वास्थ पहले जरूरी है त्यौहार बाद में।
जैसे आपके दामाद को आपके सुख दुख की चिंता लगी रहती है ,आपके एक बार कहने पर दौड़ा चला आता है..वैसे मेरा भी फ़र्ज़ है.. फिर उनका कोई और सहारा भी नहीं पति भी नहीं, बेटा भी, छोटी बहन अभी छोटी है.. विवेक की तर्क संगत बात भी सुलेखा जी के अहम भरे सिर के ऊपर निकल गई
बड़ा अपनी सास का पक्ष ले रहा है?
कहे देती हूं,अगर आज बहु को लेकर बाहर निकला तो फिर वापस मत आना…
मगर…… विवेक , वैशाली का हाथ पकड़े हुए आज मजबूत इरादों के साथ घर की देहरी से बाहर क़दम रख चुका था।
शायद सुरेखा जी बहू और बेटे की आवश्यकता और खुशियों का वैसे ही ध्यान रखती जैसे बेटी दामाद का रखती थी तो, परिवार ना टूटता।
फिर दुनिया से कहती फिरेंगी बहू साथ में रहना नहीं चाहती थी।
कभी उनकी बेटी सिमरन भी समझा कर पूछ सकती थी,मेरे लिए तो तुम्हारा मन दूसरा रहता था सास बनते ही क्यों बदल गई मां!
विवेक और वैशाली जैसे बच्चे जिनके साथ उनका शेष जीवन खुशी खुशी बीतता, सुरेखा जी बहू को दबाने और अपनी सासपना दिखाने के चक्कर में घर को आज इस कगार पर ला दिया।
विवेक गहरे दुःख और अफसोस के साथ यह सोचते हुए घर से निकल रहा है…
ये कैसी उलझन में डाल दिया है, तुम्हारी दोहरी नीति ने मां….. काश तुम समझ पाती..
ऐसी दोहरी नीतियों से रिश्ते टूटते ही हैं, जुड़ते नहीं
पूर्णिमा सोनी
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#टूटते रिश्ते, कहानी प्रतियोगिता, शीर्षक — सास बनते ही क्यूं बदल गई मां??
मित्रों दामाद के गुणों पर जी भर कर प्रशंसा करना लगता है तो बहू की अच्छाइयां क्यों नहीं दिखाई पड़ती?
दामाद की प्रशंसा करने पर उसे बिगड़ जाने की चिंता नहीं होती तो बहू की तारीफ करने पर उसके बिगड़ जाने का खतरा क्यों होता है?
बेटियां अपने ससुराल में सुखी और स्वतंत्रता से रहे, मगर बहू दम घोंटू वातावरण में ऐसा क्यों है?
दामाद बेटी का साथ दे उसके सुख दुख का ख्याल रखें तो उचित,यही काम बेटा करे तो अनुचित कैसे हो जाता है?
क्या उपरोक्त कहानी में बहू बेटे के घर छोड़ कर जाने के लिए दोहरी मानसिकता की मां जिम्मेदार नहीं हैं?
आशा है इन सवालों का जवाब, पाठक गण अपने लाइक कमेंट और शेयर के माध्यम से देंगे।
पुनः बहुत आभार,
आपकी सखि
पूर्णिमा सोनी
#टूटते रिश्ते