जीवन का सवेरा (भाग -14 ) – आरती झा आद्या : Moral stories in hindi

रोहित ने अपने पापा से मन की बात साझा करते हुए कहा, “मैं मुंबई में ‘जीवन का सवेरा’ शुरू करना चाहता हूँ। ये भी अभी आरुणि से डिस्कस नहीं किया है मैंने।”

रोहित के पापा इस विचार को सुनकर गहराई से सोचने लगे। तभी गोपी चाचा, जो पास ही खड़े थे, उत्साहित होकर बोले, “ये तो तुमने बिल्कुल ठीक सोचा रोहित बेटा”…

लेकिन जैसे ही उन्होंने रोहित के पापा की ओर देखा, उनका उत्साह थोड़ा कम हो गया और वह सहम कर चुप हो गए। उन्हें पता था कि रोहित के पापा को यह बिल्कुल पसंद नहीं है कि गोपी घरेलू कामों के अलावा किसी और चीज़ में बोले। उनके चेहरे पर एक हल्की सी शिकन आ गई, जो उनके खुद के लिए थी।

रोहित के पापा ने गोपी पर एक नजर डाली और कहा, “ठीक कह रहा है गोपी… बहुत अच्छा सोचा है तुमने।”

गोपी चाचा, जो सहम कर चुप हो गए थे, यह सुनकर चौंक गए। उन्होंने उम्मीद नहीं की थी कि रोहित के पापा उनकी बात का समर्थन करेंगे। उनके चेहरे पर एक हल्की मुस्कान आ गई और उन्होंने राहत की सांस ली और धीरे से मुस्कुराए। रोहित ने महसूस किया कि उनके पापा ने इस बार एक नए दृष्टिकोण से चीजों को देखा, जिससे उनके बीच का बंधन और मजबूत हुआ। रोहित का दिल गर्व और संतोष से भर गया, क्योंकि उसे अपने पापा से समर्थन मिला था।

उसे लगा कि उसके पापा ने न केवल उसके विचार को स्वीकार किया है, बल्कि गोपी चाचा की राय को भी सम्मान दिया है। यह एक सकारात्मक संकेत था, जो उनके रिश्ते में नई ऊर्जा भर रहा था।

रोहित के पापा ने अपने बेटे की ओर मुड़ते हुए कहा, “रोहित, ‘जीवन का सवेरा’ एक बेहतरीन पहल है। मुझे खुशी है कि तुमने ऐसा कुछ सोचने का साहस किया। हमें इस पर और विचार करना होगा। लेकिन क्या तुम दफ़्तर के साथ साथ इसे संभाल सकोगे।”

“मैं अकेला कहाँ हूँ, पापा? आप, दादी, गोपी चाचा हैं मेरे साथ। इसके अलावा, इस काम के लिए हम एक टीम तैयार करेंगे… एक ऑफिस बनाएंगे… जिसमें कुछ पद भी कार्यान्वित करेंगे। इससे कुछ लोगों को ही सही, रोजगार भी दे सकेंगे। पहले सब कुछ कागज पर तैयार करेंगे, फिर उसे धरातल पर लाएंगे, ताकि कल को इसे बंद करने की नौबत ना आए। साथ ही, आरुणि और उसकी सहेलियों का अनुभव भी हम साझा करेंगे,” कहकर रोहित चुप हो गया और अपने डैड की प्रतिक्रिया के लिए उनकी तरफ देखने लगा।

रोहित के डैड उसकी बातों को ध्यान से सुन रहे थे। उनके चेहरे पर गहरी सोच की झलक थी, लेकिन उनकी आँखों में एक चमक भी थी, जो इस बात का संकेत दे रही थी कि वे अपने बेटे के विचारों और योजनाओं से प्रभावित हुए हैं।

कुछ पलों की चुप्पी के बाद, रोहित के डैड ने धीरे-से मुस्कुराते हुए कहा, “रोहित, तुम्हारे विचार और योजनाएँ बहुत ही प्रभावशाली हैं। मुझे गर्व है कि तुमने इतनी दूरदर्शिता और जिम्मेदारी दिखाई है। यह एक बहुत बड़ी पहल है और मैं तुम्हारे साथ हूँ। हम सब मिलकर इसे सफल बनाएंगे।”

गोपी चाचा, जो पास खड़े थे और उसके साथ बैठी दादी भी यह सब सुन रही थीं, उनके चेहरे पर गर्व और संतोष की झलक थी।

“तो बिना समय गंवाए काम शुरू कर दो। ऐसे कामों में देरी उचित नहीं है”.. रोहित के पापा कहते हैं। 

“सबसे पहले मैं आपकी लीगल टीम से मिलना चाहूँगा पापा”.. रोहित कहता है।

“और मैं उन लोगों से मिलना चाहूँगा, जिनके कारण मेरे बच्चे में इतना बदलाव आया”.. रोहित के चुप होते ही उसके पापा कहते हैं। 

लीगल टीम के साथ तो मैं आज शाम में ही मीटिंग रख लेता हूँ। तुम्हें जो जानना, समझना, बताना हो, सब डिस्कस कर एक खाका तैयार कर लेना। सारे पेपर्स तैयार होते ही हम लोग सभी से मिलने पचमढ़ी चलेंगे।” रोहित के पापा कहते हैं। 

“ठीक है पापा और दादी आप भावुकता में आरुणि से सब कुछ पहले से शेयर मत कीजिएगा, इतनी इल्तिजा है आपसे।” रोहित दादी को छेड़ता हुआ कहता है। 

“वाह.. वाह.. वाह.. वाह”.. गोपी चाचा इल्तिजा शब्द पर पर रोहित को दाद देते हैं। 

“एक बार तुम लोग भी उन सबसे मिल तो लो, ऐसे ही भाषा बोलने लगोगे”.. दादी एक हल्की चपत रोहित के कंधे पर लगाती हुई कहती हैं। 

“आप दोनों की हालत देख कर तो ऐसा ही लग रहा है”.. रोहित के पापा हँसते हुए कहते हैं।

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बैठक में बातें करते-करते तीन घंटे से ज्यादा गुजर गए थे। रोहित, उसके पापा और दादी इतने गहराई से चर्चा में मशगूल थे कि समय का पता ही नहीं चला। गोपी चाचा, जो शुरू में उनकी बातचीत में पूरी तरह शामिल थे, रोहित की बातों ने उन्हें बाँध कर रख लिया था। अब वह धीरे-धीरे उठकर अपने काम में लग गए थे।

घड़ी की ओर देखते हुए रोहित ने महसूस किया कि समय कितनी तेजी से बीत गया था। वह एक गहरी सांस लेते हुए मुस्कुराया और अपने पापा की ओर देखा। उनके चेहरे पर संतोष और गर्व के भाव थे।

“अरे, तीन घंटे से ज्यादा हो गए,” रोहित ने हँसते हुए कहा। “समय का पता ही नहीं चला।”

रोहित के पापा भी मुस्कुरा दिए और बोले, “जब काम दिलचस्प हो और बातें महत्वपूर्ण हों, तो समय का पता नहीं चलता।”

गोपी चाचा, जो अब अपने काम में व्यस्त थे, ने भी यह सुनकर मुस्कुराते हुए अपनी स्वीकृति दिखाई।

इस सकारात्मक माहौल और समर्थन से रोहित का दिल खुशी से भर गया। उसे यकीन हो गया कि ‘जीवन का सवेरा’ की शुरुआत अब केवल एक सपना नहीं, बल्कि एक साकार होता हुआ लक्ष्य था।

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आज इतनी देर में पहली बार पापा ने रोहित को किसी बात के लिए भाषण नहीं दिया था.. ना उठने.. बैठने.. ना खाने.. पीने और ना ही उसके निर्णय पर ऊँगली ही उठाई थी उन्होंने.. रोहित हर बात पर गौर कर रहा था और जितना गौर कर रहा था.. उतना ही खुद को डैड के करीब महसूस कर रहा था। 

रोहित ने गौर से महसूस किया कि आज उसके पापा ने उसे अन्य दिनों की तुलना में किसी बात के लिए भाषण नहीं दिया था। आज उन्होंने न उठने, न बैठने, न खाने, न पीने और न ही उसके निर्णय पर ऊंगली उठाई।

रोहित ने महसूस किया कि उसके पापा का यह बदलाव  एक नया संदेश था। वह हर बात पर ध्यान देने लगा और जितना गौर करता, उतना ही खुद को डैड के करीब महसूस करने लगा। यह अनुभव उसे एक नई संवेदनशीलता और समझ का एहसास दिला रहा था। वह महसूस कर रहा था कि कभी-कभी शब्दों के बिना भी अधिक संवेदनशीलता और समर्थन व्यक्त किया जा सकता है।

“रोहित बेटा, तुम भी थोड़ी देर सो लो। कल से ठीक से आराम नहीं कर सके हो।” रोहित को जम्हाई लेते देख दादी कहती हैं। 

“इन दिनों बहुत आराम किया है दादी। आज तो बस डैड से जी भर कर बातें करूँगा।”

 

“माँ ठीक कह रही हैं बेटा। मैं भी थोड़ी देर आराम कर लेता हूँ, जिससे जब लीगल टीम के साथ मीटिंग हो तो हम तरोताजा रहे।” रोहित के पापा रोहित से कहते हैं। 

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रोहित और उनके पापा ने बहुत तेजी से काम किया, लेकिन उन्होंने इस समय के दौरान समझा कि धैर्य और विश्वास के साथ सारे प्रक्रियाओं को समझना अहम है। वे पेपरवर्क, टीम बिल्डिंग, और प्रोसेस समझने में सक्षम थे और एक महीने के समय में एक ठोस योजना तैयार कर ली।

क्रमशः 

आरती झा आद्या 

दिल्ली

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