रिश्तेदारियाँ या दिखावा -प्राची अग्रवाल : Moral Stories in Hindi

नेहा आज सुबह से ही बेचैन थी। उसके पति प्रशांत ने पूछा भी था कि क्या बात है। आज इतनी परेशान क्यों हो, पर उसने टालकर उनको ऑफिस भेज दिया।

उसकी सास मालती आज सुबह से ही मगन थी। बहुत खुश लग रही थी वो। जब भी उनके मायके या रिश्तेदारी में कोई विवाह शादी का प्रोग्राम हो तो उनकी खुशी देखते ही बनती थी।

आज सुबह ही उनकी छोटी बहन संध्या का फोन आया था कि उनके बेटे नैतिक का 3 करोड़ का रिश्ता तय हो गया है। संध्या उसकी मौसी सास थी। जो स्वयं को काफी रहीसनी बनती थी। दिखावा करना और दूसरों को नीचा दिखाना उनकी प्रमुख आदत थी। दूसरों को जलील करने में वह कोई कसर नहीं छोड़ती थी।

संध्या मौसी के बेटे के विवाह की सुनकर तो उसे चिंता हो रही थी कि इतने बड़े लोगों की शादी में जाने के लिए कपड़े और गहने भी तो महंगे होने चाहिए।

वह स्वयं क्या पहनेगी और बच्चों को क्या पहनाएगी। आखिर उनके साथ स्टैंडर्ड भी तो मेंटेन करना था। प्रशांत जी को तो वैसे भी उसका ड्रेस सेंस पसंद नहीं आता था।

कौन सा नया फैशन चल रहा है उसने अपनी सहेलियों से जानकारी लेने के लिए फोन मिलाने शुरू करें। यूट्यूब पर सर्च करना शुरू कर दिया। नई ट्रेंडस देखने शुरू करें।

अपनी कपड़ों की अलमारी खंगाली लेकिन उसको कोई भी कपड़ा पहनने लायक नहीं लगा।

सारे जुड़े- जकोडे रुपए इकट्ठे किए । कुल मिलाकर 20-25 हजार रुपए निकल आए। वह फटाफट बाजार के चक्कर काटने लगी। ऊंची-ऊंची दुकानों पर चढ़ती और उल्टे-सीधे कपड़े जेवर खरीद लाती । सोने के तो क्या आते,इतनी महंगाई में। आर्टिफिशियल ज्वेलरी ही खरीद ली। बच्चों के लिए भी नए- नए तरीके के कपड़े और जूते चप्पल खरीद लाई। बजट ज्यादा का हुआ तो उसने 20-30 हजार रुपए प्रशांत जी से झटक लिए। अब जाकर उसके मन में कुछ तसल्ली आई ।

कुछ शॉपिंग ऑनलाइन कर ली । कुछ मॉल से। अब उसे महसूस हो रहा था की बड़ी शादी अटेंड करने के लिए उसके पास फैशनेबल कपड़े हैं।

एक महीना इसी भागदौड़ में निकल गया। लेकिन अभी तक वेडिंग इनविटेशन नहीं आया। दरवाजे की तरफ निगाह भी रखी थी कि कोई कोरियर वाला आये। लेकिन वह निराश हो जाती ।

एक दिन उसकी सास के मोबाइल पर व्हाट्सएप कार्ड आता है। अगले दिन संध्या मौसी उसकी सास मालती जी को कॉल करके कहते हैं,

                     “जीजी, वैसे तो सबको सिंगल ही बुलाया है शादी में। डेस्टिनेशन वेडिंग है ना। पर आप जरा अपनी हो, तो दो जनें आ सकते हो। पहले ही बता देना कौन-कौन आ रहा है। रिसोर्ट में रूम भी बुक होने हैं”।

मालती जी के ऊपर तो मानो घड़ों पानी पड़ गया। वह सका- पक रह गई। उनका मन एकदम उदास हो गया। शाम को खाने पर सबके सामने वह दो जनों के आने की न्यौते की बात बताती हैं। प्रशांत जी तो एकदम से बहुत गुस्सा हो जाते हैं। ससुर जी तो पहले से ही चुप रहते थे। आज भी चुप ही रह जाते हैं।

मम्मी जी का मन रखने के लिए पिताजी शादी में जाने की इजाजत दे देते हैं। उसकी इतनी महंगी शॉपिंग बेकार जाती इसलिए प्रशांत जी उसको भी मम्मी के साथ जाने के लिए कहते हैं। नेहा का बिल्कुल भी मन नहीं कर रहा था, शादी में जाने के लिए। प्रशांत जी ने बच्चों को भी शादी में जाने के लिए मना कर दिया। क्योंकि महंगी शादियों में एक एक प्लेट का हिसाब रखा जाता है। 4-5 हजार रुपए की एक प्लेट होती है और फिर बच्चों का क्या भरोसा? कितना बिगाड़ दे?

विवाह के दिन भी नजदीक आ गए। नेहा व उसकी सास एक महंगी गाड़ी में बैठ कर रिसोर्ट तक पहुंच जाते हैं। शगुन में देने के लिए भी 21000 रुपए का लिफाफा बनाया गया। आखिर लेनदेन भी तो बड़े लोगों के हिसाब से करना पड़ता। वैसे भी मौसी की पोजीशन का सवाल था।

रिसॉर्ट में एकदम शांति थी। विवाह शादी की धूम कहीं नजर नहीं आ रही थी। सभी रिश्तेदार अपने कमरों में पड़े रहते । कोई हल्दी मेहंदी का फंक्शन होता तो सब तैयार होकर आ जाते । अनगिनत सेल्फियांँ ली जाती। सबने सेल्फी लेने के लिए चेहरे पर नकली मुस्कान का आवरण रखा था।

उसकी सास भी अपने परिवार के साथ में न होने के कारण स्वयं को उपेक्षित सा महसूस कर रही थीं। रिश्तेदार आपस में ऐसे मिल रहे थे जैसे उनमें कितना प्रेमभाव हो। पीठ पीछे आपस में सब एक दूसरे की बुराई कर रहे थे।

पार्लर के भोंडे मेकअप व महिलाओं के उटपटांग फैशन देखकर उसका मन घिन्ना रहा था।

चकाचौंध रोशनी में विवाह के नगाड़ें शोर मचा रहे थे। लेकिन उसके मन में बड़ा सूनापन था। उसे रह-रह कर घर की और बच्चों की याद आ रही थी। आज उसे एहसास हो रहा था की #टूटते रिश्तो को जोड़ने का किस प्रकार दिखावा किया जा रहा है।

विवाह पश्चात मौसी ने एक मिठाई का डिब्बा उसकी सास के हाथ में पकड़ाते हुए कहा,”जीजी यह हमारी खुद की ही फर्म का डिब्बा है। एक- एक डिब्बा 2-2 हजार का है”

एक लिफाफा उसके हाथ में रख दिया। जिसने उसे खोल कर भी नहीं देखा।

वह वापसी के लिए गाड़ी में बैठ गई। सारे रास्ते सोचती आ रही थी की *ऊंची दुकान फीके पकवान*जैसी कहावत आज चरितार्थ हो गयी। जिस विवाह में जाने के लिए इतना लालियत हो रही थी। वहांँ उसे कितनी निराशा मिली। उसने अपनी सारी बचत और पति की मेहनत की कमाई का कितना पैसा फिजूलखर्ची मैं बिगाड़ दिया। और वहां कुछ अच्छा भी नहीं लगा।

इससे तो इतने पैसों में पूरे परिवार के साथ टूर प्लान कर सकती थी।

जिसमें उसे दिखावटी मुस्कुराहट का नकाब भी नहीं ओढना पड़ता। उसका पति व बच्चे भी उसके साथ होते।

#प्राची_अग्रवाल 

खुर्जा उत्तर प्रदेश 

टूटते रिश्ते पर आधारित बड़ी कहानी

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