आज रमोला के चेहरे को देख कर गगन खीझ कर रह गया था…उसका जी कर रहा था दो चार थप्पड़ अपनी पत्नी के गालों पर जड़ दे.. पर माँ की सीख याद कर मन मसोस कर रह गया…. “बेटा हमेशा स्त्री की सम्मान करना.. हाथ उठाना मर्दानगी नहीं अपितु वो मर्द की कमजोरी को दर्शाता है
जब बात से काम ना चले तब बल प्रयोग कर अपनी ताक़त दिखाना ये सही नहीं है “….क्यों ऐसी सीख दी माँ तुमने… देखो आज तुम्हारी इस बहू ने क्या कहर बरपाया….अपने सिर पर हाथ मारता गगन वही ज़मीन पर बैठ गया था ।
अभी भी आँखों के सामने छोटे भाई पवन और भतीजी लवली का चेहरा घूम रहा था….पढ़ने में होशियार लवली उच्च शिक्षा के लिए क़स्बे से दूर दिल्ली पढ़ने जाने की इच्छुक थी… एक छोटा सा दुकान और चार लोगों की ज़िम्मेदारी मुश्किल से दिन कट रहे थे…. पवन की कमाई उतनी नहीं थी कि वो बेटी को बाहर भेज सकें
ऐसे मे उसकी पत्नी सरिता ने सुझाया कि क्यों ना बड़े भैया से कुछ उधार ले लिया जाए …भाई है मदद तो कर ही सकते हैं…. माना हमारा बँटवारा हो चुका है पर रिश्ते तो अभी भी है ही …एक बार बात कर के देखो तो सही ज़्यादा से ज़्यादा क्या होगा हाथ ही खींचेंगे ना…. ।”
माँ की बात सुन लवली ने भी पापा से कहा,“ पापा ताऊजी मुझे तो हमेशा अपनी बेटी मानते रहे हैं…. मेरी पढ़ाई पर मना ना करेंगे वैसे भी हमेशा कहते थे ये तो हमारे घर का ग़ुरूर है ….सबसे होशियार…. देखना एक दिन ज़रूर कुछ बन कर रहेंगी…. मैं भी साथ चलूँगी उनसे आशीर्वाद भी मिल जाएगा और मेरी पढ़ाई के लिए थोड़ी मदद भी कर देंगे ।”
खुद को बहुत मज़बूत कर पवन गगन की चौखट पर आया था…
भाई से पहले भाभी से सामना हो गया…
“ क्या बात है देवर जी आज हमारे घर का रूख कैसे किया…. दुकान वुकान चल तो रहा है ना…?” रमोला ने पूछा
“ हाँ भाभी सब ठीक चल रहा है… वो भैया नहीं है क्या…उनसे कुछ बात करनी थी….।” पवन संकुचाते हुए बोला
“ऐसी क्या बात हो गई जो भैया से ही करनी…. भाभी से नहीं कर सकते हैं क्या…?” रमोला ताना कसते हुए बोली
“ अरे नहीं भाभी ऐसी कोई बात नहीं है…. वो क्या है ना…। ” कहना ही चाह रहा था तो लवली जो ताईजी की आदत से भलीभाँति परिचित थी पापा को हाथ पकड़कर चुप रहने कह रही थी पर रमोला के ताने सुनने से बेहतर पवन ने उधार की बात कह दी
“ हुं हुं …. बेटी को पढ़ाने के लिए क़र्ज़ा लेने चले है…अरे कल को दूसरे घर ही जाना है काहे इसकी पढ़ाई लिखाई में सिर पर उधारी ले रहे हो…. मान लो कल को कमाने भी लगी तो कौन सा तुम्हें कुछ देने वाली है…. उधार लेना है तो बेटों के लिए लेकर उनके पैर बाँधो… बेटी के लिए उधार लेकर अपने गले में ज़ंजीर काहे डाल रहे हो…
जानते तो हो दिल्ली में रहना खाना कितना महँगा होता… और तुम्हारी ये छोटी सी दुकान… कभी उधार ना चुका पाओगे…. अपने भाई के खेतों में मज़दूरी करने का इरादा है क्या जो चले आए उधार लेने…?” रमोला के एक एक शब्द लवली और पवन को चुभ रहे थे
“ बस ताईजी…. मेरे पापा के लिए अब आप एक शब्द ना बोले ।“ लवली ग़ुस्से में बोली
“ बड़ी आई पापा की तरफ़दारी करने… अरे बहुत देखे है तेरे जैसे… बाप से पैसे ले शहर जा कर अलग ही गुल खिलाती हैं…. बाप बेचारा क़र्ज़ा चुका नहीं पाता दम पहले तोड़ देता।” रमोला के तीखे बाणों की बौछार कम ना हो रही थी
ये नश्तर चुभ भी रहे थे और घायल भी कर रहे थे… पवन बेटी की ओर लाचारी से देख रहा था…
“ पापा चलिए यहाँ से मैं पहले ही आपको मना कर रही थी….ताईजी से कुछ ना कहो …पर आप ना माने… अब हमें कुछ नहीं चाहिए…. पापा आप मेरा वो ग़ुरूर है जो कोई भी कभी भी उसे नहीं तोड़ सकता… ना उसे झुका सकता है….अब हमारे पास जो है उसमें ही कुछ बन कर दिखाऊँगी….।
” कह अपने पापा का हाथ थामे लवली घर से निकलने लगी तभी मुख्य दरवाज़े पर गगन दिखाई दिए
भाई और भतीजी को देख ख़ुशी से आगे बढ़ गले लगाने आया ही था की पवन और लवली ने नमस्ते किया और आगे बढ़ने लगे गगन ने टोकते हुए कहा,“ क्या बात है बेटा ताऊजी से बिना बात किए जा रही है… और दोनों के चेहरे उतरे हुए क्यों हैं सब ठीक तो है..?”
“ जी ताऊजी सब ठीक है जो ख़राब हुआ वो ताईजी आपको बता ही देंगी …कर लीजिएगा उनका भरोसा..।” तल्ख़ी में लवली कह दरवाज़े से निकल गई
“ ये पवन और लवली क्यों आए थे…. उनके घर सब ठीक तो है..?” गगन ने पूछा
“ आपके गरीब भाई के घर क्या होना है…वहीं पैसे का रोना …अब लाट साहब बेटी को दिल्ली भेजने के लिए पैसे माँगने आए थे…अरे आमदनी है नहीं चले है बेटी को पढ़ाने…हूं ऽऽऽ।“ रमोला ने मुँह ऐंठते हुए कहा
“ अरे ये तो अच्छी बात है ना लवली पढ़ लिख जाएगी तो पवन की मदद करेंगी…. आजकल लड़कियाँ बहुत नाम कर रही है और फिर हमारी लवली तो बहुत होशियार है….हमारे घर का गुरुर तो वही है रूको मैं पूछ कर आता हूँ कितने पैसे चाहिए…. लवली को मैं बेटी मानता हूँ ज़रूर मदद करूँगा ।
” गगन ख़ुशी से बोल बाहर जाने मुड़ा ही था कि रमोला के शब्दों ने उसे जड़ कर दिया
“ बहुत दान देने का शौक़ चराया है आपको…. देखो जी कहे देती हूँ आपके पैसे पर ना मेरा भी बराबर का हक है… वो तो मैंने दिमाग़ लगाकर देवर देवरानी के हिस्से का भी बहुत कुछ हमारे हिस्से करवा लिया वो तो दोनों सीधे साधे मिट्टी के माधो…भाई को भगवान मान कुछ ना बोलें…..
आप भी तब बड़े खुश हुए हिस्सा लेते वक़्त…अरे उनकी एक ही बेटी है… ब्याह कर देंगे फिर दोनों को क्या सोचना… हमारे तो तीन बेटे हैं…उन्हें भी शहर में पढ़ने का खर्च उठाना होता इन्हें उधार दिया तो कभी ना लौट कर आने वाला… हमारे बेटे पढ़ लिख कुछ बन गए तो देखना कितना नाम होवेगा… फालतू पैसा ना है इन भिखारियों को देने के लिए… कहे दे रही हूँ जो दिए तो देख लेना।”
रमोला पहले भी अपनी बात मनवाने के लिए गगन को भावनात्मक प्रहार कर चुकी थी और मरने का नाटक करती जिससे गगन डर कर उसकी हर बात आँख बंद कर मान लेता था पर इस बार वो उसकी बात ना मानेगा ये सोच उस वक़्त तो चुप रह गया ।
“ लीजिए खाना खा लीजिए..।” रमोला की आवाज़ सुन गगन ख़्यालों से बाहर आया
खाने को दूर से प्रणाम कर( अन्न का अनादर नहीं कर सकता था ) बिना कुछ बोले घर से निकल गया…
जब लौट कर आया सीने का बोझ कम कर आया था ।
उधर लवली शहर चली गई पढ़ने…. बहुत मेहनत कर आज सरकारी नौकरी पर लग गई थी और उसके ताऊजी के तीनों बेटे जो पढ़ाई के नाम पर शहर में ऐश कर रहे थे वो क़स्बे में यूँ ही दिन गुज़ार रहे थे ।
लवली छुट्टी में जब घर आई तो ताऊजी से मिलने का सोची पर उनके घर जाकर मिलना उसे गवारा ना लग रहा था… जब लवली के आने की खबर गगन को मिली तो वो खुद पवन के घर आए…।
“ ताऊजी आपने हमारी जो उस वक़्त मदद की वो पैसे मैं सूद समेत लौटाना चाहती हूँ…।” लवली ने कहा
“ पगली …कैसा और कौन सा उधार…. सब भूल जा बेटा… मैं हमेशा तुझे अपना ही माना …. क्या हुआ जो तेरी ताईजी तुझे ना समझ सकी पर मैं तो जानता हूँ …. एक वादा कर बेटा जब भी तेरे ताऊजी को तेरी ज़रूरत होगी उनका बेटा बन उनके साथ रहेगी।” गगन अपने बेटों और उसकी माँ कीं हरकतों से अंजान नहीं था
और जानता था जो कभी मुझे किसी सहारे की ज़रूरत होगी पवन का परिवार हर हाल में उसका साथ निभाएगा…..।
“ ये भी कोई कहने की बात है ताऊजी जैसे पापा मेरे लिए वैसे आप भी आप दोनों मेरा ग़ुरूर हो जिसे कोई भी कभी भी नहीं तोड़ सकता…आप दोनों बस मुझे अपना आशीर्वाद देते रहो… बाकी आपकी लवली है ना सब सँभालने के लिए ।” लवली अपने पापा और ताऊजी के हाथों को अपने हाथ में लेकर आँखों से लगा लिया
कभी कभी कुछ रिश्ते ऐसे लाचार हो जाते है कि चाहते हुए भी सामने से मदद नहीं कर पाते और जो करते हैं उनका मान और बढ़ जाता है…. परिवार में रहते हुए लोग एक दूसरे के स्वभाव को भलीभाँति जानने लगते हैं ऐसे में कभी कभी कुछ अच्छे काम के लिए बिना बताए कुछ किया जाना मेरी नज़र में गलत नहीं है… आपके इस बारे में क्या ख़याल है ज़रूर बताएँ…
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धन्यवाद
रश्मि प्रकाश
#गुरुर