आज पापा जी का जन्मदिन है। अब वो मेरे साथ नहीं हैं। पापा जी को याद करती रिचा आंखें भर आई।
रिचा के जीवन में पापा जी वह शब्द था, जिनसे उसने कभी ना नहीं सुना था। उसकी हर इच्छा को पल भर में पूरा कर देने वाले पापा जी।
एक पिता को कैसा होना चाहिए, यह किसी को सीखना हो तो उसे पापा जी से मिलना चाहिए था।
पापा जी के बारे में सोचते हुए रिचा अतीत के ख्यालों में खो गई। पापा जी मेरे सगे पिता नहीं थे, जन्मदाता नहीं थे। जन्मदाता से बढ़कर थे ।
ऐसा नहीं है कि मैं अनाथ थी । मेरे अपने माता-पिता भी थे। ऐसा भी नहीं था कि वह मेरा पालन पोषण नहीं कर सकते थे। कहा जाता है ना की जन्म देने वाले से पालने वाला बड़ा होता है।
इसी कथन को सत्य करने वाले मेरे पापा जी।
उन्होंने मुझे गोद नहीं लिया था। उनकी अपनी एक नहीं तीन-तीन संताने थी। फिर भी उनके लिए मैं उनके बच्चों जैसी ही थी।
मुझे उनका सानिध्य मिला, प्रेम मिला, संस्कार मिले। मैं सौभाग्यशाली हूं कि मुझे ऐसे पिता मिले।
रिश्ते की जो डोर जो उनके वह मेरे बीच थी, उसको किसी भी कानूनी दस्तावेज की जरूरत नहीं थी। ना उनके रहते ना उनके जाने के बाद।
कैसे भूल सकती हूं मैं बचपन की वो दिन जब हर रविवार मेरे बाल धोने के बाद, यह कहते हुए मेरे पीछे घूमना बाल उलझ जाएंगे । बाल खुले नहीं रखना नजर लग जाएगी। आजा तेल डाल दूं , यह कहते हुए मुझे अपने पास बिठा लेना।
कैसे भूलू की सर्दियों की शामों में मुझे सर्दी ना लग जाए इसलिए चार-चार- बार विक्स लगाना। बाहर खेलने जाने से रोकते हुए अपने पास रजाई में बिठा लेना।
रोज ऑफिस जाते टाइम अपने साथ खाना खाने बैठाना और ऑफिस से आने के बाद भी शाम को मैं कितना ही कह दूं कि मुझे भूख नहीं है तब भी अपने साथ ही खाना खाने बीठाना। यह कहना कि आजा गरम गरम रोटी खा ले।
मेरी हर मांग पर यह कहना की हां बेटा लेंगे, हां बेटा चलेंगे। कभी ना, न कहना, ना कभी डांटना, ना कभी हाथ उठाना।
मेरे जीवन के लगभग 37 साल का साथ रहा उनका और मेरा। मेरे पापा जी जैसा तो कोई हो ही नहीं सकता।
उनके मेरे बीच जो रिश्तो की डोर बंधी थी, ना वह कभी टूटी थी ना कभी टूटेगी।
अचानक तभी रिचा की बिटिया अवनी उसके पास आकर उसे जोर-जोर से आवाज लगाती है कि मम्मी मम्मी क्या हुआ ? आप रो क्यों रही हो ?
रिचा ख्यालों से बाहर आई। कुछ नहीं बेटा आओ नाना जी का जन्मदिन मनाते हैं।
मेरे जीवन में उनका होना यह साबित करता है कि रिश्ते केवल पैसों से नहीं जोड़े जाते। केवल खून के नहीं होते।
रिश्तों की डोरियां प्यार से जुड़ती हैं।
ऐसा बंधन बनती है की जन्म-जन्मांतर तक वह साथ बना ही रहता है।
आज भी मेरे जीवन में मेरे अपने पिता से पहले और बड़ा स्थान है मेरे पापा जी का जो मेरे जीवन पर्यंत रहेगा।
स्वरचित
दिक्षा बागदरे
11/05/2024
#रिश्तो की डोरी टूटे ना