लोगो का तो काम ही है बाते बनाना – रीतू गुप्ता Moral Stories in Hindi

मीरा के रेस्टोरेंट का आज इनोग्रेशन था, जिसका रिबन उसकी सासु माँ .. पोती वृंदा, राजू की पत्नी सरिता और बेटी सिया के साथ मिलकर काट रही थी। साथ में पोता अनुज और मीरा और राजु भी खड़े थे।

 आज दादी की आँखों में आंसू थे ..

दादी … वृंदा यह सब तेरी वजह से हो पाया है। 

वर्णा..बेटे मुरारी के बाद ….तो पता नहीं हमारा क्या होता … कह आंसू बहाने लगी …

अरे दादी .. आप चुप हो जाओ … जो बीत गया सो बीत गया। बस आज में जिओ… ।

   आज से ५ साल पहले …

    वृंदा के पापा मुरारी ने अपने ही मोहल्ले में किराये की दूकान में राशन पानी का सामान रखा हुआ था । दुकान भी बढ़िया चल रही थी , घर खर्च आराम से निकल रहा था। दूसरा मीरा एक सुघड़ गृहिणी थी , थोड़े में ज्यादा का मंत्र पता था उसे ।

वृंदा कक्षा 10वी में थी भाई 7वी में।

 कुल मिला कर एक खुशहाल परिवार था।

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पर एक दिन अचानक उनकी खुशियों को नजर लग गयी। मुरारी की दूकान पे दो लडको में आपस में लड़ाई हो गयी। एक ने पिस्तौल निकाल ली, मुरारी दोनों लड़को में बीच बचाव कर रहा था कि पिस्तौल से निकली गोली मुरारी को लग गयी और वो वही ढ़ेर हो गया। 

चंद मिंटो में मीरा की दुनिया उजड़ गयी और पुलिस दूकान को भी सील कर गयी।

 कुछ महीनो तक बचत से काम चल गया। पर अब खाने को लाले पड़ने लगे ..बच्चो के स्कूल की फीस, घर का खर्च सब चलाये तो कैसे चलाये। 

मीरा ने वही राशन की दुकान पैर बैठने का सोचा पर मकान मालिक ने दूकान किसी और को देदी थी। सब रिश्तेदारों ने भी मुँह मोड़ लिया था ।

मीरा ने अपने गहने गिरवी रख पैसा उधार लिया और बच्चो की फीस भर, उससे घर- खर्च चलाने लगी।

  पर वो इसी चिंता में थी की आगे क्या किया जाये..

ज्यादा पढ़ी-लिखी न होने के कारण कोई अच्छी नौकरी मिलने का सवाल ही ना था। छोटी-मोटी नौकरी से घर चलना असंभव था।

मीरा की हालत देख दादी ने भी अपने गहने लाकर दे दिए … 

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वृंदा से कुछ भी छुपा ना था।

वो बोली ऐसे कब ततक चलेगा माँ…

 कुछ तो करना ही पड़ेगा ना ।

मीरा .. पर क्या बेटा …. वही तो समझ नही आ रहा।

माँ आप इतने अच्छे छोले भटूरे,चाट पपड़ी बनाते हो… क्यों न हम लोग इसकी रेहड़ी लगा ले ।

वृंदा तुम पागल हो गई है क्या…. लोग क्या कहेंगे…

दादी- हाँ, बेटा..कितनी बातें बनेंगी पता है तुम्हे… 

पता नहंही क्या अनाप शनाप सुनना पड़ेगा .. 

वृंदा – दादी, माँ … कौन से लोग … सोमेश अंकल जैसे लोग… जिन्होंने ने चंद ज्यादा पैसो के लालच में दुकान किसी और को देदी 

या 

साथ वाले रमन अंकल, और बाकी पड़ोसी जिन्होंने आज तक नही पुछा .. तुम कैसे हो .. 

या हमारे रिश्तेदार … जिन्हे डर है की कहीं हम उनसे कुछ मांग न ले। … 

कौन से लोगो की बात कर रहे हो आप….

और 

लोगो का क्या है … लोगो का तो काम ही है बाते बनाना 

मां आप हाँ कीजिए…, आप केवल चाट पापड़ी का रखे, कालेज से आकर मैं लगा लुंगी रेहड़ी ।

तभी भाई अनुज बोला और मैं भी स्कूल से आकर दी का साथ दुंगा।

मीरा … चुप रहो, तुम दोनो।

मैं सोचती हूँ कुछ.. 

 माँ अब सोचने का वक़्त नही है, कुछ करने का है। 

तभी दादी बोली … मीरा वृंदा ठीक कह रही है .. हम सब मिलकर करेंगे ..

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तू लगा रेहड़ी …

पर माँ … इतना आसान नही..सब..

…पर वर कुछ नहीं 

तभी घर में राजू दाखिल होता है ..

राजू उनकी दूकान पे काम करता था , एक वही था जो अब भी उनके घर आता जाता था, मुसीबत में केवल उसने साथ नहीं छोड़ा था। 

राजू… और इस सब में भाभी जी मैं भी आपका साथ दूंगा … आप बस बनाना …. रेहड़ी मैं लगाऊगा।

 मीरा … नहीं , राजू तेरी नयी नौकरी का क्या होगा …

भाभी जी .. कुछ महीने कर के देख लेते है.. नौकरी तो बाद में भी मिल जएगी। 

कुछ दिनों बाद एक बाजार में सुबह 9 बजे मीरा और राजू ने रेहड़ी लगानी शुरू कर दी।

कुछ ही महीनो में उनकी रेहड़ी अच्छी चल निकली ।

उन्होंने शाम को भी टिक्की, चाट पापड़ी बेचना शुरू कर दिया।

शाम को बेटा बेटी भी साथ देने लगे।

घर में सासु मना करने के बावजूद माँ पेड़े बनाती, टिक्की रोल करती। 

  कुल मिला कर सब मेहनत कर रहे थे ।

नतीजन दूर दूर तक उनके स्वाद के चरचे होने लगे।

उन्हें घरो से, शादी-विवाह, पार्टीज़ के आर्डर आने लगे। 

 मीरा ने कई जरूरतमंद लोगो को काम पे रख काम को बढा लिया।

 नतीजा आज उसका अपना रेस्ट्रेस्टॉरेंट खुल चुका था… जिसका एक पार्टनर कम मैनेजर राजू था ।

दादी … आंसू पोंछते हुए… सच में.. लोग क्या कहेंगे … ये सोचते रहते तो पता नही क्या होता हमारा।

वृंदा … तेरी सोच ने अपने कहां से कहा ला दिया बेटा।

जो काम करना है बिना किसी की परवाह किए दिल खोल कर कीजिए। कोई भी काम छोटा नहीं होता और लोगों का क्या है लोगों का काम तो सिर्फ बातें बनाना है वो बनाते रहेंगे।

 समाप्त

स्वरचित 

अप्रकाशित 

रीतू गुप्ता

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