अजय सक्सेना एक पढ़ा लिखा समझदार व्यक्ति था शहर में एक ऑफिस में वह 10 वर्षों से नौकरी कर रहा था वेतन भी महीने का 30 हजार रुपए मिल जाता था जिससे बीवी और तीन बच्चों का खर्चा आराम से चल जाता था ,,, लेकिन आज वह ऑफिस में मुंह लटकाए बैठा हुआ था ऑफिस में काम करने वाले कर्मचारी तो बहुत थे लेकिन उसके दिल का हाल सुनने वाला बस एक ही मित्र था दिनेश पांडे
लंच के समय अजय ,,, अपनी कुर्सी से उठकर सीधा दिनेश पांडे की बगल वाली कुर्सी पर जाकर बैठ गया ,,अजय काफी दिनों से अपनी पत्नी शर्मीली से तलाक लेने के उद्देश्य से दिनेश पांडे से नए-नए वकीलों का पता मालूम करता रहता अजय ने अपनी पत्नी से तलाक लेने की जिद्द ठान रखी थी
तभी दफ्तर के मालिक विश्वनाथ उन दोनों की और लपकते हुए बोले ,, अजय तैयार हो जाओ अभी राजस्थान निकलने के लिए खाने पीने और रहने की व्यवस्था सब राजस्थान में है पता यह रहा पर्ची में और तुम्हारे घर पर मैं कॉल कर दूंगा कि तुम ऑफिस के काम से 3 दिन के लिए दिल्ली से बाहर गए हो
अजय ,, तुरंत कश्मीरी गेट पहुंचा वहां उसे एक बस मिली जो राजस्थान जाने वाली थी बस में ज्यादा सवारी नहीं थी
बस लगातार डेढ़ घंटे चलती रही कि अचानक बस रुक गई
ड्राइवर ने बताया आगे सड़क खुदी हुई है मजदूर काम कर रहे हैं तभी एक मजदूर ने बस में बैठे सभी यात्रियों को बताया ,,
केवल एक घंटा हमें लगेगा गड्ढे में मिट्टी भरने के लिए सड़क ठीक होते ही आप लोग अपनी बस निकाल लेना
ड्राइवर ने सब यात्रियों को समझा दिया बस आगे नहीं जाएगी
एक-एक सवारी बस से नीचे उतरने लगी अजय भी बस से नीचे उतर गया उसे कच्ची सड़क के दोनों तरफ दूर-दूर तक खाली मैदान दिखाई दे रहे थे अजय टहलते टहलते कुछ दूर निकल आया वापस चलने को हुआ तो उसे एक पेड़ के नीचे महात्मा बैठे नजर आए ,,महात्मा की भी नजर पड़ गई उन्होंने कहा इधर आओ बच्चा तुम दुखी लग रहे हो ,, बोलो तुम्हें क्या चाहिए ,,अजय ने तुरंत अपने मन की बात कही मुझे अपनी बीवी से तलाक चाहिए
महात्मा जी मुस्कुराए और बोले,, मैं तुम्हारा तलाक करवा सकता हूं और वह भी मुफ्त ,, यहां से 1 किलोमीटर आगे चले जाओ सुनसान जगह के बीचों बीच एक बड़ा सा मकान देखने को मिलेगा जिसका दरवाजा लाल रंग का है और उस दरवाजे पर लिखा हुआ है यहां तलाक करवाए जाते हैं ,,,
अजय की आंखें चमक उठी वह मन ही मन कहने लगा फ्री में तलाक ,, वह तेज तेज कदमों से
महात्मा के बताए हुए पते की तरफ चल पड़ा ,,
अजय को सामने एक बहुत बड़ा मकान दिखाई दिया जिसका दरवाजा बहुत छोटा था महात्मा के कहे अनुसार दरवाजे का रंग लाल था और उसके बाहर लिखा हुआ था यहां तलाक करवाए जाते हैं
अजय ने तुरंत दरवाजे को खटखटाया,,
दरवाजा खुल गया अजय ने कमरे में प्रवेश किया सामने एक सिंहासन पर एक दाढ़ी वाला आदमी बैठा हुआ है
अजय ने सर झुका कर कहा जी मेरा नाम अजय है मैं शहर में रहता हूं मैं अपनी बीवी से तलाक लेना चाहता हूं
सिंहासन पर बैठे व्यक्ति ने अपने आजू-बाजू खड़े हट्टे कट्टे पहलवानों को आदेश दिया,,,,
पहलवानों,, दरवाजे को अंदर से बंद कर दो और ताला लगा दो
अजय ने दरवाजे का ताला लगते ही कहा आप लोगों ने दरवाजे का ताला क्यों लगा दिया
पहलवानों को फिर आदेश मिला इस शहरी नौजवान की कमीज उतार दो ,,
पहलवान जैसे ही कमीज उतारने के लिए आगे आए तो अजय का गुस्सा सातवें आसमान में चढ़ गया अजय चिल्लाते हुए बोला तुम जानते नहीं हो मेरी पहुंच कहां-कहां तक है
सिंहासन से फिर आदेश मिला इसको रस्सी से बांधकर उल्टा लटका दो
अजय को रस्सी से बांधकर उल्टा लटका दिया
तब एक पहलवान बोला महाराज जी जो भी प्रश्न पूछे उनका सही-सही उत्तर देना वरना तुम ऐसे ही उल्टे लटके रहोगे
सिंहासन पर बैठे व्यक्ति जो देखने में महाराज लग रहा था अजय से सवाल पूछने लगा,,
तलाक लेने की वजह,,
अजय ने लटके-लटके ही जवाब दिया, मैं अपनी पत्नी को पसंद नहीं करता हूं
महाराज — शादी से पहले तुम्हें लड़की दिखाई गई थी
अजय — हा दिखाई गई थी
महाराज — तुमने उस समय शादी के लिए क्यों नहीं मना किया
अजय — अपने माता-पिता की इज्जत की खातिर
महाराज ने पहलवानों से कहा ,, बांस के डंडे से 5 मिनट तक पहले इसकी ठुकाई करो आगे के प्रश्न फिर पूछे जाएंगे
5 मिनट बाद,,
महाराज — तुम अपनी पत्नी के साथ कितनी रातों से सो रहे हो
अजय — 10 सालों से ,,
महाराज — 1 वर्ष में 365 राते होती है 10 वर्ष में 3650 रातें होती हैं अब तुम्हारा पत्नी से मन भर गया इसलिए अब तुम्हें किसी नई औरत का नया जिस्म चाहिए
पहलवानों 10 मिनट तक जमकर इस नौजवान की कुटाई करो
अजय चीखता रहा गिड़गिड़ाता रहा लेकिन पहलवान मोटे-मोटे डंडों से उसे पीटते रहे
पहलवान और महाराज अजय को वहीं उल्टा लटका छोड़कर दूसरे कमरे में चले गए
अजय को लटके हुए कई घंटे बीत चुके थे भूखे प्यासे लटके हुए सुबह हो चुकी थी
महाराज जी फिर पधारे सिंहासन पर बैठकर पहलवानों से बोले
इसे खोलकर तहखाना के नीचे कमरा नंबर एक में ले जाओ
अजय को तहखाना के भीतर कमरा नंबर एक में फेंक दिया और दरवाजे का बाहर से ताला लगा दिया
वहां बहुत अनगिनत पुरुष दिखाई पड़े बड़े-बड़े पतीले अंगीठी में चढ़े हुए थे कोई पुरुष आलू उबाल रहा था कोई पुरुष प्याज काट रहा था कोई हरी मिर्च,, कोई पुरुष आटा गूंध रहा था कोई रोटी सेंक रहा था कोई पुरुष बर्तन मांज रहा था कोई झाड़ू लगा रहा था वहां पर भी एक सिंहासन था उस पर भी एक महाराज जी बैठे हुए थे अगल-बगल चार पहलवान खड़े हुए थे
अजय को देखते हुए महाराज जी बोले लो एक और आ गया
इसे भी तलाक चाहिए इसे काम पर लगा दो
पहले प्याज कटवायो ,,फिर गरम-गरम आलू छीलने के लिए बिठा देना अजय को देखकर वहीं पास बैठे बर्तन मांजने वाले व्यक्ति ने कहा इन पहलवानों की बात मान लो ,, जब तक तुम काम नहीं करोगे तुम्हें खाना नहीं मिलेगा,,
अजय के सामने दो बोरे प्याज रख दी एक पहलवान बोला
जितनी जल्दी काम को निपटाओगे तब दूसरा काम बता दिया जाएगा अजय प्याज काटता जा रहा था और उसकी आंखों से पानी बह रहा था
सिंहासन पर बैठे महाराज जी बोले ,, तुम सब पुरुषों को तलाक अवश्य मिलेगा पहले खाना बनाना सीख लो जब तक खाना बनाना नहीं सीखोगे कोई इस कमरे से बाहर नहीं जा सकता है ,,अजय चुपचाप प्याज छीलने के बाद आलू छीलने लगा गरम-गरम आलू से अजय के हाथ जल रहे थे तब उसे याद आया वह अपनी पत्नी पर हुकुम चला कर कहता था चाय के साथ सुबह आलू के पराठे बना दिया करो
उबले हुए आलू कितने गर्म होते हैं आज अजय को एहसास हो रहा था
प्याज छीलने और काटने में अजय की आंखें सूज गई थी,
और गर्म पतीलों को उठाने और धरने में अजय के हाथों में कई जगह छाले भी पड़ गए थे
बर्फ जैसे ठंडे पानी से बड़े-बड़े बर्तनों को धोते-धोते अजय को याद आया ऑफिस से लौटते समय जब घर आता था और गंदे बर्तन सिंक में देखकर जोर से चिल्लाता था तुम कैसी पत्नी हो,, घर के चार बर्तन तुमसे धुलते नहीं बर्तन धोने के लिए भी गर्म पानी करती हो
पहलवान ने अजय को रोटी सेंकने के लिए अंगीठी के पास खड़ा कर दिया पहलवान ने गरजते हुए कहा अगर जितनी भी रोटी जली उतने ही कोड़ों की बरसात होगी तुम्हारे जिस्म पर
अजय गरम-गरम भट्टी में रोटियां सेंकने लगा ,,
उसे याद आया वह कैसे अपनी पत्नी की महीने 2 महीने में जली एक आध रोटी को देखकर गुस्सा हो जाता था लेकिन आज अजय से सारी रोटियां जल रही थी
उसने कभी रसोई घर की तरफ झांका भी नहीं था
दफ्तर से आने के बाद बीवी थाली में खाना परोस कर रख देती थी नर्म नर्म गोल-गोल रोटियां जिसमें देसी घी लगा हुआ रहता था
अजय चट कर जाता था आज अजय जली हुई कच्ची रोटियां खाकर वही फर्श पर लेट गया
सुबह हुई सिंहासन पर महाराज जी फिर पधारे और कहने लगे अब इन लोगों को तहखाना के कमरा नंबर दो में ले जाओ
पहलवान ,,,अजय और बाकी लोगों को घसीटते हुए पीटते हुए कमरा नंबर दो के तहखाना के नीचे ले गए
वहां चादर कंबल ,,तकिया के खोल ,, पेंट कमीज जुराब बहुत से वस्त्रो का ढेर लगा हुआ था बड़ी-बड़ी बाल्टियों में पुरुष कपड़े धो रहे थे
अजय को ढेर सारे कपड़े धोने के लिए दे दिए ,,
एक पहलवान ने कहा कपड़े फटने नहीं चाहिए अजय
कपड़े धोने में लग गया ,,उसे याद आया जब वह दफ्तर से घर लौटता था और अपनी बीवी पर चीखते हुए कहता था ,, कपड़े धोना कौन सी बड़ी बात है वाशिंग मशीन खराब हो गई है अगले सप्ताह ठीक करवा दूंगा अभी तुम फिलहाल हाथ से कपड़े धो लो। ,,,अजय समझ चुका था पहले मां कमीज धोती थी अब पत्नी 10 सालों में मैंने तो कभी एक कमीज भी ना धोई
दिन खत्म हो चुका था कपड़े धोते-धोते रात हो गई अजय वही बैठे-बैठे ही सो गया
सुबह हुई महाराज जी फिर पधारे,, पहलवानों के साथ ,,
इन लोगों को कमरा नंबर तीन में फेंक दो अजय और उनके साथ वाले पुरुषों को कमरा नंबर 3 में फेंक दिया
उस कमरे में बहुत सारे छोटे-छोटे 6 महीने के बच्चे 1 साल के बच्चे ,,पलने में लेटे हुए थे
पहलवानों ने बताया ,,हर कैदियों को 10 बच्चे दिए जाएंगे किसी भी बच्चे की रोने की आवाज नहीं आनी चाहिए भूख लगने पर उन्हें दूध पिलाना है रोने पर उन्हें खिलौने से खिलाना है सूसू करने पर तुरंत उनके कपड़े बदलने हैं अगर एक बच्चा भी रोया तो तारीख बढ़ा दी जाएगी ,,अगर यहां से निकलना चाहते हो तो जल्दी-जल्दी अपने कामों में जुट जाओ ,,
अजय को याद आया जब उसके घर संताने हुई थी रात को जब बच्चे रोते थे तो मैं तकिया लेकर दूसरे कमरे में चला जाता था रात भर पत्नी ही बच्चों को संभालती थी उसकी नींद भी पूरी नहीं हो पाती थी सुबह आंखें मलते मलते रसोई में खड़ी हो जाती थी सारा दिन बच्चों को लोरी सुनाती उन्हें चुप कराती
और मैं ऑफिस में बैठे-बैठे यही सोचता रहता की महारानी घर में आराम कर रही होगी ,,
अजय को महसूस हुआ नारी के सम्मान त्याग और बलिदान के सामने तलाक जैसे शब्द को मन में जगह केवल कायर पुरुष ही दे सकता हैं
हम पुरुष कितनी आसानी से कह देते हैं कि हमें तलाक चाहिए
अजय के मन में जैसे ही विचार आया कि मुझे तलाक नहीं चाहिए तुरंत सामने का दरवाजा खुल गया अजय तुरंत बाहर निकला उसने चारों तरफ देखा सवारी अपनी अपनी कुर्सियों पर बैठी हुई है
ड्राइवर ने आवाज लगाई सड़क ठीक हो गई है बस चलने के लिए तैयार है राजस्थान
अजय समझ गया शायद में कोई गहरे सपने में खो गया था
3 दिन के बाद राजस्थान से अजय जब अपने ऑफिस वापस लौटा तो फिर कभी उसने दिनेश पांडे से तलाक का जिक्र नहीं किया घर पर अपनी पत्नी के साथ रसोई में खड़े होकर कभी पराठे बनते समय आलू छील देता सब्जी के लिए कभी प्याज काट देता जब पत्नी कपड़े धोती तो अजय भी पत्नी की मदद करता
अच्छे से देखभाल करता उन माता-पिता की जिन्होंने
कितनी रातें गंवाई है बचपन में मुझे बड़ा करने के लिए
पत्नी का घर के कामों में हाथ बंटाना जो जीवन भर तुम्हारे साथ चलने के लिए तैयार खड़ी है
बच्चों को स्कूल ले जाना उनके साथ घुल मिलकर रहना
हमारे संस्कार हमें यही सिखाते हैं
अजय को रिश्तो का एहसास हो चुका था ,,,
अजय के दिल में हमेशा हमेशा के लिए फिट हो गए थे वह
,,, तलाक के तीन कमरे ,,,
नेकराम सिक्योरिटी गार्ड दिल्ली से