कई हजारों वर्ष पहले मनुष्यों ने जानवरों पर विजय प्राप्त करने के बाद समाज की व्यवस्था बनाए रखने के लिए दूर-दूर के गांव वासियों को एक जगह इकट्ठा किया एक बुजुर्ग को सरपंच बनाया गया उसने कहा जीव जंतु पशु पक्षी जानवरों में नर और मादा को लेकर बहुत झगड़े होते हैं हम मनुष्यों में झगड़ा ना हो इसलिए हर पुरुषों को एक-एक नारी सौंपी जाएगी ,,,
वह नारी जिस पुरुष के साथ रहेगी फिर वह नारी किसी अन्य पुरुष के पास नहीं जाएगी अब उम्र तय करनी थी उम्र क्या होती है उन्हें मालूम नहीं था एक बरगद के पेड़ के पास जाकर सरपंच ने अपने कंधे तक आने वाली जगह पर एक चिन्ह लगा दिया फिर सबको बताया जो नारी इस निशान तक आ जाएगी उसका विवाह किसी एक पुरुष से कर दिया जाएगा
नारी के शरीर में कुछ ऐसे चिन्ह लगाए जाएंगे जिससे पता चल सके कि वह विवाहित है–
जब नारियों के पति बूढ़े होकर मर जाते थे तब वह नारियां रो रोकर आसमान सर पर उठा लेती थी महीनों महीनों उनके आंसू थमने का नाम नहीं लेते थे उस समय के काल में नारियों को पति के साथ ही जिंदा जला दिया जाता था धीरे-धीरे समय बीता जिंदा जलाने की प्रथा खत्म हुई नये सरपंच ने नए फैसले सुनाए विधवा नारियों को एक कमरे में बंद करने का रिवाज बनाया
गया पुरुष उसकी खूबसूरती को देखकर मचल ना जाए इसलिए नारी के बाल काट दिए जाते थे उसे एक सफेद साड़ी दी जाती थी शादी व किसी समारोह में जाने की अनुमति नहीं थी
समय और बीता कुछ और नए पंचायती लोग आएं नए कानून बने विधवा नारी के बाल काटने पर पाबंदी लगा दी गई समय बीता सफेद साड़ी पहनी ही पड़ेगी इस पर विधवा नारी पर दबाव नहीं था वह घर के कपड़े पहन सकती थी किंतु श्रंगार करने पर पाबंदी थी समय और बीता नए कानून बने विधवा नारी श्रंगार कर सकती थी इधर-उधर घूम सकती
थी–समय और बीता विधवा नारी से कोई पुरुष विवाह करना चाहे तो कर सकता था समय और बीता आज का समय यह आया कि नारी के विधवा होते ही या तलाक होते ही नया वर ढूंढने में ज्यादा समय नहीं लगाया जाता
इतिहास के पन्नों में अगर हम झांके तो महिलाओं पर बहुत अत्याचार हुए हैं इसलिए समाज के कुछ बुद्धिमान पुरुषों ने महिलाओं को भी अपने सपने पूरे करने की इजाजत दे दी है शादी समारोह में भी महिलाएं सज संवर कर जाने लगी नौकरियां करके देश के विकास में हाथ बढ़ने लगी
आज यह जमाना आ गया है कि पति भी अपनी पत्नी को छूने में डरता है 10 बार पति कहता है क्या मैं तुम्हें छू लूं तब पत्नी कहती है अभी मेरा मूड नहीं है नई बहू के घर आते ही देवर जेठ ससुर छिपने का कोना ढूंढते हैं बहू के हाथों का खाना बना मिल गया तो ठीक लेकिन बहू से कह नहीं सकते की रसोई घर में जाकर खाना पका लो वह जितनी बार मेके जाना चाहती है
जा सकती है जितनी देर टीवी देखना चाहती है देख सकती है वह अगर नाचना चाहती है तो कोई रोक नहीं सकता कोई गीत गाना चाहती है तो कोई टोक नहीं सकता पहले पुरुष ही लेखक होते थे नारियों को स्कूल नहीं भेजा जाता था
मैं उन महान लोगों को धन्यवाद देना चाहूंगा जिन्होंने बेटियों के लिए भी स्कूल खोले आज पढ़ी-लिखी बेटियां लेखिकाएं बन रही है समाज के ढांचे में जो जो कमियां है उन कमियों को दूर करने के लिए कलम के माध्यम से समाज में अपने विचार रखती हैं क्रिकेट के मैदान हो या कुश्ती हर जगह अपनी पहचान बना रही है
बाइक बस मेट्रो हवाई जहाज चलाकर अपने-अपने देश का नाम रोशन कर रही है पुलिस बनकर समाज को बेहतर से बेहतर बनाने के लिए कार्य कर रही है घर के कामों से लेकर देश दुनिया के कामों तक का सफर तय करके अपनी कामयाबी की ध्वजा अपने साथ लेकर चलती है
लड़ने में आ जाए तो झांसी की रानी लक्ष्मीबाई की तरह तन जाती है पढ़ने में आ जाए तो भारत की राष्ट्रपति द्रोपति मुर्मू बन जाती है
आ जाए संतों की टोली में तो शांत वातावरण में जय जयकार लाती है और लिखने में आ जाए तो महान लेखिकाएं बनकर पुरस्कार पाती है कल के इतिहास की दबी कुचली नारी पुराने सड़े गले रीति रिवाजों व परंपराओं को पीछे छोड़ती हुई आज सब पर भारी है नमन करो इन्हें आज के युग की यह पावरफुल नारी है
हौसले जिसके कम नहीं मुश्किलों में आंखें नम नहीं
भर्ती है उड़ान ऊंची खतरों का जिसे गम नहीं
झुकने का इरादा छोड़ सर उठाकर आज उठी हुई है
समाज को बेहतर से बेहतर बनाने में आज जुटी हुई है
नेकराम सिक्योरिटी गार्ड मुखर्जी नगर दिल्ली – 9
स्वरचित रचना