मां ,,,, मैं दिन पर दिन सूखता ही जा रहा हूं खासी रुकने का नाम नहीं ले रही मां मुझे अस्पताल ले गई डॉक्टर ने मुझे टीवी की शिकायत बताई डॉक्टर साहब ने बताया ,,,,,, हमारे पास टीवी की दवाइयां उपलब्ध नहीं है
,,, आप अपने बेटे का प्राइवेट इलाज करवा लीजिए ,मां, उदास चेहरा लिए मुझें घर ले आई पिता दो महीनों से लापता थे
मां ने मेहनत मजदूरी करनी शुरू कर दी ,, बड़े भाई ,, बड़ी बहन ,, और मां ने मजदूरी करके मेरा प्राइवेट इलाज करवा दिया ,,,
किंतु 3 महीने बाद मुझे फिर टीवी हो गया उन दिनों मेडिकल स्टोर पर नकली दवाइयां तेजी से बिक रही थी ,,,,मां,,,को इस बात का ज्ञान नहीं था प्राइवेट डॉक्टर और मेडिकल की मिलीभगत से यह काम गुपचुप चल रहा था जिसका शिकार में हुआ,, मां ,, के कीमती सामान और गहने बिक चुके थे मेरा दोबारा से इलाज करवाना संभव नहीं था —
मैं घर पर बोंझ नहीं बनना चाहता था मेरे कारण घर में किसी को छूत की बीमारी हो जाए यह मुझे गवारा नहीं था ,,,,,,
घर से दूर,,, मैं ,,,, मरने के लिए चल पड़ा,
किसी बस या ट्रेन के नीचे आकर जान देने की मैंने ठान ली रास्ते में मां आती दिखी तो मैं सकपका गया मां ने मुझे देखा और बोली तू यहां ट्रेन की पटरी के पास क्या कर रहा है ,, मां ,,, मुझे वापस अपने
साथ घर ले आई,,,,,,
उस दिन ना जाने पिताजी कैसे घर आ गए मेरी हालत देखकर बहुत रोए कहने लगे मकान बेचकर जो कारखाना खोला था अब वह भी नहीं रहा और बच्चों की पढ़ाई भी पूरी ना हो सकी नेकराम के इलाज के लिए भाई बहनों ने पढ़ाई छोड़कर मजदूरी शुरू कर दी ,,,,
इस बात का पिताजी को बहुत दुख हुआ,,
उस दिन के बाद पिताजी जहांगीरपुरी के एक कारखाने में काम की बात कर आए ,, फिर से इलाज हुआ इस बार इलाज के लिए दिल्ली के राजन बाबू अस्पताल में मेरा इलाज नए सिरे से शुरू करवा दिया गया,,
बड़ी-बड़ी गोलियां खाली पेट खाने के बाद डॉक्टर साहब ने बताया ठीक सुबह 8:30 बजे यहां अस्पताल में पहुंचना है एक भी दिन मिस नहीं होना चाहिए 6 महीने का कोर्स है
पिताजी मुझे 18 किलोमीटर साइकिल पर बिठाकर रोज समय पर अस्पताल ले आते दवाई खाने के बाद फिर 18 किलोमीटर साइकिल चलाकर वापस घर छोड़कर ड्यूटी के लिए निकल जाते ,,,
एक सप्ताह तो किसी तरह बीत गया एक दिन पापा की साइकिल पंचर हो गई पापा ने रास्ते में पंचर वाली दुकान इधर-उधर तलाश की मगर पंचर की दुकान ना दिखी पापा ने साइकिल सड़क किनारे ताला लगाकर खड़ी कर दी ,, मुझे ऑटो में बिठाकर जल्दी से अस्पताल ले आए ,,,,
पापा की जेब में केवल दस रुपए थे ,,, ऑटो वाला पचास रुपए मांग रहा था ,,,,,
पापा ने अपनी घड़ी ऑटो वाले को देते हुए कहा तुम यह घड़ी रख लो ,,,, ऑटो वाला चिल्लाने लगा ,,, कड़क आवाज में बोला जब जेब में पैसे नहीं थे ,,
तो ऑटो में क्यों बैठे इस घड़ी का मैं क्या करूंगा
पापा ने ऑटो वाले से विनती करते हुए कहा मेरे बेटे को समय पर अस्पताल लाना था समय बहुत कम था मैं तुमसे माफी मांगता हूं उस दिन अपने पापा को ऑटो वाले के सामने हाथ जोड़ते देख मेरी आंखें भर आई ,,,
ऑटो वाला मान गया ,,
और वह पापा की घड़ी लेकर चला गया ,,,,,
पापा ने अपनी कीमती घड़ी मेरे लिए उस ऑटो वाले को दे दी पापा जल्दी-जल्दी मेरा हाथ पकड़ के डॉक्टर साहब के कमरे में पहुंचे
यह कोई आने का वक्त है डॉक्टर साहब ने फटकार लगाते हुए कहा
पिताजी चुप रहे डॉक्टर साहब आंखों से चश्मा उतारते हुए बोले ,,, मेरे सारे मरीज दवाई खाकर चले गए और तुम लोग अब इतना लेट आ रहे हो ,, जाओ कोई दवाई नहीं मिलेगी जो समय की कीमत नहीं समझता उनका इलाज भी मैं नहीं कर सकता ,,, पापा ,, नजदीक आकर डॉक्टर साहब के पैरों में गिर पड़े गिड़गिड़ाते हुए मेरे इलाज की भीख मांगने लगे ,,, डॉक्टर साहब ,,,,
,,,, अब फिर कभी मेरा बेटा लेट नहीं होगा ,,,
प्लीज मेरे बेटे को बचा लो पापा की आंखों में आंसू देख कर एक मन हुआ कि मुझे ट्रेन के नीचे मर जाना चाहिए था लेकिन मां वहां पर न जाने कैसे आ पहुंची और मुझे घर ले आई ,,,,
डॉक्टर साहब शांत होते हुए बोले ,,, इस बार माफ करता हूं लेकिन आगे से लेट मत आना
पिता जी मुझे दवाई खिलाकर अस्पताल से बाहर ले आए अस्पताल से आधा किलोमीटर दूर एक कच्ची बस्ती के पास पहुंचे वहां एक खोली किराए पर ले ली खोली बहुत छोटी थी बस्ती में वही एक खोली खाली थी किसी ने बताया ,, हां या ना वरना यहां किराएदारों की कमी नहीं है पिता ने खोली की चाबी ले ली
मुझसे कहा तू यहीं ठहर में अभी आता हूं पिताजी उनसे बात करके 3 घंटे बाद एक रिक्शा में बैठे आते नजर आए
उस रिक्शे में दो-चार बर्तन एक स्टोप कुछ मिर्च मसाले के पैकेट एक बाल्टी दो जोड़ी कपड़े ,, पिताजी रोज पास की एक ,, बूथ की दुकान से कॉल करके ,,, मां,,, को दिलासा देते नेकराम बहुत जल्द ठीक हो जाएगा
,,,, पिताजी रोज मुझे नहलाते , पार्क में टहलाते आसपास के लोगों को कुछ नहीं पता था आखिर माजरा क्या है
एक पिता 17 वर्षीय लड़के की इतनी सेवा क्यों करता है खैर लोगों का क्या हम वहां अजनबी थे ,, लोगों को हमसे मतलब भी नहीं था पिताजी वहीं से ड्यूटी निकल जाते खोली में मैं अकेला चादर बिछाकर उस पर लेटा रहता
पिताजी ने 6 महीने मेरी देखभाल की इन 6 महीनों में ,, मैं पहले से भी ज्यादा स्वस्थ हो गया ,, दवाइयों का कोर्स भी समाप्त हो चुका था पिताजी मुझे एक बस में बिठाते हुए बोले तू घर पहुंच में बाद में आता हूं मैं घर चला आया 2 दिन हो गए पिताजी घर नहीं आए मां मुझ पर बरस पड़ी तेरे पापा कहां रह गए ,,,
मैं मां के साथ खोली पहुंचा ,, मगर पिताजी नहीं मिले वहां दूसरे किराएदार आ चुके थे
नेकराम सिक्योरिटी गार्ड
मुखर्जी नगर दिल्ली से
स्वरचित रचना