बात संस्कारों की है-नेकराम Moral Stories in Hindi

राजस्थान का एक छोटा सा गांव जसोल इस गांव का बेटा उत्कर्ष 3 महीने पहले दिल्ली आईएएस की तैयारी करने गया था शुरुआती दिनों में तो दिन में चार बार उत्कर्ष का फोन आ जाया करता था फिर अचानक एक महीने बाद ही उत्कर्ष का फोन आना बंद हो गया उसकी मां लच्छो इस बात से काफी चिंतित थी पिता हरदेव भी इस बात को सुनकर व्याकुल रहने लगे
एक दिन आंगन में कुर्सी पर हुक्का पीते हुए हरदेव की पत्नी लच्छो ने कहा,, सुनो जी मैं एक बात बताना चाहती हूं मगर मुझे डांटना मत जब उत्कर्ष दिल्ली गया था तो एक महीने बाद उसने कहा था कि पी .जी का किराया सात हजार रुपए है लेकिन पी जी का खाना मुझे पसंद नहीं इसलिए मैं होटल का खाना खाना चाहता हूं तुम यह बात बाबूजी को मत बताना मुझे हर महीने 14000 रुपए पेटीएम कर दिया करो 3 महीने से मैं उत्कर्ष को 14000 रुपए पेटीएम कर रही हूं
लेकिन अब उसका कॉल नहीं आता जब हम कॉल लगाते हैं तो बेल बजती रहती है लेकिन उत्कर्ष कॉल नहीं उठाता पड़ोस की चाची कामुक यह सभी बातें सुन रही थी तो फौरन चली आई आग में घी डालने के लिए आते ही बोली दिल्ली में कितने लड़के पढ़ने जाते हैं सब आईएएस थोड़ी ना बन जाते हैं मुझे पूरा यकीन है उत्कर्ष नशे की चपेट में आ चुका होगा बूढ़े मां-बाप यहां गांव में मजदूरी कर रहे हैं और बेटा शहर में मौज उड़ा रहा है शहर में लड़के पार्टी करना लड़कियों को घुमाना ना जाने कौन-कौन सा पाप करते हैं उत्कर्ष भी आवारा हो चुका होगा लच्छो कामूक चाची की बातें सुनकर फफक-फफक कर रो पड़ी
हरदेव ने अपनी दीवार पर टंगी बंदूक निकालते हुए कहा अगर हमारा बेटा उत्कर्ष दिल्ली शहर में हमारा नाम मिट्टी में मिला रहा है तो उसे गोली मार कर ही दम लूंगा लेकिन अपने घर की बदनामी ना होने दूंगा लच्छू तू चल मेरे साथ अभी दिल्ली
उत्कर्ष के माता-पिता दिल्ली पहुंच गए मुखर्जी नगर पहुंचने के बाद मुस्कान पीजी का पता भी खोज निकाला वहां एक लड़का मिला उसने अपना नाम ओम प्रकाश बताया और यह भी बताया उत्कर्ष हमारे पीजी में ही रहता है सारा दिन पढ़ाई करता है फिर रात को न जाने कहां गायब रहता है 2 महीने से पीजी में सोने ही नहीं आता मैंने कई बार पूछा मगर उसने कुछ नहीं बताया हरदेव ने अपनी बंदूक दिखाते हुए कहा उत्कर्ष से मुझे ऐसी उम्मीद ना थी शहर में आकर यह गुल खिलाएगा,
ओमप्रकाश तुझें एक काम करना होगा हम दिल्ली आ चुके हैं इस बात का उत्कर्ष को पता ना चले हम छिपकर देखेंगे और पता करेंगे वह रात को कहां जाता है रात के 7:30 बज चुके हैं हम इस पीजी के सामने वाले पार्क में छिपकर बैठ जाते हैं उत्कर्ष के मां और बाबूजी पार्क में छुपकर बैठ गए तभी उत्कर्ष किताब हाथों में लिए आता नजर आया पीजी के भीतर चला गया आधे घंटे बाद एक थैला लिए पैदल सड़क के बने बस स्टॉप पर
आकर खड़ा हो गया उत्कर्ष के माता-पिता भी उत्कर्ष का पीछा करने लगे तभी एक स्कूटी उत्कर्ष के सामने रुकी वह स्कूटी एक लड़की चल रही थी उत्कर्ष स्कूटी के पीछे बैठ गया हरदेव ने एक ऑटो वाले को हाथ देकर ऑटो रुकवाया और ऑटो वाले से कहा वह देखो सामने सड़क पर स्कूटी जो लड़की चला रही है उसका पीछा करो
डबल पैसे मिलेंगे ऑटो वाला डबल पैसे का नाम सुनकर स्कूटी का पीछा करने लगा 10 मिनट बाद स्कूटी एक कारखाने के सामने रुकी उत्कर्ष को वहीं उतारकर वह लड़की स्कूटी लेकर चली गई
उत्कर्ष ने थैले से कुछ कपड़े निकाले टोपी पहनी कमीज पहनी पास रखा एक डंडा हाथ में लिया फिर थैले से टॉर्च निकाली फिर मोबाइल से अपनी फोटो खींचने लगा उत्कर्ष के माता-पिता सड़क के दूसरी तरफ खड़े सब देख रहे थे कि एक तगड़ा सा आदमी उत्कर्ष के माता-पिता के पीछे खड़ा होता हुआ
बोला आप दोनों उस कारखाने की तरफ क्या देख रहे हो क्या इरादा है तब हरदेव बात संभालते हुए बोला कारखाने के सामने जो लड़का सिक्योरिटी गार्ड की वर्दी पहने हुए खड़ा है वह हमारा बेटा उत्कर्ष है
तब वह तगड़ा आदमी बोला मैं इस कारखाने का मैनेजर आनंद प्रसाद हूं यह उत्कर्ष बड़ा मेहनती लड़का है 2 महीने से हमारे यहां सिक्योरिटी गार्ड बनकर ड्यूटी कर रहा है उत्कर्ष ने हमसे नाइट शिफ्ट मांगी थी इसलिए नाइट ड्यूटी कर रहा है
महीने के सात हजार रुपए मिलते हैं मगर यहां का कानून है ड्यूटी पर मोबाइल पर बातें करना सख्त मना है 2 महीने से अभी तक किसी ने भी इस लड़के को मोबाइल चलाते नहीं देखा,, मगर तुम लोग यहां दूर क्यों खड़े हो जाओ अपने बेटे उत्कर्ष से मिलकर आओ तब हरदेव बोला आपसे एक विनती है साहब हम गांव से आए हैं इस बात का उत्कर्ष को मालूम ना चले प्लीज बड़ी मेहरबानी होगी मैनेजर जल्दी में था तो कहने लगा आप लोग उसके माता-पिता है जैसा आप लोग ठीक समझे इतना कहकर वह मैनेजर चला गया
रात भर उत्कर्ष कुर्सी पर बैठा मोटे-मोटे मच्छरों से लड़ता रहा भूखे प्यासे रहकर उसने रात बिता ली सुबह 7:00 बजते ही उत्कर्ष ने सिक्योरिटी गार्ड की वर्दी थैले में वापस उतार कर रख ली और दूसरे कपड़े पहन लिए तभी वही रात वाली स्कूटी फिर आई और उत्कर्ष स्कूटी में बैठ गया हरदेव ने तुरंत सड़क पर एक ऑटो वाले को रुकवाया और अपनी पत्नी लच्छो के साथ ऑटो में बैठ गया
स्कूटी आगे जाकर एक बड़े से सरकारी अस्पताल के सामने रुकी उत्कर्ष स्कूटी से उतर गया वह स्कूटी आगे चली गई उत्कर्ष अस्पताल के भीतर जाने ही वाला था कि एक बुढ़िया और एक बूढ़ा आदमी डॉक्टर के साथ आते नजर आए डॉक्टर ने उत्कर्ष को देख लिया तब डॉक्टर साहब ने कहा अब तुम्हारे माता-पिता बिल्कुल स्वस्थ हो चुके हैं अगर तुम रूपयों का इंतजाम ना करते तो शायद तुम्हारे माता-पिता का बचना कठिन था डॉक्टर साहब दूसरे वार्ड की तरफ चल दिए उत्कर्ष उन बूढ़ों को एक टैक्सी में बिठाकर उनके साथ कुछ दूरी पर एक वृद्धा आश्रम के सामने रुका,,
टैक्सी वाले को किराया देकर उसने बूढ़ों को टैक्सी से उतारा और वृद्धा आश्रम के भीतर चल पड़ा हरदेव और लच्छो भी अपने बेटे उत्कर्ष के पीछे-पीछे चल पड़े,,
एक बड़े से कमरे के भीतर पहुंचने के बाद वह दोनों बुजुर्ग कहने लगे यही सात नंबर का पलंग हमारा है वहां सभी आश्रम के बुजुर्ग दौड़कर उन बूढ़ों के पास आते हुए बोले
कन्हैया जी तुम अपनी पत्नी शांता देवी को लेकर दो महीने से कहां लापता थे तब वह बूढ़ा कन्हैया बताने लगा दो महीने पहले मैंने अपनी बुढ़िया से कहा आश्रम की चार दिवारी के भीतर रहते हुए हमें कितने साल हो गए चलो आज थोड़ा बाहर घूमकर आते हैं हमने चौकीदार से विनती की हमें बाहर जाने दिया जाए अभी दस पांच मिनट में लौट आएंगे,
चौकीदार मना न कर सका और हम आश्रम से बाहर आ गए पैदल चलते-चलते थोड़ी दूर निकल गए की तेज हवाएं चलने लगी फिर धूल भरी हवा का झोंका आया और हम सड़क पर गिर गए धूल के कारण एक बाइक हमारे ऊपर आ चढ़ी हम घायल हो गए दर्द से करहाने लगे दूर-दूर तक कोई हमें देखने वाला नहीं था तभी एक नौजवान लड़का दौड़कर हमारे पास आया हम दोनों को अस्पताल में
भर्ती करवाया डॉक्टर ने पूछा यह दोनों बुजुर्ग तुम्हारे रिश्ते में कौन लगते हैं तब उसने जवाब में कहा यह मेरे माता-पिता है सड़क पर एक्सीडेंट हो गया है तब डॉक्टर ने बहुत डांटा कैसे बेटे हो,, जब माता-पिता बूढ़े हो तो सड़क पर क्यों निकलने देते हो ख्याल रखा करो अपने माता-पिता का टांगों में फैक्चर आ गया है एडमिट करना होगा 2 महीने तक हम अस्पताल में भर्ती रहे
काउंटर से पता चला दवाइयां फल इंजेक्शन का कुल खर्चा 34000 रूपयो का आया यह सब खर्च इस बेटे ने उठाया सब कहने लगे तुम्हारा नाम क्या है
जी मेरा नाम उत्कर्ष है मैं राजस्थान में जसोल गांव का रहने वाला हूं इतने में हरदेव और लच्छो भी जो दूर खड़े थे पास आकर उत्कर्ष को गले लगा लिया और कहा तुम हमें बता देते तुम्हें रूपयों की ओर जरूरत है तो हम मना नहीं करते तब उत्कर्ष बोला बाबूजी आपसे चोरी छुपे मां से सात हजार रुपए तो पहले ही ले रहा था ,,और मांगता तो आप भी तो खेतों में सारा दिन काम करते हैं तब मैंने सोचा रात में नाइट ड्यूटी करके अस्पताल का बिल चुकाया जा सकता है
वृद्धा आश्रम के सभी लोगों ने उत्कर्ष को आशीर्वाद दिया और कहा इस दुनिया में एक वह बेटे हैं जो अपने बूढ़े मां-बाप को वृद्धाआश्रम में फेंक कर चले जाते हैं और एक यह बेटा है जो गैर होकर भी अपना है 🙏
नेकराम सिक्योरिटी गार्ड मुखर्जी नगर
दिल्ली से स्वरचित रचना

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