जया …
” रोहन तुम्हें नैना कुछ परेशान नहीं लगती?”
” शायद है, या नहीं भी, पता नहीं “
” मतलब ? कुछ तो ऐसा है जिसमें वह उलझ कर रह गई है “
” मैं पिछले कुछ दिनों से यह महसूस कर रहा हूं। पर किसी दुःख तभी बांटो जब वह उसका बोझ नहीं उठा पाए “
” लेकिन वो खुद नहीं बताएगी मुझे भी मालूम करना होगा।
क्या बात हो सकती है ? कहीं कुछ तो जरूर घट गया है। जिसे मैं जान नहीं पाई । अपने घर परिवार में इतना उलझ कर रह गई कि नैना का खयाल ही नहीं आया “
जया को याद आया,
बचपन में नैना उस पर कितना भरोसा करती थी। जब आसमान में काले घने बादल छाते वह अपनी मीठी बोली में बोलती ,
” दीदी,
काश मेरे हाथ इतने … लंबे होते कि मैं इन्हें चम्मच से खा पाती “
और मैं उसे तरह- तरह की काल्पनिक कहानियां गढ़ कर सुनाया करती,
जिन पर वो आंखे मूंद कर भरोसा कर लिया करती।
कहीं से धूल का एक कण आ कर जया की आंख में पड़ गया,
” मैं इस तरह खुदगर्ज किस तरह बन गई कि उसकी खामोशी समझने में नाकामयाब रही”
अगले दिन इतवार था।
“आज नैना घर पर अवश्य मिलेगी ” यह सोचती हुई जया गाड़ी ले कर सीधे उसके घर की ओर जाने वाले रास्ते पर बढ़ गई है।
पूरे रास्ते वो इसी उथल- पुथल से परेशान रही है,
” मैं इतनी स्वार्थी कैसे बन गई ?
जिस स्थिति को रोहन ने पहचान लिया उसे मैं नहीं जान पाई ?
या फिर जानबूझ कर देखना नहीं चाहती ? “
बहरहाल ,
नैना के फ्लैट के दरवाजे पर खड़ी हुई जया,
सामने खड़ी नैना के सिर पर हाथ फेरा। जया के चेहरे पर अपराध जैसी रंगत देख नैना का हृदय पिघल गया।
” दीदी, आज अचानक फिर उसके पीछे झांक कर ,
” रोहन कुमार नहीं आए ? “
” हिटलर, पहले अंदर तो आने दे फिर सब बताती हूं “
नैना जया से लिपट गई।
” मैं तुझे सरप्राइज देने चली आई और ये अनुराधा नहीं दिख रही है ? चल मुझे अंदर आने को नहीं कहेगी ?”
नैना मुस्कुराई ,
जया ने नैना का हाथ अपने हाथ में ले लिया और स्नेह से उसके कंधे थपथपाती हुई बोली ,
” तुमने तो नहीं लेकिन अनुराधा ने फोन किया था “
जया ने गौर किया ,
” नैना, जुवान से कुछ नहीं कह रही है लेकिन उसकी आंखें मुस्कुराहट का साथ नहीं दे रही हैं।
कुछ है जो उसे खुल कर हंसने से रोक रहा है “
आगे …
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डार्लिंग!कब मिलोगी” (भाग -97)- सीमा वर्मा : Moral stories in hindi