“अरे यह शाल आपने कहाँ से लिया। “कंधे पर हाथ रख किसी ने पूछा तब अम्मा चौंक पड़ी।
“जी, कौन सा शाल… “आश्चर्य से अम्मा की आंखें फैल गई।
“जिसे आपने ओढ रखा है, क्या कलर कंबिनेशन और बुनावट… ओ माई गाॅड “अल्ट्रा मार्डन युवती की आंखें चमक उठी ।
“आइये अम्मा “! कन्या की मम्मी अम्मा को भीतर ले गयी।
नवयुवती की नजरें अम्मा की शाल पर अटकी रही।
अम्मा नेगचार में व्यस्त हो गई… बीच-बीच में वैवाहिक रस्मों का गीत भी गाती। शादी का रौनक बढ़ गया।
मौका मिलते ही अल्ट्रा मार्डन लड़की अम्मा के पीछे ही पड़ गई, “मुझे भी ऐसा ही शाल चाहिए। “
“इसे मैने बरसों पहले अपने हाथों से बुना था”संकोची अम्मा ने सही बात बता दी।
पुरानी धराऊं साडी़ और हाथों का बुना शाल और कुछ सकुचाई सी अम्मा विवाह निपटते ही सपरिवार वापस आ गई।
उनका बेटा साधारण सी नौकरी करने वाला यश शांत स्वभाव का था। पत्नी भी प्राइवेट स्कूल में पढाती थी… घर खर्च में मदद हो जाता। साथ में वृद्ध माता-पिता और छोटा सा बेटा था।
पिताजी को गिनती के पैसे मिलते। किसी प्रकार रो-धोकर काम चल जाता।
अपनी स्थिति से असंतुष्ट यश हीनभावना का शिकार हो गया था।
सहकर्मी की बेटी की शादी थी… वह घर पर विवाह का कार्ड देने आया, “आपलोग सपरिवार आइयेगा जरुर “!
उसी समय भीतर से जीर्ण-शीर्ण लुंगी गंजी में पिताजी भीतर से निकले। यश अपने मित्र के सामने बाबूजी की दीन-हीन दशा में सामने आने से शर्मिंदा हो गया।दबी जुबान से बोला “बाबूजी कुर्ता तो पहन लेते”।
पिताजी झेंप गये। मित्र उठ खड़ा हुआ, “चाचा जी, चाची जी को भी साथ लाना, इनका आशीर्वाद बहुत जरुरी है। “
विवाह के दिन बहुत उधेड़बुन के पश्चात यश सपरिवार मित्र के घर पहुंचा। सच कहा जाये तो विवाह में पहनने योग्य उनके पास कीमती वस्त्र भी नहीं था। वह मां ही पुरानी साडी़ को नया रुप दे शाल ओढ़ आ गई। मित्र और उनकी पत्नी ने उसके माता-पिता का चरण छू आशीष लिया।
“आइये चाची जी नेगचार में मदद कीजिये। “
सहज स्वभाव वाली अम्मा मनोयोग से वैवाहिक रस्मों को संपन्न कराने लगी। वहीं आधुनिका से भेंट हो गई।
दो-तीन दिनों के पश्चात एक बड़ी गाड़ी दरवाजे पर रुकी। उसमें से आधुनिका जिसका नाम रोजी था उतरी।
” अब उन्हें बैठाये कहाँ ,घर में कोई ढंग की कुर्सी भी
नहीं है “अम्मा पानी-पानी हो उठी।
रोजी इत्मीनान से तख्त पर बैठ गई,”अम्मा मेरे लिए भी वैसा ही शाल बना दोगीँ”
“पर ,बेटी मेरे पास ऊन, कांटा, मोती, सितारा कुछ भी नहीं है।”
“कोई बात नहीं, मेरे साथ बाजार चलिये… मैं सबकुछ खरीद दूंगी, बस मुझे वैसा ही शाल चाहिए… नहीं तो मैं आपका वाला ही शाल ले लूंगी। “
रोजी की शाल के प्रति दीवानगी… अम्मा को बाजार जाना ही पडा़।
“आखिर इस पुराने साधारण शाल में क्या खासियत है
बेटी “अम्मा पूछ बैठी।
“मुझे हाथ के बने ऐसी चीजें बहुत पसंद है “।
फिर बातों ही बातों में पता चला कि रोजी विदेश से शादी में शामिल होने आई थी… रुपये पैसे किसी चीज की कमी नही है… अगले महीने वापस जायेगी…बस… अम्मा की शाल उसके दिल में गडी़ है।
अम्मा बुनाई में एक्सपर्ट थी… आजकल सभी रेडिमेड के दिवाने हैं… इसलिए अम्मा ने बुनाई सिलाई से किनारे कर लिया था।
शाल तैयार हो कर जब रोजी के हाथों में पहुंचा वह खुशी से पागल हो गई, “धन्यवाद अम्मा”।
अम्मा ना ना करती रही …रोजी ने कुछ कड़कडाते नोट अम्मा के आँचल में डाल दिये जबर्दस्ती …”यह तुम्हारे मेहनत की कमाई है अम्मा” किंकर्तव्यविमूढ़ अम्मा कभी नोट और कभी जाती हुई रोजी को देखती रही।
हफ्ते भर बाद रोजी का फोन आया, “अम्मा अगर एतराज न हो तो मुझे वैसा ही शाल और स्वेटर चाहिए… मैं पैसे भेज रही हूं…! “
अम्मा का बुढापा गायब हो गया। मनपसंद काम मिलते और हाथ में चार पैसे आते ही घर का माहौल बदल गया। बहू भी सास के आर्डर पूरा करने में सहयोग करने लगी। स्कूल छोड़ दिया। तीन-चार सिलाई कढाई में एक्सपर्ट जरूरतमंद औरतों को भी काम पर रख लिया।
अम्मा के हाथों की कलाकारी, सफाई का प्रचार प्रसार सोशलमीडिया पर होने लगा। मशीनों के कपड़े से उब चुके लोग हस्तकला की ओर आकर्षित हुये।
पैसे में बहुत ताकत है… नियमित आमदनी से घर की दशा सुधरने लगी। समाज में अम्मा की अलग पहचान बन गई। एक सिलाई कढाई का दूकान ही खुल गया, “अम्मा बुटीक। “
बाबूजी पार्क में बैठे थे। वहाँ चर्चा चल रही थी, “कोई गणित का जानकार हो तो बताना। “
“किसलिये “!
“मैं भी गणित विज्ञान का शिक्षक था “बाबूजी बोल पड़े।
“अरे, मेरे पोते को पढाना था हम ठहरे …दुकानदार…समय कहाँ है। “
उनका पोता बाबूजी से पढ़ने लगा। बाबूजी के पढाने का ढंग … लोगों में फैलते देर न लगी। लोग अपने बच्चों को ट्यूशन पढाने लगे। अच्छी आमदनी होने लगी। मनलायक काम और विद्या का उपयोग… मधुर भाषी बाबूजी का खोया विश्वास लौट आया।
सुख समृद्धि लौटते ही पैसे-पैसे का मोहताज बेटा… के चेहरे पर चमक आ गई।
निरोगी काया और हाथ में माया… कलयुग की सबसे बड़ी संपत्ति है।
लोग बाग कहने लगे, “इसे कहते हैं बुढापे में भाग्योदय। “
सर्वाधिकार सुरक्षित मौलिक रचना -डाॅ उर्मिला सिन्हा ©®
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