केतकी सुबह उठकर जैसे ही पापा जी के कमरे की और गई तो उसने देख वे कुछ असहज लग रहे थे। पापाजी कोई परेशानी है आप इतने बैचेन कैसे हो रहे हैं।
हां बेटा मुझे बाशरूम जाना है और में उठ
नहीं पा रहा।
तो इसमें इतना परेशान होने की क्या बात है चलिए में ले चलती हूं। कह कर उसने उन्हें उठने में सहयोग किया और बाशरूम तक ले गई उनके बैठने के बाद वह बहाँ से आ सीधे रमन को उठाने गई ताकि वे पापा जी की मदद कर सकें। फिर उसने देखा मम्मी जी तो अभी सो रही हैं सो वह स्वयं फ्रेश हो चाय बनाने में लग गई।
चाय बनाते बनाते उसका मन अतीत में खो गया। हाय रे बुढ़ापा कैसी हालत हो गई मम्मीजी पापा जी की। कैसा शानदार, रौबदार व्यक्तित्व था दोनों का पापा जी अच्छे पद पर सरकारी नौकरी में आसीन थे। उनकी रौबिली आवाज किसी को भी सहमा देने के लिए काफी थी। जब तक वे घर में रहते मम्मी जी उनके इर्द-गिर्द ही रहतीं ताकि उन्हें किसी काम में असुविधा न हो।
उनकी आज्ञा के बिना एक पत्ता भी न हिलता। दोनों बच्चे बड़े होने के बाद भी उनसे खुल कर नहीं बोल पाते अपनी मम्मी द्वारा ही अपनी बात पापा तक पहुंचाते । ऐसा नहीं है कि वे बच्चों को प्यार नहीं करते थे, किन्तु उनका मानना था कि घर में अनुशासन का वातावरण रहना चाहिए जिससे बच्चे अपनी राह से भटकते नहीं है।
वे बच्चों की सब जरूरतें सहर्ष पूरी करते ।समय -समय पर उन्हें घुमाने फिराने भी ले जाते और दुनियादारी की बातें भी सिखाते। वे चाहते थे बच्चों का सही विकास हो और वे एक अच्छे नागरिक बने । मम्मी जी भी एक कुशल गृहिणी थी जो सुचारू रूप से अपनी गृहस्थी सम्हाल रहीं थीं। दोनों को अच्छे तरीके से रहने का शौक था
सो मम्मी जी भी घर में ग्रेसफुल तरीके से तैयार हो रहतीं। उन्हें देख ऐसा लगता वे कठोर अनुशासन प्रिय हैं, किन्तु उतनी ही सहृदय, मन की कोमल महिला थीं जो अपने पति और बच्चों को ही अपनी जिन्दगी समझती एवं उनकी जरूरतें पूरी करने में ही लगी रहतीं।
तभी रमन कीआवाज ने उसकी सोच को विराम दिया। केतकी कहाँ हो भाई कब से पापा का चाय इन्तजार कर रहे हैं।
बस लाई कहते वह चाय नाश्ता लेकर पहुँच गई । सुबह के काम से निपट कर , मम्मी जी को चेन्ज करवा कर वहअपने विद्यालय जाने की तैयारी करने लगी । वह सरकारी उच्च माध्यमिक विद्यालय में प्राचार्या के तौर पर आसीन जो है।
विद्यालय पहुँच कर कुछ आवश्यक कार्य निबटा कर जैसे ही वह अपने आफिस में अकेली हुई कि विचारों का सिलसिला फिर चल पड़ा। मात्र उन्नीस वर्ष की आयु में वह व्याह कर इस घर में आई थी। उसका एम. ए. फाइनल करना बाकी था किन्तु उसके पापा ने इतना अच्छा आया रिश्ता नकारना स्वीकार नहीं किया ।
पढ़ाई तो बाद में भी हो जाएगी पर ऐसा रिश्ता हाथ से निकल गया तो फिर न मिलेगा ।इसी सोच के चलते उन्होंने उसे विवाह मंडप में बिठा दिया। नए घर में अभी वह सामंजस्य बिठा ही रही थी, कि देखते- देखते आठ माह निकल गए। कहते हैं न कि हंसी खुशी का समय निकलते देर नहीं लगती। किन्तु पढ़ने की कसक उसे हमेशा दुखी कर देती।
जब वह अपनी ननद नन्दिता को पढ़ते, कालेज जाते देखती तो उसके मन में भी हूक उठती। एक दिन बातों बातों में ही उसने नन्दिता से कहा वह भी पढ़ना चाहती थी कम से कम अपनी एम. ए .की डिग्री तो ले लेती किन्तु पापा ने शादी कर
सब छुडवा दिया।
किन्तु भाभी वह तो आप अभी भी कर सकती हो प्राइवेट फार्म भर दो।
क्या मम्मी जी-पापाजी, रमन जी मुझे इसकी अनुमति देगें।
मैं आज ही पापा से बात करती हूँ आप इतने दिनों तक क्यों नहीं बोलीं।
नन्दिता ने यह बात मम्मी को बताई और मम्मी ने पापा को।
पापा – इसमें इतनी कौनसी बड़ी बात है , केतकी इधर आओ इतने दिनों से तुम चुप क्यों रहीं ।क्या तुम हम लोगों को अपना नहीं समझती बेटा जो मन में अपनी इच्छा दबा कर बैठी हो।
ऐसी बात नहीं है पापा जी मैं डर रही थी कि कहीं आप लोग नाराज न हो जाएं इसमें डरने वाली बात ही कहाँ है। पढ़ना लिखना तो अच्छी बात है पर तुमने देर कर दी अब तुम्हारा एडमिशन कहीं नहीं हो सकता सो यह सेशन निकलने दो अगले साल तुम्हारा एडमिशन भी नन्दिता के साथ उसी कालेज में करवा दूंगा।
पर पापा कालेज जाने से घर का काम नहीं हो पायेगा सो प्राइवेट ही फार्म भर दूंगी।
नहीं प्राइवेट नहीं तुम कालेज ही जाओगी और घर का काम तुम्हारी मम्मी देख लेगीं वह अभी इतनी बूढी भी नहीं हुई हैं, तुम्हारे आने से पहले भी तो संभालती थीं क्यों रागिनी में गलत तो नहीं कह रहा ।एक कुक और लगा लेंगे खाना बनाने के लिए सही है न ।
जैसाआपको सही लगे रागिनी जी बोलीं।
समय गुजरने केसाथ ही पापाजी ने उसका एडमिशन करवा दिया उसने एम. ए.किया फिर B.Ed किया और RPSC की जगह निकलने पर पापा जी ने उसको तैयारी के लिए प्रोत्साहित किया और तैयारी कर वह चयनीत हो गई ।इकानामिक्स में स्कूल व्याख्याता बन गई और आज उन्नति करते करते प्राचार्या के पद पर आसीन है यह यात्रा सहज नहीं थी
बिना सहयोग के। पापा जी, रमन जी के साथ साथ मेरे विकास में मम्मीजी का भी सहयोग रहा। कभी उन्होंने घर के वातावरण को बिगड़ने नहीं दिया। इसी बीच वह प्यारे से दो बेटों की मां भी बन गई।
बच्चे बड़े होकर अपनी शिक्षा रुपी ट्रेनिंग पाकर पंख फड़फड़ा कर अपने भविष्य को संवारने एवं एक नये नीड की संरचना करने की तलाश में उड गये। रह गए हम चारों बूढ़े होते मम्मीजी-पापाजी और प्रौढ़ होते मैं और रमन जी।
बुढ़ापा आपने आप में ही एक बीमारी है जो अच्छे खासे चलते-फिरते इंसान को अपंग बना बिस्तर पर बैठा देता है। रह-रहकर मेरी आँखों के सामने मम्मी जी एवं पापा जी का प्रौढ़ रूप कौंध जाता है कितने सजे संवरे रहते थे। कितनी रौबदार आवाज थी पापाजी की किन्तु मन से उतने ही मुलायम । कैसे दोनों हंसते मुस्कराते पार्क में घूमने जाते ते।
कभी जिद करके बच्चे भी जब छोटे थे साथ हो लेते। कभी पापा जी बच्चों को गाडी में बैठा घूमाने ले जाते और ढेरों उनकी मन पंसद चीजें दिला लाते तो मुंह से निकलते हो मम्मी जी उनके के लिए खाने की मनपसंद चीजें बना कर खिलाती ।मैं कहती भी मम्मी जी ये आपको परेशान करते है इन्हें पता है कि आप ना नहीं करेंगी सो आपको ही बनाने को बोलते हैं।
केतकी बैटा अभी मेरे हाथ-पाँव चल रहे हैं सो बना देती हूं कैसी परेशानी इनमें तो हमारे प्राण बसते हैं। इन्हें खाता देख कर कितनी प्रसन्नता होती है। यह सुख तुम तब जानोगी जब दादी बनोगी।
मम्मी जी आप तो अपनी बातों से मुझे निरुत्तर कर देतीं हैं।
कैसे प्यारे थे वे दिन जो अब कभी लौट कर नहीं आयेंगे। मम्मी जी पापाजी की जितनी भी सेवा कर सकूं कम है। भगवान से यही प्रार्थना है कि उन्हें ज्यादा कष्ट न दे वे अपने बुढापे को भी इनजाय करे इतनी शक्ती उन्हें देना। हम उनके बुढ़ापे को भी संवारने में कोई कसर नहीं रखेंगे।
जहाँ तक जितनी सेवा हमसे बन पडगी करेंगे ताकि उनकी आत्मा को कष्ट न हो। उनके मुख से जो आशीर्वाद निकलता है वही हमारे को फलीभूत करेगा। बड़ों के आशीर्वाद से बढ कर और कोई वस्तु नहीं जो हमारे मन को संतुष्टि दे सके।
कभी पापाजी के दोस्त मिलने आते तो वे कहते यार जीवन तो तुम्हारा है बुढापा भी कितनी शान से गुजार रहे हो।एक हम है जो दो गर्म रोटीयों के लिए भी तरसते हैं।
मैं सोचती पापा जी मम्मी जी ने जो बोया है वही तो काट रहे हैं । उनके अपने कर्मो का ही फल है कि हम उनकी निस्वार्थ भाव से सेवा कर रहे हैं। उनके निश्च्छल प्रेम ने ही तो हमें यह सब सिखाया है। कहते हैं जो बोया पेड बबूल का फल कैसे मीठा होए किन्तु यहां तो यह कहावत इस प्रकार थी जो बोया पेड़ आम का फल कैसे मीठा न होये।
उन्होंने पग -पग पर हमें सम्हाला, उचित मार्गदर्शन दिया उनके सहयोग के कारण आज मैं इस पद पर हूं। अन्यथा मेरा भविष्य भी तो बिगाड़ सकते थे यह कह कर अब कोई पढ़ाई नही होगी अपनी घर गृहस्थी सम्हालो।
उनके बुढ़ापे के कष्ट को जितना कम कर सकेंगे उतना प्रयास करेंगे ताकि वे आत्म सन्तुष्टि के साथ इस संसार से विदा लें।
शिव कुमारी शुक्ला
30-4-24
स्व रचित मौलिक एवं अप्रकाशित
शब्द प्रतियोगिता***बुढ़ापा
दोस्तों माता-पिता हमारे जन्म दाता है। जिन्होंने हमें बचपन मे बांहों में झूला झुलाया , कांधे पर बिठा कर दुनियां दिखाई, ऊंगली पकड़ चलना सिखाया, मां ने अपना दूध पिला पोषण किया, स्वयं गीले में सो हमें सूखे में सुलाया, हमारी हर जरूरत को पूरा किया तो क्या हमारा फर्ज नहीं बनता कि हम उनके बुढ़ापे में उनके कांपते हाथ-पैरों को सहरा दें, धुंधली होती नजर को अपनी आंखों से दुनियां दिखायें उनके खाने-पीने का ,दवाई का ध्यान रखें।
हम उनका कर्ज तो नहीं उतार सकते किन्तु उनकी सेवा कर उनके बुढ़ापे को तो
कष्ट मुक्त बना सकते हैं।
ये मेरे अपने विचार हैं जरूरी नहीं कि आप सभी इससे इत्तफाक रखें इसे अन्यथा न लें।
Bhut hi sundar kahani h
Bhut hi pyari☺ story h…
Positive vichar I don’t like negative stories all parents do good for their children after reading negative stories mind became disturb so our mind should b fresh with Positive ifeas