अपना घर स्वर्ग -ऋतु गुप्ता : Moral Stories in Hindi

आज दोनों बुजुर्ग दम्पत्ति लखमीचंद जी और उनकी पत्नी पुष्पा जी झूले पर बैठे अपने घर के आंगन में अपने स्वर्ग जैसे घर का आनंद ले रहे थे।

तभी लख्मी चंद जी की आंखों के सामने  तीन वर्ष पहले का एक दृश्य सचित्र घूम गया, जब उन्होंने अपने बेटे से कहा था…..

बेटा कहां थे हफ्ता भर हो गया, तुमसे बात हुए ,तुम्हारी मां कितनी बेचैन है ,तुम तो जानते ही हो जब तक तुम दोनों भाई-बहनों से तुम्हारी मां की बात नहीं हो जाती ,वो बेचैन ही रहती है।  अनमोल घर कब आएगा, अक्षरा से कब बाते हो पायेगी, बच्चों के बिना घर घर सा नहीं लगता जी, बस ये ही रट लगाई रखती है।

बेटा अब हम दोनों भी थक चुके है,हमारा बुढापा आ गया है,सच कहता हूं अब हमसे यह बाग, जमीन और इतना बड़ा घर अकेले नहीं सभंलता, पिछले वर्ष तो तुम कह रहे थी कि बस कुछ ही दिनों की बात है , तुम अपना ट्रांसफर यही भारत में ले लोगे पर तुम तो अब बस विदेश के ही होकर रह गये हो। अब अक्षरा भी( तुम्हारी बहन)  अपने पति के साथ विदेश में ही बसना चाह रही है। क्या बूढ़े मां बाप के प्रति तुम्हारा या तुम्हारी बहन का कोई कर्तव्य नहीं ,क्या तुम्हारा फर्ज नहीं बनता कि अपने मां-बाप को बुढ़ापे में यूं अकेले नहीं करें।जरा इस बात पर भी तो ध्यान दो कि तुम्हारी मां की तबीयत जरा सी देर में ही खराब हो जाती है ,दिल की मरीज जो है,कौन उसे डॉक्टर को दिखाएं कौन  साथ लेकर जाय, यह तो अब तुम्हें ही सोचना पड़ेगा।

इस पर अनमोल ने कहा ,पापा आप मां को समझाओ तो, मां कोई छोटी बच्ची तो है नहीं कि दिन भर उनसे ही बातें करते रहे।

मैं तो नौकरी छोड़कर भारत जल्द नहीं आ पाऊंगा और अक्षरा भी अब कनाडा जा रही है, मुझे अपने बच्चों को ग्रीन कार्ड दिलवाना है, इसलिए उनका यहां पर जन्म होना बहुत जरूरी है जिससे की  उन्हें यहां की नागरिकता मिल जाए।

आप भी कब तक इतना बड़ा घर और इतने बड़े बाग और जमीन की देखभाल कर पाएंगे, इससे तो अच्छा है सब को बेचकर अपने और मां के हिसाब से एक छोटा सा घर ले लो ,कुछ पैसे अपने दवा इलाज के लिए रख कर , बाकी मुझे और अक्षरा को दे दो, जिससे कि हम दोनों भी यहां पर अच्छे से सैटल हो जाए और जब आप दोनों का मन हो तो आप दोनों हमारे साथ भी सैटल हो सकते हो पापा।

यह बात सुनकर लक्ष्मीचंद को बड़ा धक्का सा लगता है, कहते कुछ नहीं ,बस सोच  विचार करने लगते हैं, उन्हें अचानक वो मंदिर वाला अनाथ  बच्चा याद आता है, जिसने कुछ दिन पहले उनकी पत्नी पुष्पा को चक्कर आने के बाद डॉक्टर के यहां 

दिखाया ,घर पहुंचाया और लगातार पंद्रह दिन तक हाल-चाल लेता रहा।

उसने यह सब किसी लालच में आकर नहीं, बस मानवता के नाते किया था, तो क्या हमारा कुछ फर्ज नहीं बनता कि हम भी मानवता के नाते कुछ समाज के लिए करें। यदि ईश्वर ने हमें इतना समर्थ बनाया है तो कुछ तो कारण होगा ही…

अपने दोनों बच्चे तो पैरों पर खड़े हो चुके हैं अपना अच्छा बुरा समझते हैं और अपना गुजारा भी अच्छे से कर पा रहें है, ऐसा सोचते सोचते देर रात तक उनके मन में मंथन चलता रहा और कब उन्हें नींद आई पता ही नहीं चला।

अगली सुबह जब उनकी पत्नी पुष्पा जी ने उन्हें उठाया, तो उन्होंने पुष्पा जी से कहा मैं तुमसे कुछ सलाह मशवरा करना चाहता हूं, जरा यहां बैठो तो। उन्होंने सारी बात अपनी पत्नी को समझाई, कहा इस बार जब बच्चे दीपावली पर घर आएंगे तो हमें हमारा निर्णय सुनाना है पुष्पा जी ने भी थोड़ा जी झिझकते हुए अपनी सहमति  दे दी, पर लखमी चंद जी से एक सवाल पूछा…. कि क्या हम फिर अपने दोनों बच्चों को कुछ नहीं दे पाएंगे?

इस पर लख्मी चंद जी ने कहा तुम इस बात की फिक्र मत करो दोनों को देने के बाद भी हमारे पास काफी कुछ है जिससे हम समाज के लिए, मानवता के लिए काफी कुछ कर सकते हैं। 

फिर जल्द ही कुछ दिनों में उन्होंने अपने बाग का एक बड़ा सा हिस्सा बेचकर “अपना घर स्वर्ग “नाम से एक घर बनाया जहां कोई भी अनाथ बच्चा, कोई भी वृद्ध बुजुर्ग रहने आ सकता था, जिसका इस दुनिया में सब कुछ अपना होते हुए भी सहारा देने वाला कोई ना हो। उन्होंने बहुत ही समझदारी से इसकी सारी तैयारी की, व्यवस्था बनाई, अपने हम‌उम्र साथियों से सलाह मशवरा कर इस योजना को असली जामा पहनाया, जिससे कि वहां  रहने वाले सभी के लिए अपना घर अपना ही हो।

यह घर और अनाथालय या वृद्धाआश्रम जैसा नहीं था, ये तो था “अपना घर” जहां अनाथ बच्चों को अपने बड़ों के आशीर्वाद की छाया मिली और बुजुर्गों के लिए अपनी आंखों के सामने पलते बड़े होते बच्चों की फुलवारी।जहां अनाथ बच्चों को बड़ों का मार्गदर्शन उनका अनुभव मिला वही बुजुर्गों को इन बच्चों का सहारा और इनका साथ मिला।

“अब सचमुच इस बुढ़ापे में भी उनका अपना घर स्वर्ग था जहां बच्चे  हो या बुजुर्ग सभी के दिन रात चैन और सुकून के साथ कटते थे।”

ऋतु गुप्ता 

खुर्जा बुलन्दशहर 

उत्तर प्रदेश 

बुढापा

VM

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